रविवार, 7 अगस्त 2016

दोस्त और दोस्ती पर मशहूर 20 शेर (जंगल वाला नहीं)






प्रस्तुति- संत शरण रीना सिन्हा

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कि तुझ बिन इस तरह दोस्त घबराता हूँ मैं

जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद

महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं

दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
दोस्ती आम है लेकिन दोस्त

दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब

मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं

दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा

दोस्तों को आज़माते जाइए
हमें भी पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी

हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

क्यूँ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं

उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं
इज़हार-ए-इश्क़ उस से करना था 'शेफ़्ता'

ये क्या किया कि दोस्त को दुश्मन बना दिया
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर दोस्त

सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

तू दोस्त है तो नसीहत कर ख़ुदा के लिए
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ

कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'

दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

जो पिछली रात से याद रहा है
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह

कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी

दोस्त की दोस्त मान लेते हैं
ज़िंदगी के उदास लम्हों में

बेवफ़ा दोस्त याद आते हैं

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