वर्धा की पहडियों पर
अनामी शरण बबल
वर्धा की पहाडियों
पर शेर नहीं शमशेर की गूंज है।
जंगलनुमा पहाड़ पर
पेड़ पौधों के संग
कथा कहानी गीत नाटक
ठहाकों
किताबों के संग
मौज मस्ती और शायरी
की धूम है ।।
यहां कलम के
राजकुमारों की जय जयकार है
लेखनी का सम्मान सत्कार
है
मादक मोहक मस्त
शब्दों का ऋंगार है।
चारो तरफ दूर दूर तक
दूर तक
मनभावन हरियाली शांत
शीतल पवन बहार है
प्रकृति का चमत्कार
है
यहां बाघ् नहीं शेर
नहीं शमशेर बसते हैं
नाग नहीं यहां आए
अतिथि नागार्जुन (सराय) में रहते हैं ।
कोई देव देवी नहीं
यहां केवल महादेवी
निवास करती है
महादेव भोलेशंकर कोई
नहीं
लोग इन्हें जयशंकर
कहते हैं।
दूर दूर तक
इधर उधर देखो चाहे जिधर
देखो
चारों तरफ
कहीं नाथों के नाथ
केदारनाथ से लेकर (अग्रवाल भी)
शमशेर भारतेंदु,
प्रेमचंद जैनेन्द्र
हे हरि से हाय
हरिशंकर परसाई की दुहाई है।
महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय विवि वर्धा में
गांधी और कबीर (हिल)
की चढाई और दुहाई है।
पहाड़ी रास्ते घुसते
ही
द्वार पर
नजीर (बनारसी) हाट बेनजीर
है
ज्यों
नाटक ज्ञान कला अभिनय
का रंगशाला हबीब तनवीर है।
पहाड़ पर ही आवारा(गी)
करते मसीहा से
आवाला मसीहा बिष्णु
का प्रभाकर दीवान है
शांत कोमल नेह संग
बच्चे (बच्चियां भी) सरल सुजान है।
पहाड़ पर दक्षिण से
भारत की पुकार है,
तो सुब्रह्णणयम
भारती की दहाड़ है
कहीं होरी माधो के
संग दिखते हैं लकुठिया टेक प्रेमचंद
तो कहीं मछलियों को
जगाते मिल जाएंगे
मछुवारे के खिलाफ
अड़े गोरख (पांड़ेय)।.
सावित्री फूलेबाई
(कन्या छात्रावास) के संग साथ साथ
आंचल में रहती उछलती
कूदती
मस्ती करती है
सैकड़ों लड़कियां ।
तो बिरसा मुंडा और
गोरख पांड़ेय (युवक छात्रावास) से
लड़कों का होता है
रोजाना संवाद
हर मुद्दे पर जिरह विवाद
कुछ और नया जानने की
नरम गरम फरियाद।
रार तकरार का भी एक
है अड्डा
कॉफ्का कॉफीहाउस
झोपडी सा होकर भी यहां
सबसे टकराते है
वामपंथ से लेकर
दक्षिण पंथी भिड़ जाते है
चाय कॉपी सा उबलता
आर्कोश
उबलते हुए ही थम
जाता है
प्याली में नम हो
जाता है
बड़े नामी कॉफीहाउसों
सा यह बेशरम नहीं
देश का मिजाज परखने
वाला
यह समाजवादी झोपड़ा
विचारों का जंतर
मंतर है
सब है आजाद कुछ कहने
को
सबकुछ सहने को
यही इसका मिजाज है
गांधी बाबा का लिहाज
है ।
एकला खड़ा पहाड़ कोई जिद्दी जाहिल गंवार नहीं
यह तो ज्ञान का वन
उपवल सुमन है
जहं पर कहीं शरमीले
पंत की कोमल पुकार है
मौन साधक अज्ञेय की
साधना है कबीर की उपासना है
और चारो तरफ निराला
का राग मल्हार है।
जगत से हो बेमुख
पहाड़ कोई जगमुक्ति
का साधन साधक नहीं
पूरा माहौल
मुक्तिबोध है
धूप हवा पानी सा
पावन हो अबोध
कुछ करते, जो ज्ञान
का नया शोध है।
इसी मुक्तिबोधी माहौल
में
गांधी बाबा
अलख जगा रहे हैं
ज्ञान का मंदिर बना
रहे हैं
सर्पीले आकार वाली
हरी भरी वादियों से
जगत शांति का संदेश
फैला रहे है।।
वर्धा की पहाडियों
पर शेर नहीं शमशेर की गूंज है।
और
मॉल मेट्रो मोबाइल
मैकडी और मल्टी प्लेक्सी जमाने में भी
चारो तरफ
केवल और केवल गांधी बाबा
की ही धूम है।।
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