शनिवार, 16 जुलाई 2022

स्त्री की खामोशी

 एक स्त्री जब खामोश होती है 

.....................................


एक स्त्री जब खामोश होती है 

तो वो चाहती है तुम बिन कहे

ही समझ लो उसके मन में 

चलने वाला अन्तर्द्वन्द 

उसके सपने ,उसका दुख

उसकी हर परेशानी 

उसकी हर वो इच्छा 

जो वो पूरा करना चाहती है 

लेकिन कह नहीं पाती और 

जो उसे खुशी दे वो हर बात

जैसे वो समझ लेती है 

तुम्हारे चेहरे को पढ़कर

कुछ नहीं होता उसके जीवन में 

तुम्हारी खुशियों से बढ़कर

उसकी हर धड़कन तुम्हारे लिए 

धड़कती है, तुम्हारे लिए ही

वो संजती संवरती है 

बस सुनना चाहती है 

तारीफ के दो शब्द 

तुम्हारे साथ हमेशा खड़ा हूँ

इतना सा बस

लेकिन जब तुम न समझ पाओ

उन अनकही बातों को 

न देख पाओ उन 

खामोश रातों को 

न देख पाओ तुम्हारे 

रूखे बर्ताब से आये 

आँखों में छिपे आँसुओं को 

तो वो अपने लिए खामोशी 

चुनती है


और पटर पटर बोलने वाली 

लड़की को यूं खामोश होने में 

दिन या महीने नहीं लगते

तुम्हारे सालों के व्यवहार 

से वो ये खामोशी चुनती है 

एक स्त्री जब खामोश होती है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्रवीण परिमल की काव्य कृति तुममें साकार होता मै का दिल्ली में लोकार्पण

 कविता के द्वार पर एक दस्तक : राम दरश मिश्र  38 साल पहले विराट विशाल और भव्य आयोज़न   तुममें साकार होता मैं 💕/ प्रवीण परिमल   --------------...