*छतरियाँ हटा के*
*मिलिए इनसे,*
*ये जो बूंदें हैं*
*बहुत दूर से आई हैं...*
*कुछ बूंदें लाई हैं,*
*बचपन की यादें,*
*भाई-बहनों के संग,*
*आंगन में भीगना,*
*दौड़ना और फिसलकर गिरना,*
*जब तक बारिश रहे,*
*तब तक नहीं अंदर आना,*
*फिर माँ की वो,*
*प्यार से भरी झिड़की,*
*अपने हाथों से उसका,*
*हम सबके सिर पोंछना,*
*फिर हल्दी वाला,*
*गर्म दूध देना,*
*कौन ज़्यादा भीगा,*
*और किसने की,*
*ज़्यादा मस्ती,*
*इस बात पर,*
*सोने तक बहस करना,*
*और फिर,*
*अगली बारिश का,*
*इंतज़ार करना।*
*कुछ बूंदें लाई हैं,*
*जब बारिश में,*
*स्कूल की छुट्टी होना,*
*अपने बस्ते को,*
*रखकर अपने सिर पर,*
*भीगते हुए,*
*संग मित्रों के,*
*अपने घर आना,*
*फिर वही माँ की,*
*वो प्यारी झिड़की,*
*फिर वही,*
*हल्दी वाला,*
*गर्म दूध पीना।*
*कुछ बूंदें लाई हैं,*
*कॉलेज की,*
*यादों को भी,*
*वो बारिश में,*
*लेक्चर हॉल की,*
*टूटे कांच वाली,*
*खिड़की से,*
*लेक्चर हॉल में,*
*पानी भरना,*
*और फ़िर,*
*टीचर का,*
*मुस्कुराते हुए,*
*उस दिन का,*
*लेक्चर कैंसिल करना,*
*साथ यारों के,*
*फिर बाहर जाना,*
*बड़े तालाब के,*
*किनारे बैठना,*
*और कैंटीन के,*
*गर्म समोसे खाना।*
*कुछ बूंदें लाई हैं,*
*वो यादें भी,*
*संग वो अपनी,*
*प्रियतमा के,*
*भीगते हुए,*
*सड़क पर चलना,*
*छतरी टूटी है,*
*ये सब से कहना,*
*और फिर धीरे से,*
*उसका वो,*
*हाथ नाज़ुक सा,*
*अपने हाथों में,*
*थामने की,*
*कोशिश करना,*
*"कोई देख लेगा",*
*धीरे से,*
*उसका कहना,*
*और फिर,*
*हाथ छुड़ा लेने की,*
*कोशिश करना,*
*मगर ना छूटे हाथ,*
*दिल में यह,*
*ख़्वाहिश करना,*
*कुछ बूंदें लाई हैं,*
*उन यादों को भी,*
*बच्चों को बारिश में,*
*उनके स्कूल से,*
*घर पर लाना,*
*फिर बदल कर,*
*उनके वो गीले कपड़े,*
*उन्हें रूम हीटर के,*
*पास बैठा कर,*
*वो बातें करना।*
*कुछ बूंदें लाई हैं,*
*वो यादें भी,*
*जब काम से,*
*लौटते समय पर,*
*मूसलाधार बारिश का आना,*
*घर पहुँचते ही,*
*प्याज़ के पकोड़ों की,*
*वो ख़ुशबू आना,*
*और फिर साथ,*
*बैठकर सबके,*
*संग वो,*
*तीखी हरी चटनी के,*
*प्याज़ के,*
*गर्म पकोड़े खाना।*
*कुछ बूंदें लाई हैं,*
*वो यादें भी,*
*जब बच्चों के,*
*कॉलेज से,*
*आने के समय,*
*अचानक तेज,*
*बारिश का आना,*
*वो घर आ जायें,*
*सुरक्षित अपने,*
*यही भगवान से,*
*प्रार्थना करना,*
*उनके आने पर,*
*"आगे मत भीगना"*
*नसीहत देना,*
*"अब मैं बच्चा नहीं हूँ"*
*यह उनका कहना!*
*आज फिर,*
*हो रही है,*
*तेज़ बारिश, पर,*
*मैं बैठा हूँ,*
*पास खिड़की के,*
*बच्चे रहते हैं,*
*कहीं और,*
*संग उनके,*
*परिवार के,*
*पत्नी कहती है,*
*"खाओगे प्याज़ के पकोड़े क्या?"*
*मैं "नहीं" कहता हूँ,*
*फिर उठकर,*
*जाता हूँ,*
*किचन में अपने,*
*और बनाता हूँ,*
*पकोड़े ख़ुद ही,*
*और देता हूँ*
*जब मैं पत्नी को,*
*उसकी आँखों में,*
*झलकती हैं,*
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