लघुकथा का मतलब है एक छोटी कहानी जिसका विषय पूरी तरह से विकसित हो, पर जो किसी उपन्यास से कम विस्तृत हो।
हिंदी साहित्य में लघुकथा नवीनतम् विधा है। इसका श्रीगणेश छत्तीसगढ़ के प्रथम पत्रकार और कथाकार माधव राव सप्रे के एक टोकरी भर मिट्टी
से होता है। हिंदी के अन्य सभी विधाओं की तुलना में अधिक लघुआकार होने के
कारण यह समकालीन पाठकों के ज्यादा करीब है। और सिर्फ़ इतना ही नहीं यह अपनी
विधागत सरोकार की दृष्टि से भी एक पूर्ण विधा के रूप में हिदीं जगत् में
समादृत हो रही है। इसे स्थापित करने में जितना हाथ रमेश बतरा, जगदीश कश्यप, कृष्ण कमलेश, भगीरथ, सतीश दुबे, बलराम अग्रवाल, विक्रम सोनी, सुकेश साहनी, विष्णु प्रभाकर, हरिशंकर परसाई आदि समकालीन लघुकथाकारों का रहा है उतना ही कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, बलराम, कमल चोपड़ा, सतीशराज पुष्करणा आदि संपादकों का भी रहा है। इस संबंध में तारिका, अतिरिक्त, समग्र, मिनीयुग, लघु आघात, वर्तमान जनगाथा आदि लघुपत्रिकाओं के संपादकों का योगदान अविस्मरणीय है।हिंदी साहित्य
बाह्यसूत्र
- पहली हिन्दी लघुकथा
- लघुकथा : संचेतना एवं अभिव्यक्ति - रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
- ताप्तीलोक का लघुकथा संग्रह
- रचनाकार पर लघुकथा संग्रह
- लघुकथा पर राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन
- अभिव्यक्ति पर लघुकथा संग्रह
- लघुकथा - लघुकथाओं के विविध पक्षों को समर्पित हिन्दी जालस्थल
- भाषान्तर विभिन्न भाषाओं की लघुकथाएँ
- हिन्दी लघुकथा के 53 चुने हुए संग्रह संग्रह'
- हिन्दी के 62 विशिष्ट लघुकथाकार
- लघुकथा का नेपथ्य
- लघुकथा में शब्द-प्रयोग संबंधी सावधानियाँ
- लघुकथा में आधुनिकता
- लाघव : लघुकथा का आधारभूत गुण
- सूची—हिन्दी लघुकथा संग्रह 2001-2010
- सूची—हिन्दी लघुकथा संकलन-पत्र-पत्रिका विशेषांक-आलोचना ग्रंथ 2001-2010
- सूची—हिन्दी लघुकथा गोष्ठियाँ व सम्मेलन 2001-2010
- लघुकथा-वार्ता - लघुकथा के आलोचना-पक्ष को समर्पित सशक्त हिन्दी ब्लॉग
- लघुकथा साहित्य - अंतर्जाल पर लघुकथा के समग्र स्रोतों का फेसबुक पृष्ठ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें