शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

रवि अरोड़ा की नजर से....

 मटकी फूटी क्यों  / रवि अरोड़ा



तीन चार दशक पहले  रेडियो पर एक विज्ञापन आया करता था- मटकी फूटी क्यों , किस्मत रूठी क्यों .. दरअसल  कम उम्र में लड़कियों के मां बनने और उससे बढ़ती मृत्यु दर के खिलाफ यह सरकारी विज्ञापन था । बाद में यह विज्ञापन और लोगों को जागरूक करने वाले इसी तरह के तमाम अन्य विज्ञापन सभी प्रचार माध्यमों से गायब हो गए । हम भारतीयों पर ऐसे विज्ञापनों का कम ही असर होता है , शायद यही मान कर तमाम सरकारों ने भी हार मान ली होगी । यूं भी बाल विवाह हम भारतीयों के लिए कभी चिंतनीय विषय रहा भी नहीं है । दुनिया कहां से कहां पहुंच गई मगर हमारे यहां अभी भी कच्ची उम्र में बच्चियों के विवाह होने बंद नही हुए । अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ के अनुसार भारत में अभी भी लड़कियों के एक तिहाई विवाह 18 साल से कम की उम्र में होते हैं । हालांकि कानूनन यह अपराध है मगर कानून शानून की यहां मानता कौन है ? उधर,  वोट की खातिर तमाम राजनीतिक दल और उसकी सरकारें भी इस ओर आंख बंद करके बैठी रहती हैं । तभी तो हर साल हो रहे लाखों बाल विवाहों के बावजूद उनके खिलाफ उंगलियों पर गिने जाने लायक मुकदमे ही दर्ज हो रहे हैं । चलिए देर से ही सही मगर केंद्र सरकार का इस गंभीर मुद्दे पर अब ध्यान गया है और उसने लड़कियों के विवाह की उम्र 18 से बढ़ा कर 21 करने का फैसला लिया है । सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही यह कानून का रूप भी ले लेगा । 


संतोष का विषय है कि मुल्क में महिलाओं में साक्षरता की दर पुरुषों से बहुत कम नहीं है । कई राज्यों में तो महिलाएं पुरुषों से अधिक साक्षर हैं । यही वजह है कि उन्हें अब रोजगार के अच्छे अवसर भी प्राप्त हो रहे हैं । ऐसे में उन्हें कम उम्र में चूल्हा चक्की और बच्चे संभालने में झौंक देने बेशक अमानवीय ही है । मगर दुर्भाग्य से अभी भी यह अमानवीय कृत्य खूब हो रहा है । सरकारें भी महिलाओं को पुरुषों से कम मानती आईं हैं अतः पुरुषों के मुकाबले उनका विवाह तीन साल पहले ही कराने पर आमादा रही हैं । जबकि तमाम डॉक्टर्स भी मानते हैं कि 21 साल की उम्र से पहले लड़कियों का विवाह उनके मानसिक और शारीरिक विकास की दृष्टि से उचित नहीं है । संतानोत्पत्ति के लिए वे कम से कम  22 से 23 साल उम्र की अनुशंसा करते हैं । समझ नही आता कि एक ओर हम चाहते हैं कि हमारी बच्चियां डाक्टर, इंजीनियर और चार्टेड एकाउंटेंट बनें और दूसरी ओर हम यह हिसाब लगाने को भी तैयार नही कि इस पढ़ाई को पूरा करने में कम से कम 22 साल लगते हैं । यदि विशेषज्ञ बनना हो तो दो साल मास्टर्स की डिग्री के लिए अलग से चाहिए । अब यदि जल्द शादी हो गई और बच्चे संभालने पड़ गए तो लड़कियां कैसे बड़े बड़े काम कर पाएंगी ? 


हमें कतई यह मान कर नहीं चलना चाहिए कि सरकार के कानून बना देने भर से कम उम्र में लड़कियों की शादियां होनी रुक जाएंगी । ऐसे कानून तो पहले भी बने हैं और समाज पर उनका बहुत अधिक असर भी नही हुआ है । हां इतना तो अवश्य है सरकार के इस फैसले से लोगों में थोड़ी बहुत जागरूकता आयेगी । कम उम्र में शादी के लिए दबाव के खिलाफ महिलाओं को कानून का सहारा भी इससे मिलेगा । अब क्या ही अच्छा हो कि सरकार केवल कानून बनाने भर से ही संतोष न करे और पूरी आक्रामकता से इसके लिए प्रचार प्रसार भी करे । आज तमाम टीवी चैनल उसकी जेब में हैं । रोजाना कई कई पेज के आलतू फालतू विज्ञापन अखबारों में देने के लिए उसके पास बजट भी है । ऐसे में कोई वजह नहीं है कि वह हमसे दोबारा न पूछे कि मटकी फूटी क्यों, किस्मत रूठी क्यों ?



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