मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

लब तलक / प्रेम रंजन अनिमेष

 

लब  तलक  ला नहीं  सका हूँ  मैं 

प्यार  को   गा  नहीं  सका  हूँ  मैं 


वो  जो  आये  थे   ढूँढ़ते  मुझको    

उनके  घर  जा नहीं  सका  हूँ  मैं 


ख़ुद से वादा किया था मिलने का

ख़ुद  को ही  पा नहीं  सका हूँ  मैं 


प्रीत  बचपन की  इक  पहेली सी 

जिसको  सुलझा नहीं सका हूँ  मैं 


जिसकी ख़ातिर ये दिल धड़कता है

उसको  दिखला  नहीं  सका हूँ मैं 

                           

अपने  सपनों में  भी  थी  सच्चाई

सच को  झुठला नहीं  सका  हूँ मैं


ठीकरे   की  तरह  है   जग  आगे

फिर भी  ठुकरा नहीं  सका  हूँ मैं 


जलते खेतों को मुँह दिखाऊँ क्या

बारिशें   ला   नहीं   सका  हूँ   मैं 


गुल सा हूँ रोता हूँ ओस के आँसू

ख़ुशबू   फैला  नहीं  सका  हूँ  मैं  


देखने   आ  गया  था  ये  बाज़ार 

आ के फिर  जा  नहीं सका हूँ मैं


मौत की  क़ब्र  ज़ीस्त की  चादर

पाँव   फैला   नहीं   सका  हूँ  मैं 


आस है  साँस  फिर  वफ़ा  लेगी

उसको दफ़ना  नहीं  सका हूँ  मैं 


ये कसक है कि ज़िंदगी को अभी

जीना  सिखला नहीं  सका हूँ  मैं 


लाख   कहते   रहे   मुकर्रर  सब

ख़ुद को  दुहरा  नहीं  सका हूँ  मैं


सर पे बरसात आ गयी  'अनिमेष'

छत  कोई  छा  नहीं  सका  हूँ  मैं 

                             💔

                                ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*

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