गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

फिर भी मन क्यों प्यासा हैं / डॉ. धनंजय सिंह

 पांच दिसंबर दोपहर दो बजने को थे ! आधा घंटे बाद आकाशवाणी में रिकॉर्डिंग थी ! प्रेस क्लब में लंच कर रहा था कि सुकवयित्री संध्या सिंह का फोन आ गया ! उन्हें रिकॉर्डिंग के बारे में बताया तो बोलीं कि कुछ नया सुनाइएगा !......बस तभी कुछ लिखा और आकाशवाणी में रिकॉर्डिंग हो गयी....

..प्रस्तुत है बैठे ठाले लिखा गया वह गीत........


कैसी अजब शरद ऋतु आयी 

गहन कुहासा है.


ओढ़े कम्बल रोज़ देर तक 

सूरज सोता है 

भीडभरी राहों पर भी 

सन्नाटा होता है 


सर्द हवाओं का डर भी तो 

अच्छा-ख़ासा है .


फिर-फिर बजें अलार्म 

किन्तु हम सोये रहते हैं 

सपनों की उड़ान भर 

नभ में खोये रहते हैं 


उजियारा अंधियारे में घिर 

हुआ रुआंसा है .


रेलें ठहरी हैं 

विमान की रुकी उड़ानें हैं 

इधर घोंसलों में बंदी 

कलरव की तानें हैं 


नहीं धूप की गरमी 

फिर भी मन क्यों प्यासा है . 

                         ------- धनञ्जय सिंह.

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