सोमवार, 20 दिसंबर 2021

कमजोर मनोबल / पुरुषोतम शर्मा

 ।।  बोधकथा।। /


🌺💐कमज़ोर मनोबल💐🌺


सुप्रसिद्ध हिन्दी कवयित्री महीयसी महादेवी वर्मा के प्रारम्भिक दिनों की घटना है। एक बार उनके मन में बौद्ध भिक्षु बनने का विचार आया । पर ऐन मौके पर उनका निश्चय बदल गया। ऐसा क्यों हुआ उन्हीं के शब्दों में सुनिये ।


मैं एम.ए. ‘प्रीवियस में पढ़ती थी।

अचानक मन में विचार आया कि भिक्षु बन जाऊं। मैंने लंका के बौद्ध विहार में महास्थविर को पत्र लिखा। उनसे कहा,कि भिक्षुणी बनना चाहती हूं। दीक्षा के लिए लंका आऊं या आप भारत आयेंगे?  जवाब मिला-‘हम भारत आ रहे हैं। नैनीताल में ठहरेंगे, तुम वहां आकर मिल लेना।’


मैंने भिक्षुणी बनने का निश्चय कर लिया। अपना सब धन दान कर दिया। जब नैनीताल पहुंचीतो देखा वहां अंग्रेजों का-सा ठाठ-बाट है। मुझे लगा, यह कैसा भिक्षु है, भई ! इतना ताम-झाम ही रखना है, तो भिक्षु काहे को बने। खैर फिर भी मैं गयी।


सिंहासन पर गुरुजी बैठे थे। उन्होंने चेहरे को पंखे से ढक रखा था। उन्हें देखने को मैं दूसरी ओर बढ़ी, उन्होंने मुंह फेरकर फिर से चेहरा ढक लिया। मैं देखने की कोशिश करती और वह चेहरा ढक लेते। कई बार यही हुआ और हमें गुरु का चेहरा दिखाई नहीं दिया।


जब सचिव महोदय हमें वापस पहुंचाने बाहर तक आये,तब हमने उनसे पूछा-‘महास्थविर मुख पर पंखा क्यों रखते हैं?’ उन्होंने जवाब दिया-‘वह स्त्री का मुख दर्शन नहीं करते।’ हमने अपने स्वभाव के वशीभूत उनसे साफ-साफ कहा-‘देखिये -इतने दुर्बल आदमी को हम गुरुजी न बनाएंगे।


आत्मा न तो स्त्री है, न पुरुष,केवल मिट्टी के शरीर को इतना महत्व है, कि यह देखेंगे वह नहीं देखेंगे।’ और मैं वापस चली आयी। बाद में उनके कई पत्र आये। बार-बार पूछते-‘आप दीक्षा कब लेंगी।’ हमने कहा-‘अब क्या दीक्षा लेंगे! इतने कमजोर मनोबल वाला हमें क्या देगा।’ 


और इस तरह महादेवीजी बौद्ध भिक्षुणी बनते-बनते रह गयीं और महादेवी के रूप में हिन्दी जगत् को मिला छायावाद का एक महान् स्तम्भ।


।। पुरुषोत्तम शर्मा।।

    15/12/2021

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