सोमवार, 2 मई 2022

काश / रतन कुमार अगरवाला

 कविता /: काश


लोग सपने तो बहुत देखते हैं, पर उन्हे पूरा करने के लिए कर्म पथ पर पूरे उद्यम के साथ बिरले ही आगे बढ़ते हैं । भाग्य के सहारे बैठे रहने से भाग्योदय नहीं होता । इसी भाव को शब्दों में पिरोने की एक छोटी सी कोशिश है मेरी रचना “काश”…………..


काश ऐसा होता, काश वैसा होता,

काश ये न होता, काश वो न होता ।

काश, “काश” से पूरी होती आस,

बन गया “काश” सिर्फ सपनो का आकाश ।


काश में जो सिमट कर रहता,

मिलता नही उसे आज से अवकाश ।

कल की राह वह ढूंढ न पाता,

काश ही उसके सपनो का आकाश ।


काश की कैद से निकल अगर,

कल पर करता गहरी शोध,

और भी बहुत हो जाता हासिल,

प्रगति में होता न यूं अवरोध ।


बुरी होती यह काश की बंदिशें,

दिमाग हो जाता काश से कुंद ।

काश से न मिलता आकाश,

कल का मार्ग हो जाता रूद्ध ।


मिलता उन्हीको अपना आकाश,

जो न रहते काश के साथ ।

छोड़ कर लगाम इस काश की,

आगे बढ़ते जोश के साथ ।


काश का चोगा पहनते जो,

छोटी लड़ाई भी जाते हार ।

लक्ष्य की ओर जो बढ़ते जाते,

जीत जाते हर बड़ा समर ।


काश तो होता सपनो का वास,

पूरे करने को करो साधना ।

काश में ही मिट जायेंगे सब,

अगर न हो लक्ष्य की आराधना ।


छोड़ो अभी से काश का दामन,

कर्म पथ का करो आचमन ।

बढ़ो सदा गंतव्य की ओर,

शिखर से होगा आर्लिंगन् ।


काश तो है बहाना आलस्य का,

कुछ न करने का आलम है काश ।

काश की वेदना काश कोई जाने,

काश में है हताशा और संत्रास ।


काश से कभी न पूरे होते सपने,

रह जाते सपने यूहीं आधे अधूरे ।

काश का दामन न छोड़ें तो,

रह जाएंगे पीछे कदम बहुतेरे ।


काश से न होता जीवन यापन,

काश ही में रह जाओगे आजीवन ।

काश से न होता जीवन का आकलन,

काश नहीं कभी कर्म का साधन । 


काश के स्वप्नजाल में फंसे लोगों को आगाह करती हुई रचना ।



  रतन कुमार अगरवाला

गुवाहाटी, असम

सृजन तिथि : १५.०८.२०२१


हिन्दी विभाग मगध विवि

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