कविता /: काश
लोग सपने तो बहुत देखते हैं, पर उन्हे पूरा करने के लिए कर्म पथ पर पूरे उद्यम के साथ बिरले ही आगे बढ़ते हैं । भाग्य के सहारे बैठे रहने से भाग्योदय नहीं होता । इसी भाव को शब्दों में पिरोने की एक छोटी सी कोशिश है मेरी रचना “काश”…………..
काश ऐसा होता, काश वैसा होता,
काश ये न होता, काश वो न होता ।
काश, “काश” से पूरी होती आस,
बन गया “काश” सिर्फ सपनो का आकाश ।
काश में जो सिमट कर रहता,
मिलता नही उसे आज से अवकाश ।
कल की राह वह ढूंढ न पाता,
काश ही उसके सपनो का आकाश ।
काश की कैद से निकल अगर,
कल पर करता गहरी शोध,
और भी बहुत हो जाता हासिल,
प्रगति में होता न यूं अवरोध ।
बुरी होती यह काश की बंदिशें,
दिमाग हो जाता काश से कुंद ।
काश से न मिलता आकाश,
कल का मार्ग हो जाता रूद्ध ।
मिलता उन्हीको अपना आकाश,
जो न रहते काश के साथ ।
छोड़ कर लगाम इस काश की,
आगे बढ़ते जोश के साथ ।
काश का चोगा पहनते जो,
छोटी लड़ाई भी जाते हार ।
लक्ष्य की ओर जो बढ़ते जाते,
जीत जाते हर बड़ा समर ।
काश तो होता सपनो का वास,
पूरे करने को करो साधना ।
काश में ही मिट जायेंगे सब,
अगर न हो लक्ष्य की आराधना ।
छोड़ो अभी से काश का दामन,
कर्म पथ का करो आचमन ।
बढ़ो सदा गंतव्य की ओर,
शिखर से होगा आर्लिंगन् ।
काश तो है बहाना आलस्य का,
कुछ न करने का आलम है काश ।
काश की वेदना काश कोई जाने,
काश में है हताशा और संत्रास ।
काश से कभी न पूरे होते सपने,
रह जाते सपने यूहीं आधे अधूरे ।
काश का दामन न छोड़ें तो,
रह जाएंगे पीछे कदम बहुतेरे ।
काश से न होता जीवन यापन,
काश ही में रह जाओगे आजीवन ।
काश से न होता जीवन का आकलन,
काश नहीं कभी कर्म का साधन ।
काश के स्वप्नजाल में फंसे लोगों को आगाह करती हुई रचना ।
रतन कुमार अगरवाला
गुवाहाटी, असम
सृजन तिथि : १५.०८.२०२१
हिन्दी विभाग मगध विवि
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