शिव बटालवी खालसा कॉलेज में../
. मैंनू तेरा शबाब लै बैठा...
पंजाबी के निश्चित रूप से सबसे सशक्त गीतकारों में से एक शिव बटालवी को करोल बाग के खालसा कॉलेज में आए हुए आधी सदी से ज्यादा का वक्त गुजर गया है, पर अब भी कुछ लोगों को याद है जब उनकी रचनाओं पर सैकड़ों श्रोता झुम उठे थे।
शिव बटालवी कविता पाठ करते हुए रो भी रहे थे। यह बात 1970 की है।शिव बटालवी तब अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे। उन्होंने अपना कविता पाठ इस रचना से शुरू किया-
मैंनू तेरा शबाब लै बैठा,
रंग गोरा गुलाब लै बैठा।
किन्नी पीती ते किन्नी बाकी ए
मैंनू एहो हिसाब लै बैठा
चंगा हुंदा सवाल ना करदा,
मैंनू तेरा जवाब लै बैठा
दिल दा डर सी किते न लै बैठे
लै ही बैठा जनाब लै बैठा।
शिव कुमार बटालवी की आज 6 मई को पुण्यतिथि है। विरह के कवि शिव बटालवी को खालसा कॉलेज में पंजाबी के साहित्यकार डॉ हरभजन सिंह लेकर आए थे। वहां पर हरमीत सिंह भी मौजूद थे। वे तब खालसा क़ॉलेज के छात्र थे और आगे चलकर यहां के शिक्षक और फिर प्रिंसिपल भी बने।
की पुछ दे ओ हाल फ़कीरां दा
शिव कुमार 'बटालवी' ने जैसे ही अपना गीत... की पुछ दे ओ हाल फ़कीरां दा
साडा नदियों बिछड़े नीरां दा
साडा हंज दी जूने आयां दा
साडा दिल जलया दिलगीरां दा...(हम जैसे फ़कीरों का हाल आप क्या पूछते हैं, हम तो नदियों से बिछड़े पानी जैसे हैं। जैसे किसी आंसू से निकले हैं) सुनाया तो खालसा कॉलेज में मौजूद श्रोता, जिनमें मुख्यरूप से पंजाबी थे, की आंखें छलकने लगीं।
शिव कुमार बटालवी (1936 -1973) की उन कविताओं को सबसे ज्यादा पसंद किया गया, जिनमें करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है।वे 1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बने। शिव कुमार बटालवी अपने दिल्ली के कार्यक्रमों में अपनी इन कालजयी पंक्तियों-
पिच्छे मेरे, मेरा साया
अग्गे मेरे, मेरा न्हेरा
किते जाए न बाहीं छड्ड
वे तेरा बिरहड़ा
(पिच्छे – पीछे, अग्गे – आगे, न्हेरा – अँधेरा, बाहीं – बाँह, छड्ड – छोड़) तथा
बिरहा बिरहा आखिए
बिरहा तूं सुल्तान
जिस तन बिरहा न उपजे
सो तन जान मसान (आखिए – पुकारिए, कहिए) अवश्य सुनाया करते थे। कह सकते हैं कि सुनाते इसलिए थे क्योंकि श्रोताओं की मांग होती थी। शिव ने Sapru House और Chamesford club में भी कई बार अपनी रचनाएं पढ़ी! उनके कार्यक्रमों में पाकिस्तान उच्चायोग के पंजाबी मुलाजिम सपरिवार आते थे.
अमृता प्रीतम के घर में शिव
दिल्ली में शिव कुमार बटालवी आएं और अमृता प्रीतम के 25 हौज ख़ास वाले घर में ना हाजिरी दें और अपनी ताजा रचनाए ना सुनाएं यह संभव नहीं था। अमृता प्रीतम जी का घर पंजाबी साहित्य की अनमोल धरोहर था। शिव कुमार बटालवी के आने पर एक महफिल खासतौर पर आयोजित होती थी। उसमें चित्रकार इमरोज़,हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी और उर्दू के लेखक करतार सिंह दुग्गल, सरदार नानक सिंह ( पवित्र-पापी फिल्म के निर्माता), डॉ. हरभजन, गुरुबख्श सिंह, महेन्द्र सिंह सरना ( भारत के अमेरिका में एंबेसेडर रहे नवतेज सरना के पिता), कुंवर महेन्द्र सिंह बेदी, उद्य़ोगपति सागर सूरी, पंजाबी के गायक केसर सिंह नरूला ( जसपिंदर नरूला के पिता) वगैरह अवश्य मौजूद रहते थे।
एक बार काव्य की धारा बहने लगती तो फिर वे अलसुबह तक जारी रहती। इस बीच, केसर सिंह नरूला और उनकी पत्नी मोहिनी नरूला किसी महफिल में पंजाबी का सदाबहार लोकगीत लट्ठे दि चादर, उत्ते सलेटी रंग माइया गाने के बाद शिव बटालवी की रचनाएं सुनाते थे। नरूला जी बताते थे कि अमृता प्रीतम के दिल के बहुत करीब थीं शिव बटालवी की रचनाएं। वह शिव की रचनाएं बार-बार पढ़ा करती थीं।
Vivekshukladelhi@gmail.com
Navbharattimes 6.5.2022
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