मगही के कबीर के नाम से विख्यात निर्गुण धारा के उपासक कवि राम पुकार सिंह राठौर का निधन हो गया। वे लगभग 93 वर्ष के थे।
हमेशा धोती, कुर्ता और गांधी टोपी पहनने वाले राठौर जी से मेरी पहली मुलाकात 1976 के आसपास हुई थी। जब मैंने कविताएं लिखनी शुरू की थी। बाल-सुलभ उत्साह था। उन दिनों गया में कई महत्वपूर्ण रचनाकार रहते थे। मोहनलाल महतो वियोगी, सुरेंद्र चौधरी, राम नरेश पाठक, नारायण लाल कटारिया,, योगेन्द्र चौधरी, हंसकुमार तिवारी, विश्वनाथ सिंह, बैजनाथ प्रसाद खेतान,अवधेन्द्र देव नारायण, गोपाल लाल सिजुआर, शिल्पी सुरेंद्र, गोवर्द्धन प्रसाद समय, रामपुकार सिंह राठौर, राम सिंहासन सिंह विद्यार्थी, मणिलाल आत्मज और कई लोग अभी याद नहीं आ रहे अब ये सभी दिवंगत हो चुके हैं । हम लगभग रोज मिलते।
प्रवीण परिमल और सुरेश कुमार मेरे सहपाठी थे। हम तीनों ने एक पत्रिका निकालने की योजना बनाई। नाम रखा मृगांक।
पहले से भी कई पत्र-पत्रिकाएं निकल रही थीं लेकिन जनभागीदारी या जनस्वीकृति नहीं थी। हमारी इस शुरुआत को सबने अपना माना। रचनात्मक सहयोग पूरे देश से मिला। अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अपनी एक लंबी कहानी भेजी जिसे हमने दो अंकों में प्रकाशित किया था।वियोगीजी से लेकर लगभग सभी गयावाल पंडों ने आर्थिक सहायता की। लोग हंसते पंडे सभी से दक्षिणा लेते हैं और ये लोग पंडों से। शिल्पी सुरेंद्र ने आवरण से लेकर विमोचन समारोह के बैनर तक को बनाया। उन दिनों गया के कलेक्टर थे महेश प्रसाद। एक दिन हम उनसे भी मिले। उन्होंने न केवल आर्थिक मदद की बल्कि प्रवेशांक के विमोचन के लिए ड्राइवर नहीं रहने के बावजूद खुद गाड़ी चला कर आये।
इस पूरे उद्यम में रामपुकार सिंह राठौर एक वरिष्ठ सहयोगी या कहें बड़े भाई की तरह हर समय हमारे साथ रहे और आश्वस्त करते रहे चिंता की कोई बात नहीं, घटे-बढेगा तो देख लेंगे। शिल्पी सुरेंद्र उनके इसी गुण के कारण लोडेड गन कहते थे।
बाद के दिनों में स्थानांतरण की विवशता के कारण मुझे गया छोड़ना पड़ा। हम एक दूसरे का कुशल-क्षेम लेते रहे। कभी-कभार मुलाकात भी हो जाती। हाल के दिनों में पता चला उम्र और स्वास्थ्य संबंधी कारणों की वजह से राठौर जी अब अपने गांव चले गए हैं। हाल-चाल लेता रहा और यह सोचता रहा एक बार उनके गांव जाकर उनसे मिलूंगा।
आज जब यह सूचना मिली तो मन पुराने दिनों की ओर लौट गया है।
मृगांक विमोचन समारोह की कुछ तस्वीरें मिली हैं। दूसरी तस्वीर मे बीच में और तीसरी तस्वीर में सबसे किनारे बैठे हुए राठौर जी।
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