शनिवार, 28 मई 2022

"गिरेबां"*/ अनंग

 *


जो   पाक  गिरेबां   रखते   हैं।

महफिल में वही तो जचते हैं।।


सच्चाई   साथ  रही   जिनके।

सदियों  से वही तो  दिखते हैं।।


इस  धरती पर  वीरों के  लिए।

हर  समर  शेष  ही  रहते  हैं।।


जीना  सीखा  लोगों  के  लिए।

हम  अमर उन्हें  ही  कहते  हैं।।


जिन शांखो में है अकड़ अधिक।

तुफां  में   वही  तो   ढहते  हैं ।।


पाकर   दुलार   पानी  का  वे।

पत्थर  भी  गलकर  बहते  हैं।।


करने  आता   है  प्यार   हमे।

इसलिए   थपेड़े   सहते   हैं।।


मेहनत के बिना जिन्हे मिलता।

जब  देखो  खूब   बहकते  हैं।।..

.*"अनंग"*

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