हिंदी के 10 सदाबहार नाटक
- देवेंद्र राज अंकुर
- रंगकर्मी
खड़ी बोली हिंदी के सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में कई महत्वपूर्ण नाटक लिखे गए और उनका सफलतापूर्वक मंचन किया गया. उन्हीं नाटकों में से मैंने अपने हिसाब से ये 10 सर्वश्रेष्ठ नाटक चुने हैं जो मंचन और पाठ दोनों ही लिहाज से मुझे बहुत प्रिय हैं.
1. अंधेर नगरी – भारतेंदु हरिश्चंद्र
सन् 1881 में मात्र एक रात में लिखा गया नाटक आज भी उतना ही सामयिक और समकालीन है.
बाल रंगमंच हो अथवा वयस्क रंगमंच – यह नाटक सभी तरह के दर्शकों में लोकप्रिय है. एक भ्रष्ट व्यवस्था और उसमें फंसाया जाता एक निरीह – क्या आज भी इस स्थिति में कोई परिवर्तन आया है?
ये नाटक हिंदी रंगमंच में सबसे ज़्यादा मंचित नाटकों में से एक है.
2. ध्रुवस्वामिनी – जयशंकर प्रसाद
भले ही जयशंकर प्रसाद के नाटकों को मंच के अनुकूल न माना गया हो लेकिन ‘ध्रुवस्वामिनी’ हमेशा से रंगकर्मियों के बीच चर्चा का विषय रहा है.
मात्र नाट्य मंडलियों के साथ ही नहीं, स्कूलों कॉलेजों के छात्र-छात्राओं के बीच भी इस नाटक का ख़ूब मंचन हुआ है.
इस नाटक की सबसे बड़ी बात है उसका कथ्य – यदि पति नपुंसक है तो उसे नकारने की पहल स्त्री की तरफ़ से होती है और इसमें धर्म और शास्त्र भी उसका समर्थन करते हैं.
3. अंधा युग – धर्मवीर भारती
महाभारत की कथा के बहाने से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के विनाश, अनास्था और टूटते मूल्यों की महागाथा.
यहां तक कि ईश्वर की मृत्यु की घोषणा. एक काव्य नाटक होने के बावजूद ‘अंधा युग’ रंगमंच पर सबसे ज़्यादा प्रस्तुत होनेवाली कृति है.
4. आषाढ़ का एक दिन – मोहन राकेश
कलाकार अथवा रचनाकार के सामने सृजन या सत्ता में से किसी एक को चुनने का प्रश्न और फिर उसकी परिणति – यह एक ऐसा कथ्य था जिसने सभी रंगकर्मियों को झकझोर कर रख दिया.
शायद ही कोई निर्देशक या कोई रंगमंडली होगी जिसने इस नाटक को न खेला हो. यथार्थवाद का भारतीय स्वरूप क्या होना चाहिए, ‘आषाढ़ का एक दिन’ उसका सबसे अच्छा उदाहरण है.
5. बकरी – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर
समाप्त
सातवें दशक में रंगमंच में लोकतत्वों को लेकर लिखे गए नाटकों में से सबसे सफल और चर्चित नाटक रहा ‘बकरी’.
इस नाटक में नौटंकी लोक नाट्य शैली के गीत-संगीत के माध्यम से एक आधुनिक कथ्य की प्रस्तुति की गई है कि नेता लोग किस तरह जनता को अपनी स्वार्थपूर्ति का साधन बनाते हैं.
सर्वेश्वर जी का ये नाटक रंगकर्मियों और दर्शकों में समान रूप से लोकप्रिय है.
6. एक और द्रोणाचार्य – शंकर शेष
आधुनिक शिक्षा पद्धति पर एकलव्य और द्रोणाचार्य की कथा के माध्यम से गहरा प्रहार किया गया है.
इस नाटक में दो समानांतर प्रसंग एक साथ चलते हैं. एक प्रसंग महाभारत का है तो दूसरा आज के एक प्राध्यापक और उनके परिवार का प्रसंग.
‘एक और द्रोणाचार्य’ हमारे अपने रोज़मर्रा के सरोकारों से जुड़ा एक सशक्त नाटक है.
7. कबीरा खड़ा बाज़ार में – भीष्म साहनी
कबीर की ज़िन्दगी, कबीर की कविता और उससे भी ज़्यादा एक कलाकार, महात्मा और तत्कालीन व्यवस्था के बीच टकराव का चित्र है ये नाटक.
आज के सांप्रदायिक दंगों और तनावों के बीच और भी सामयिक है ये नाटक.
8. महाभोज – मन्नू भंडारी
भले ही पहले यह रचना एक उपन्यास के रूप में की गई लेकिन बाद में एक नाटक के रूप में बेहद चर्चित और मंचित हुई.
इसकी वजह वही है कि नेता लोग किस तरह चुनाव जितने के लिए कथित रूप से निरीह लोगों की हत्या को भी हथियार बना लेते हैं.
यह एक ऐसा कथ्य है जिसे हर आम आदमी ने भुगता और झेला है.
9. कोर्ट मार्शल – स्वदेश दीपक
हिंदी रंगमंच में दलित पात्र को केंद्र में रखकर लिखा गया बहुत सशक्त नाटक है ये.
मुक़दमे की कार्यवाही नाटक के शिल्प और संरचना को नाटकीय तनाव से भर देती है. नतीजा यह कि दर्शक बंधे से बैठे देखते रहते हैं.
10. जिस लाहौर नई देख्या – असग़र वज़ाहत
1947 के भारत विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया ये पहला नाटक है.
कहानियों और उपन्यासों में भले ही यह कथ्य बार-बार आता रहा हो, लेकिन नाटक में अपनी आँखों के सामने देखने वाले दर्शकों को बेहद जकड़ लेता है इसका कथानक.
(प्रस्तुति: अमरेश द्विवेदी)
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए क्लिक करें. आप हमें क्लिक करें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)