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इन दिनों समकालीन कविता में कविता के किसी भी फॉर्मेट का मूल्याँकन कविता के दमदार कथ्य से होता है। पहले कथ्य फिर फिर बात आती है अन्तर्लय की ...छंद...रस...अलंकार....अब इनकी कोई परवाह नहीं करता
गीत भी कविता ही है। भगवती प्रसाद द्विवेदी जी की प्रस्तुत कविताएँ, समसामयिक और प्रभावी कथ्य के चलते प्रभावी बन पड़ी हैं।
पढ़ते हैं दो नवगीत कविताएँ
प्रस्तुति_ वागर्थ
एक
टप-टप
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मुनुआ की
माई लिखवाती
मुनुआ के बापू को पाती।
टप-टप
नासूर-सी
टपक रही मड़ैया,
ठिठुर रही
खोंते में
भीगी गौरैया
नयन हुए
बदरा बरसाती,
जिनगी की नाव डगमगाती।
लिख दो
नन्हका मुनुआ
कर रहा मज़ूरी,
भूख के
मदरसे में
पढ़ता मज़बूरी
पेट की अगिन
बस धुँधुआती,
रोजी-रोटी दियना-बाती।
गूँगे कल की,
लँगड़े
आज की कहानी,
चढ़ती है
बिटिया की
सूद-सी जवानी
बबुआनों की
ठकुरसुहाती,
डसती हैं नज़रें उत्पाती।
जोह रहीं
छानी
छप्पर तेरी बटिया,
बिसराकर
हम सबको
बन गए कलकतिया!
हूक हिया में
उठ-उठ जाती,
पपिहा की पिउ-पिउ तड़पाती।
दो
पानीदार
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पावस से है
प्यार अगर तो
पानीदार बनो।
पानीदार
बनोगे
संवेदना-तरलता से,
कल-कल छल-छल
लहरों की
गतिमान चपलता से
किसी
पहाड़ी झरने की
निर्मल जलधार बनो।
जीवन की
गति है
नदिया का बस बहते जाना,
लोक के लिए
खा मौसमी
थपेड़े, मुसकाना
तृषित धरा की
तृप्ति के लिए
मदिर फुहार बनो।
बदरा में पानी
आँखों का
पानी बाकी है,
पानी से ही
जीवन
और रवानी बाकी है
मरे न
आँखों का पानी,
इसलिए उदार बनो।
ख़ुदगर्जी में
ख़ून बहाया
बहा पसीना क्या,
नदी-धर्म
गर नहीं निभाया
जीना जीना क्या!
किसी डूबती
नैया के
तुम खेवनहार बनो।
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भगवती प्रसाद द्विवेदी
शकुन्तला भवन, सीताशरण लेन, मीठापुर,
पटना-800 001(बिहार)
चलभाष:9304693031
ईमेल:dubeybhagwati123@gmail.com
@everyone
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