मंगलवार, 11 जुलाई 2023

भारत_की_अनाम_वीरांगनाएं.....#तारादेवी...

 

प्रस्तुति _  रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


"मैं महात्मा गांधी के चरण स्पर्श नहीं करूंगी, क्योंकि देश की आजादी में मेरा योगदान उनसे ज्यादा है...मैने अपना पति खोया है...... "  स्वाभिमान से ऐसा कहने वाली.....महान स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती तारादेवी

जिन्होंने अपना सर्वस्व होम कर दिया अपने राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए.....!


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महाराजगंज के शहीद_फुलेना_बाबू और तारा_देवी का त्याग और बलिदान अविस्मरणीय है। कम उम्र में तारा देवी की शादी आजादी के _दीवाने_फुलेना_बाबू से हो गई थी। दोनों महाराजगंज इलाके में आजादी का अलख जगाने में लगे थे।

    


एक ऐसी महिला_स्वतंत्रता_सेनानी जिसने_शादी की पहली_रात पति के साथ_प्रण_किया कि देश आजाद होने पर ही बच्चे को जन्म_देंगे। तब तक वह कुंवारी बनकर रहेंगी। हम बात कर रहे हैं बिहार के तत्कालीन सारण और वर्तमान सिवान जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद फुलेना बाबू और उनकी पत्नी तारा देवी की। 1942 में जब महात्मा_गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की थी, उस समय सिवान के महाराजगंज में इस आंदोलन का नेतृत्व इसी दंपत्ती ने संभाल रखा था। आजादी मिलती और इनका प्रण पूरा होता। 


दांपत्य जीवन की गाड़ी आगे बढ़ती, इससे पहले नियति को कुछ और ही मंजूर था। #16 अगस्त 1942 को महाराजगंज थाने पर तिरंगा फहराने के दौरान अंग्रेजी_हुकूमत की गोली से फुलेना बाबू शहीद हो गए। तब तारा देवी ने अपने पति के शव के साथ पूरी रात अकेले बिताई थी। उन्होंने कहा था कि आज ही हमारी शादी हु ई है


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महाराजगंज के शहीद फुलेना बाबू और तारा देवी का त्याग और बलिदान अविस्मरणीय है। कम उम्र में तारा देवी की शादी आजादी के दीवाने फुलेना बाबू से हो गई थी। दोनों महाराजगंज इलाके में आजादी की अलख जगाने में लगे थे। सिवान का बंगरा_इकलौता ऐसा गांव है, जहां से 27 लोग स्वतंत्रता सेनानी हुए। जिनमें एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह अब भी जीवित और स्वस्थ हैं। 


वे फुलेना बाबू और तारा देवी के साथ आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। हालांकि तब मुंशी सिंह 8वीं कक्षा के छात्र थे। लेकिन उनका जज्बा देख स्वाधीनता संग्राम के बड़े नेता भी उन्हें अपना सानिध्य देते थे। मुंशी सिंह  तारा देवी के जीवन की कई बातें बताईं।


16 अगस्त 1942 को महाराजगंज थाने पर तिरंगा फहराने के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी फुलेना बाबू और उनकी पत्नी तारा देवी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में क्रांतिकारी युवा लगातार आगे बढ़ रहे थे। उस वक्त महाराजगंज थाने के दारोगा थे रहमत अली। थाने की तरफ आती भीड़ को रोकने के लिए रहमत अली और थाने में तैनात ₹सिपाहियों ने भीड़ के ऊपर बंदूकें तान दीं। पुलिस को एक्शन में देख क्रांतिकारियों के कदम ठहर गए। वहां अफरातफरी मच गई। 


स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह बताते हैं कि तब उनकी उम्र 12 वर्ष थी लेकिन आगे कि पंक्ति में फुलेना बाबू और तारा देवी के साथ वो भी खड़े थे। मुंशी सिंह के मुताबिक दारोगा रहमत_अली ने फुलेना बाबू को निशाने पर लेकर वापस लौट जाने का हुक्म दिया। वैसे तो फुलेना बाबू बंदूक से डरने वालों में नहीं थे। लेकिन उनसे पहले तारा देवी ने ही उन्हें आगे बढ़ने को कहा। जैसे ही फुलेना बाबू आगे बढ़े पुलिस ने गोलियां_बरसानी शुरू कर दी। फुलेना बाबू को 9 गोलियां लगी। वे वहीं गिर पड़े।


फुलेना बाबू और तारा देवी के जीवन का लक्ष्य देश को आजादी दिलाना था। मुंशी सिंह ने कहा कि फुलेना_बाबू को गोली_लगने के बाद जनता_बेकाबू हो गई। पुलिस भीड़ पर गोलियां बरसा रही थी और इधर से ईंट-पत्थर चलाये जा रहे थे। तब थाने को जला देने का फैसला किया लिया गया। फुलेना बाबू को गोली लगने के बाद तारा देवी विचलित नहीं हुईं। बल्कि साथियों के साथ आगे बढ़कर महाराजगंज थाने पर झंडा फहराया। उग्र भीड़ के आगे पुलिस की एक न चली।


16 अगस्त की रात क्रांतिकारी साथी स्वतंत्रता सेनानी फुलेना बाबू का शव लेकर उनके घर बालबंगरा पहुंचे। दरअसल बालबंगरा तारा देवी का मायका और फुलेना बाबू का ससुराल था। तारा देवी ने खून से लथपथ पति के शव को एक कमरे में रखवा लिया। इसके बाद उन्होंने वहां मौजूद सभी लोगों से अपने-अपने घर चले जाने को कहा। मुंशी सिंह बताते हैं कि रात 10 बजे के बाद तारा देवी ने दिव्य रूप धारण कर लिया। उन्होंने अपने बालों का जुड़ा खोल दिया और एक साड़ी में लिपट कर वह पूरी रात पति के पास अकेली बैठी रहीं। वहां किसी के जाने की हिम्मत नहीं थी। उन्होंने कहा था कि आज ही हमारी शादी हुई है। अब सुहाग की रात है। हमें एकांत में छोड़ दीजिए। अगले दिन फुलेना बाबू का अंतिम संस्कार हुआ। जिसमें तारा देवी भी शामिल हुईं, लेकिन उनकी आंखों से एक बूंद भी आंसू नहीं टपका।


16 अगस्त 1942 की घटना के बाद महाराजगंज अंग्रेजों के निशाने पर आ गया। घटना के करीब एक सप्ताह बाद बड़ी संख्या में गोरे सिपाही आए, जो बर्बता की हदें पार करने लगे। स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों की गिरफ्तारी शुरू हो गई। जो स्वतंत्रता सेनानी नहीं पकड़े गए उनकी घरों में आग लगा दी गई। इसी दौरान तारा देवी और उनके साथ मुंशी सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया। आजादी के बाद भी तारा देवी राजनीति में सक्रिय रहीं। चुनाव भी लड़ा, लेकिन जीत न सकीं।


महात्मा गांधी का पैर छूने से किया इनकार


भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के बीच महात्मा गांधी सर्वमान्य थे। उनका सभी आदर करते थे। स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह ने पुरानी बातों को याद करते हुए बताया कि एक बार बनारसी दास चतुर्वेदी तारा देवी को लेकर महात्मा गांधी से मिलने पहुंचे। कहा जाता है कि वहां तारा देवी से महात्मा गांधी के पैर_छूकर_आशीर्वाद लेने को कहा गया। लेकिन तारा देवी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी से अधिक_योगदान उनका है। आजादी की लड़ाई में उन्होंने अपने पति का बलिदान दिया है। ऐसे में महात्मा गांधी का पैर क्यों छुएं। यह सुन कर वहां खड़े सारे लोग स्तब्ध रह गए। मुंशी सिंह कहते हैं कि तारा देवी स्वभाव से ही क्रांतिकारी थीं। बहुत ही स्वाभिमानी वीरांगना थीं। किसी के सामने नहीं झुकती थीं।

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