मंगलवार, 4 जुलाई 2023

चचेरी ,ममेरी ,मौसेरी शादीशुदा बहने / मधु

 चचेरी ,ममेरी ,मौसेरी शादीशुदा 

बहने नही मिल पाती बरसों ।

ढेरों तर्क है ना मिलने के ...

मायके जाना समझ आता है

 लेकिन अब तुम चचेरी, ममेरी

 संग निभाओगी तो गृहस्थी कौन सम्हालेगा ?


 सगी हो तो जाओ मगर 

ऐसी बहनों से लम्बा सफर कर 

रहने ,मिलने कौन जाता है ?

शादी बाद कौन इतनी 

दूर तक निभाता है ?

ये फुफेरी , ममेरी खुद भी डरती है बुलाने से  

पति बहन के बच्चों को कही घुमाने नही ले गए तो ...?

वैसे भी सास ससुर को सगे तो पसन्द नही

फिर ये तो फुफेरी, ममेरी ठहरी /

वो उदास चुप हो जाती है

लेकिन बहनों को भुलाना आसान नही ।


 ये वो कलेजे के टुकड़े सी बहनें है जिनके बिना बचपन ना पूरा ,

जिनके किस्सों बिना जवानी अधूरी ।

तीज त्यौहार , बर बिहाव पर ,

एक दूसरे के कपड़े ,सैंडल , झुमके उधार पहनती  /

सावन में मेहंदी हाथों में संग संग,

 एक दूसरे की ढंग ढंग की चोटियाँ गाथती  /

 गुजरते चाट के ठेले रोकती ,

मैचिंग चुन्नियों के लिए बाज़ार साथ डोलती /

उमस वाली दोपहरी दुनिया भर के किस्से ,

पास पड़ोस की छिपी कहानियाँ बताती ।

कभी किसी की नकलें उतारती ,

कभी किसी सी शक्लें बनाती ।


परब , हल्दी , माँगर-माटी

काजल अंजाई पर नेग माँगती ।

संग दिन गुजारने हुलसती और

एक खाट में पूरी रात खुसर पुसर और ठिठोली ।

बहन की शादी पर मारे खुशी

आसमान सर पर उठाती  ।


कभी जीजा का नाम ले छेड़ती 

कभी देवर पर चुहल करती है ।

जयमाला में बढ़चढ़ खड़ी ,

सजी खुद भी दुल्हन सी ।

जूता चुरा घण्टो हुज्जत कर

नेग के लिए दंत निपोरी करती है ।


विदा बखत गले लग खूब रोती ,

खूब रोती ये संगवारी बहने ।

जैसे दुल्हन बनी बहन ले जा रही 

छाती तोड़ कर आत्मा का 

आधा हिस्सा अपने सासरे ।

बस ये विदाई ऐसी , 

जैसे विसर्जित कर दिया कोई दीप ।

बिछवे पहनते ही रिश्ते की बहनों का किस्सा खत्म हो जाता है।

पर्दा गिर जाता धड़कते जीवन दृश्य पर  ।

ये सिंदूर रेखा बन जाती है सीमा समाप्ति की रेखा ।


मिलती है ये शादीशुदा चचेरी ,ममेरी ,मौसेरी बहनें

बरसों बाद पीहर के किसी बर बिहाव में  ।

अपने बच्चों की परीक्षा , सास के ऑपरेशन , 

ननद की डिलवरी की बाधाएं लाँघती ।

घुसती है सूटकेस , बैग , बच्चों की उंगलियाँ थामें हरे मंडप तले  ..।


लगती है खिलखिलाती हुई गले,

गदराए बदन ।

अरसे की वंचित अहसास की गर्मी से 

जमी बर्फ पिघलने लगती है अचानक ।


 अपने सूटकेस में लेकर वो आती 

खोया बचपन  ,भूली तरुणाई , अल्हड़ कुंवारे दिन ।

बरसों पहले की वो लड़की आज जनवासे में हलाकान ,

कभी गिरते पल्ले 

तो कभी रोते बच्चे सम्हलाती ।

आँखों आँखों में तौलती है एक दूसरे के हालात और

करती है बातें दिल खोलकर पुरानी ।

बीत जाते है शादी के ये चार दिन 

नेग-चार , बन्ना-बन्नी में ।


फिर एक बार बरसों ना मिलने लेती है बिदा ,

 मिलती है गले देर तक बिना एक शब्द बोले ।

यह खामोश आलिंगन चुप ढाँढस देता कि

मैं आज तक नही भूल पाई

रतजगों वाली वो ठिठोलियाँ ।

नम पलकों से लिपटी छुवन कहती कि

 याद बहुत करती हूँ उन बेपर्दा, 

दिल से दिल तक बातों को ।


लिपटी खड़ी चुप सुनती है बिछड़ती बहनें ,

एक दूसरे की धड़कन 

जो बताती है कि मैं तुम्हे बहुत, बहुत प्यार करती हूँ  लेकिन

मिल नही पाती हूँ क्योकि

हम एक पेट की जाया नही ...।


एक उम्र बाद ,..

..गुजरी उम्र बहुत पुकारती है...।

लड़कियों को "ठीहा" बदलने के बाद 

चचेरी ,ममेरी , मौसेरी , फुफेरी को भूलना होता है ।


.....Happy sisters's Day....

(पोस्ट शेयर करने अनुमति की आवश्यकता नही है।)


Madhu _ writer at film writers association Mumbai

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