आदमी है या तू पत्थर बोल बे,
पूछता है फिर मणीपुर बोल बे.
लोग तो कटते रहे, मरते रहे,
क्यों हुआ कानून बेघर बोल बे.
आंख भर तो चाहिए थी रौशनी,
क्यों वहाँ जलते रहे घर बोल बे.
कर दिया क्यों बाग़ का तूने बता,
नफ़रतों के नाम मंज़र बोल बे.
हो गई नंगी उधर सरकार भी,
हो गया अब सच उजागर बोल बे.
कान से जैसे लहू रिसने लगा,
क्यों तिरी आवाज़ ख़ंजर बोल बे.
ये सियासत है या सीरत है तिरी,
बन गया कैसे सितमगर बोल बे.
मोम का पुतला बना क्यों चुप रहा,
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