शुक्रवार, 10 जून 2022

सच तो यह है कहने को मैं जिंदा हूँ !/ उमाकांत दीक्षित

 सच तो यह है कहने को मैं जिंदा हूँ !

लेकिन खुद के  होने  पर शर्मिंदा हूँ !


मेरी कोशिश  बेहतर  इंसां  होने की,

दुनिया की नज़रों में सिर्फ दरिंदा हूँ !


जिसको मैंने अपनी ये दो आंखें  दीं,

वह कहता है,  मैं आंखों से अंधा हूँ !


मेरा अच्छा बुरा तो सब ईश्वर जाने,

मैं तो उसके दर का बस कारिंदा हूँ !


एक ना खाए, तो सब भूखे सोते हैं,

मैं तो  ऐसी  दुनिया का बाशिंदा हूँ !


तुझमें मुझमें फर्क भला कैसे होगा,

मैं भी आखिर अल्लाह का ही बंदा हूँ !

@ उमाकांत दीक्षित

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