शनिवार, 11 जून 2022

जब मैं रोमांचित हो गया डॉ धनंजय singhv

 बात १९६८-६९ या १९६९-७० के शिक्षा-सत्र की है ! महानंद मिशन हरिजन महा विद्यालय,गाज़ियाबाद में कवि-सम्मलेन आयोजित था! कविवर श्रद्धेय श्री भवानी प्रसाद मिश्र अध्यक्षता कर रहे थे! तीन-चार कवियों के काव्य-पाठ के बाद एक छात्र कवि को कविता-पाठ के लिए आमंत्रित किया गया ! उसने एक गीत सुनाया और मंच से चला गया ! उसका काव्य-पाठ समाप्त होते ही भवानी दादा उठकर माइक पर आये ! अध्यक्ष का बीच में माइक पर आना असाधारण बात थी ! माइक पर आते ही दद्दा ने बोलना आरम्भ किया , " चौंकिए नहीं, मैं कविता-पाठ करने नहीं आया हूँ ! मुझे तो अभी जो छात्र कविता -पाठ करके गया है, उसने माइक पर आने को विवश कर दिया है! उसने जब गीत आरम्भ किया तो गीत की पहली पंक्ति सुन कर मैं डर गया ! डरा मैं यों कि जहां से उसने गीत आरम्भ किया था , सामान्यतः गीत का वहां समापन होता है ! मैंने सोचा कि अब गीत इससे आगे क्या कह पाएगा ? लेकिन वह गीत पढता गया और गीत उतरोत्तर आगे बढ़ता गया ! ऐसी स्थिति में मैं उसे आशीर्वाद न दूँ , तो यह अपराध होगा ! मैं इस छात्र कवि को अपने हृदय से शुभाशीर्वाद देने आया हूँ !"

                                  वह छात्र कवि मैं था !

इस घटना को याद करके मैं आज भी रोमांचित हो उठता हूँ ! 

                                       ------- धनञ्जय सिंह.

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