गुरुवार, 16 जून 2022

आत्मकथ्य सृजन लेखन और पठन पाठन का / धीरेन्द्र अस्थाना

 मैं कहानी में पठनीयता और रोचकता का कायल हूं। इन गुणों के बिना महान कथ्य भी अपठित रह जा सकता है।

मुझे कहानी में रोचकता का गुण दादा दादी से सुनी कहानियों से नहीं,उनके द्वारा दी गई किताबों से प्राप्त हुआ-- किस्सा तोता मैना,किस्सा हातिमताई,गुल सनौवर की कथा, विक्रमादित्य और बेताल। और बाद में चंद्रकांता संतति, भूतनाथ,लाल रेखा आदि। फिर गुलशन नंदा, प्रेम बाजपेयी,रानू, वेद प्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, इब्ने सफी बीए, कर्नल रंजीत, जासूसी पंजा वगैरह।

  और इसके बाद तो साहित्य को आना ही था।

सोलह की उम्र तक प्रेमचंद, यशपाल, जयशंकर प्रसाद, अमृत लाल नागर, भगवती चरण वर्मा, जैनेन्द्र कुमार, निराला, हजारी प्रसाद द्विवेदी, उपेन्द्र नाथ अश्क, अमृता प्रीतम, फिराक गोरखपुरी, कमलेश्वर,मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती, फणीश्वर नाथ रेणु, भैरवप्रसाद गुप्त, निर्मल वर्मा, मार्कंडेय,शेखर जोशी, मुक्तिबोध और सोवियत साहित्य पढ़ा जा चुका था।

फिर तो सिलसिला चल निकला,जो आज रेत समाधि पढ़ने तक जारी है।



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