यह उस के लिए कोई नया अनुभव नहीं था। पर अनुभव तो था ही। प्रेम उस ने कई बार किया था। जो लोग कहते हैं कि प्रेम सिर्फ एक बार होता है, उसे उन लोगों पर तरस आता है। उस का मानना है कि जैसे किसी का एक बार खाना खाने से पेट नहीं भर सकता, वैसे ही किसी की जिंदगी सिर्फ़ एक प्रेम से नहीं चल सकती, हां यह जरूर हो सकता है कि किसी एक प्रेम की तासीर ज्यादा हो, तो किसी और प्रेम की तासीर कम।
उसे
याद है कि उस का पहला प्रेम रिश्ते की एक लड़की से हुआ। कायदे से वह रिश्ते में भी
नहीं थी। बल्कि रिश्तेदार के गांव से थी। वह पहले भी उस से मिला था। पर पहली
मुलाकात में उसे उस से प्यार नहीं हुआ था। एक बार तो वे दिन-रात शहर में साथ रहे, तब भी प्यार नहीं हुआ। एक शादी में जब
वह घाघरा-शमीज पहन कर आई तो उस के दिल की घंटियां बज गईं। वह अचानक धक से रह गया। ‘दिल तो लई गवा, अब का होगा रे!’ फिल्मी गाना उस की जबान पर खट से आ गया।
पर अब वह कुछ कर नहीं सकता था सिवाय प्यार के। लेकिन तब वह उस से कुछ कह भी नहीं
पाया। सिर्फ प्यार करता रहा। एक तरफा। बिना कुछ बोले। बस देखता रहा। उस बार उस
रिश्तेदार के यहां से उस का लौटने का मन नहीं हुआ। पर लौटना तो था ही। वह फिर-फिर
गया उस रिश्तेदारी में। सब कोई मिलता पर वही नहीं मिलती। वह जाता। खेतों से पूछता, मेड़ों से पूछता, फूल-पत्तियों और पेड़ों से पूछता, उस लड़की के बारे में। बिन बोले पूछता।
टीनएज का प्यार था यह। तीन चार साल चला जिसमें बमुश्किल वह दो बार मिली। मिली क्या
दिखी। बस। फिर उस का विवाह हो गया। लेकिन वह उस को भूल नहीं पाया। आज भी नहीं
भूला।
लोग
कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता। पर सच है कि उस का यह प्यार किसी ने
नहीं जाना। बहुत बाद में उस ने जब खुद पत्नी को बताया तो पत्नी ने जाना। फिर मां
ने। और मां को भी शायद पत्नी ने ही बताया।
फिर
कालेज के दिनों में उसे दूसरा प्यार हुआ। दो लड़कियों से एक साथ। फिर अचानक उस ने
पाया कि एक और लड़की उसे अच्छी लगने लगी है। लेकिन इन तीनों में से एक लड़की के
प्यार में वह पागल हुआ। इसी बीच उसे मुहल्ले की भी एक लड़की अच्छी लगने लगी। पर
प्यार वह कालेज वाली उस लड़की से ही करता रहा। दीवानगी की हद तक। उसे चिट्ठियां भी
लिखता। उस के आने-जाने के रास्तों पर वह घंटों खड़ा रहता। कभी वह दिखती, कभी नहीं दिखती। यह प्यार भी उस का
तीन-चार साल चला। पर यह भी एकतरफा था।
जाने
वह कहां गई, और
वह कहां!
पर
यह प्यार सारे शहर ने जाना।
इस
के बाद कुछ और फुटकर प्यार किए उसने। कभी दफ्तर में,
कभी राह में। कभी पड़ोस में,
तो कभी कहीं भी। ऐसे फुटकर प्यारों की उसे ठीक-ठीक याद भी नहीं
है। वैसे भी उसे किसी प्यार में कभी कोई रिस्पांस मिला भी नहीं ।
हां, जब वह ठीक-ठाक नौकरी में आ गया तो और
औरतों से प्रेम किया। उन औरतों का उसे रिस्पांस भी मिला और उन की देह भी। पर बाद
में जब उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि न तो वह प्यार था और न ही कोई खिंचाव
था। यह तो बस आदान-प्रदान था। जस्ट गिव एंड टेक!
लेकिन
उस के मन में प्रेम कहीं न कहीं अंकुआता जरूर था। कभी कोई अच्छा चेहरा देखता तो
रीझ जाता। सोचता कि प्यार करे, पर
व्यस्तता में प्यार का समय ही नहीं मिलता। बात आई-गई हो जाती। लेकिन प्रेम की तलाश
उस की ख़त्म नहीं होती। प्यार तलाशते-तलाशते धीरे-धीरे वह अधेड़ हो गया।
मोबाइल
और इंटरनेट का जमाना आ गया।
उस
ने मोबाइल पर भी प्यार तलाशा। यहां रिस्पांस मिला और खूब मिला। लगा कि जिंदगी में
प्यार तो बहुत है। तो क्या यह ग्लोबलाइजेशन का असर था? या कुछ और। समझना मुश्किल था। ख़ैर, मोबाइल पर उस ने चैटिंग शुरू कर दी। अजब
अफरा-तफरी थी। लोग चैटिंग में जो एक दूसरे को जानते तक न थे, उस के मुहब्बत का इजहार कर रहे थे।
अद्भुत था यह छलावा भी। लोग चैटिंग में विश्वसनीय दोस्त ढूंढते। जीवन साथी ढूंढते।
क्या औरत क्या मर्द! क्या लड़के क्या लड़कियां! अजब खोखलापन था। या फिर यह लोगों
का अकेलापन था?
समझना
कुछ नहीं, काफी
कठिन था। हैरान था वह लोगों के इस खोखलेपन पर। इस अकेलेपन पर।
क्या
प्यार इतनी आसान और सस्ती चीज थी? पर
वह देख रहा था कि लड़कियां बेधड़क हो रही थीं। वह कोई भी बात करने को तैयार थीं।
वह सीधे अपना नंबर देती और कहतीं कि बात करो। वह मिलने को भी तैयार हो जातीं। और
दो दिन फोन न करे तो मिस काल पर मिस काल करना शुरू कर देतीं। हॉस्टलों में रहने
वाली लड़कियां रात-रात भर चैट करतीं। वह चुप भी रहता तो उकसाती रहतीं और सीधे-सीधे
चैटिंग में ही संभोगरत हो जातीं। वह पहले इसे रोमैंटिक चैट कहतीं, फिर सेक्स चैट कहतीं और कपड़े उतार कर
फक चैट पर बुला लेतीं।
तरह-तरह
की मैथुन मुद्राएं पूछतीं और बतातीं। अजब घालमेल था।
कुछ
लड़कियां मिलने के लिए भी बुलातीं। वह जब बताता कि वह तो अधेड़ है तो कुछ लड़कियां
कतरातीं और पूछतीं कि पहले क्यों नहीं बताया?
कुछ कहतीं कि इस से क्या फर्क पड़ता है? पैसा तो है न तुम्हारे पास? वह अफना जाता। एक लड़की नहीं मानी। वह
मिलने चली आई। वह समझाता रहा उम्र का गैप पर वह थी कि लिपटी जा रही थी। चिपटने को
तैयार थी। कहने लगी, ‘चैटिंग
पर तो इतनी हॉट-हॉट बातें करते हो और यहां कूल हो गए हो? कम आन यार!’
वह
महंगे-महंगे रेस्टोरेंटों में बैठने की आदी थी। महंगे गिफ्ट्स की डिमांड भी करती।
वह सेक्सी और सतही बातें लगातार करती रहती। वह किसी कंप्टीशन की तैयारी कर रही थी।
एक प्राइवेट हॉस्टल में रहती थी। खर्चे उस के बढ़ गए थे जो वह चैटिंग फ्रेंडों से
पूरा कर रही थी।
हां, उस का गुजारा सिर्फ एक फ्रेंड से नहीं
था।
बमुश्किल
उस ने उस से पिंड छुड़ाया।
अभी
इस से पिंड छुड़ाया ही था कि मुंबई की एक लड़की चैटिंग में फंस गई। वह बार-बार
मुंबई बुलाती। बताती कि अकेली हूं आ जाओ। वह खुद फोन करती और धकाधक किस पर किस
करती हुई कहती, ‘कुछ
हॉट-हॉट, कुछ
सेक्सी-सेक्सी बातें करो ना।’
वह
तो यही चाहता ही था। खूब बातें होतीं। एक दिन उस ने पूछा कि, ‘तुम सर्फिंग नहीं करते?’
‘मतलब?’
‘नेट पर सर्फिंग।’
‘नहीं।’
‘क्यां?’
‘बस ऐसे ही।’ वह टालता हुआ बोला।
‘अच्छा तुम्हारी आई.डी. क्या है?’
‘मतलब?’
‘ओह,
तुम बिलकुल बुद्धू हो।’
फिर उस ने बताया कि,
‘आई.डी. मतलब इंटरनेट एड्रेस।’
‘अच्छा-अच्छा।’
‘तुमने कभी सर्फिंग नहीं की?’
‘मेरे पास आई.डी. ही नहीं है।’
‘फुल्ली लल्लू हो।’ वह भड़की और बोली, ‘मेरी आई.डी. नोट करो। और आगे से इसी पर
बात करना।’
‘क्या बेवकूफी की बात करती हो?’ वह बोला,
‘मुझे कंप्यूटर इंटरनेट कुछ नहीं आता।’
‘तो बुद्धू, पहले यह सीखो, फिर मुझ से बात करो।’
‘कहां से सीखूं?’
‘तुम्हारे शहर में साइबर कैफे नहीं है? या कंप्यूटर इंस्टीट्यूट नहीं है?’
‘है तो!’
‘तो जाओ सीखो।’ यह कह कर उस ने फोन काट दिया।
अब
वह कंप्यूटर-इंटरनेट सीखने लगा।
जल्दी
ही वह सीख भी गया। अब यहां अंगरेजी उस की समस्या बन गई। इस का भी निदान उस ने
जल्दी ढूंढा। रोमन हिंदी का उस ने सहारा लिया। इतने से भी बात नहीं बनी तो
रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की किताब लाया। गाड़ी चल पड़ी।
वह
सुनता और पढ़ता था कि इंटरनेट पर एक से एक सूचनाएं और जानकारियां हैं। और यहां वह
देख रहा था समूचा इंटरनेट सेक्स को समर्पित था। एक अजीब और बीहड़ दुनिया से वह
परिचित हो रहा था। लोग डालर खर्च कर-कर के औरतों से चैटिंग कर रहे थे। बी.बी.सी.
की एक रिपोर्ट में उस ने पढ़ा कि इंटरनेट लोगों को बेवफा बना रहा है। पर यहां तो
लग रहा था जैसे समूची दुनिया ही बेवफा हो चली थी। बहुतेरी चैटिंग साइटें औरतों की
फोटुएं दिखा-दिखा, फ्री
रजिस्टर्ड का विज्ञापन दिखा लुभातीं,
और अंततः रजिस्ट्रेशन होते न होते क्रेडिट कार्ड के मार्फ़त
डालर मांगने लगतीं। और लोग डालर पर डालर खर्च कर रहे थे, औरतों से बतियाने के लिए। इनमें रंडियों
की भी संख्या अच्छी-ख़ासी थी। जो सीधे अपना रेट बताती हुई हाजिर थीं। गरज यह कि
औरत एक प्रोडक्ट में तबदील हो चली थी। ऐसे बिक रही थी, जैसे-तेल,
साबुन। हद थी यह भी! लग रहा था जैसे समूची दुनिया सेक्स में
समाई हुई थी। जैसे सेक्स के सिवाय कोई और काम ही न हो लोगों के पास। हर कोई सेक्स
में भुखाया और अघाया दिखता। रोटी की भूख से ज्यादा सेक्स की भूख थी। तमाम औरतों की
अपनी वेबसाइटें थीं। और वेबकैम पर वह खुद ही लाइव रहतीं। कपड़े उतारती रहतीं, बतियाती रहतीं। कुछ बात उस की समझ में
आतीं और ज्यादातर नहीं आतीं। सेक्स की एक से एक टर्मानोलॉजी कि वात्स्यायन मुनि भी
शर्मा जाएं। एक से एक मैथुनी मुद्राएं कि ब्लू फिल्में भी पानी मांगें। एक से एक
अतृप्त आत्माएं, कामरस
में इस कदर पागल कि इंद्र भी देख कर सनक जाएं।
ग्लोबलाइजेशन
की अद्भुत पराकाष्ठा थी यह।
रशियन, अमरीकन,
अफ्रीकन, इंडियन, नाइजीरियन वगैरह-वगैरह सभी एक साथ
हाजिश्र। कोई नस्ल भेद नहीं, कोई
भाषा भेद नहीं, कोई
उम्र का परहेज नहीं।
जो
जहां चाहे लग जाए और अपनी अतृप्त वासनाओं-कामनाओं की धज्जियां उड़ा ले। नंगई की यह
हद थी। ग्लोबलाइजेशन की यह हद थी। गोया सेक्स-सेक्स न हो, बच्चों का खेल-तमाशा हो, जो जहां जब चाहे खेले-सो ले। प्यार, प्यार न हो कोई तमाशा हो। बाजा-गाजा हो!
सेक्स-सेक्स की इसी भीड़ में वह रशियन औरत भी मिली। प्यार से भरपूर और भावनाओं से
लबरेज। सेक्स नहीं, उस
की प्राथमिकता में प्यार था। प्यार में समाई वह लंबी-लंबी चिट्ठियां लिखती। साथ
में अपनी फोटो भी अटैच करती रहतीं। किस्म-किस्म की। बर्फीली घाटियों में खड़ी, बेंच पर बैठी, मासूमियत की नदी बहाती, प्यार में वह ऐसे खोई दिखती कि लगता
जैसे इस ग्लोबलाइज होती दुनिया में वह अनूठी है। अप्रतिम है। औचक सौंदर्य में
नहाई। उस की चिट्ठियां भी, चिट्ठियां
न हो कर लगता कि कोई कविता हो। कोई पोर्ट्रेट हो। उस की निर्दोष और भावुक बातें
उसे प्यार के ऐसे गहरे सागर में खींच ले जातीं कि उन में से उस का निकल पाना
बेहद-बेहद मुश्किल होता जा रहा था।
अब
वह चिट्ठियों में कई बार बहुत टफ अंगरेजी लिखने लगी। तो उस ने लिखा कि मेरी
अंगरेजी बड़ी कमजोर है। इतनी कि तुम्हारी चिट्ठियों का जवाब देने के लिए अच्छी
अंगरेजी जानने वाले किसी दोस्त की मदद लेनी पड़ती है। जवाब में उस ने बताया कि
मेरा भी हाथ अंगरेजी में बहुत तंग है। और कि उसे भी अंगरेजी में लिखने के लिए
अंगरेजी जानने वाले की मदद लेनी पड़ती है। फिर उस ने प्रस्ताव रखा क्यों न तुम
रशियन सीखो और मैं हिंदी। उस के प्रस्ताव को उस ने स्वीकार कर लिया और अपने शहर की
यूनिवर्सिटी में जा कर पता किया तो पता चला कि रशियन डिप्लोमा का कोर्स वहां पर
है। कुछ किताबें वगैरह लाया वह। उधर उस ने वहां पर इंडियन ऐंबेसी से संपर्क कर
हिंदी सीखने के लिए लिट्रेचर मंगा लिए और हिंदी सीखने लगी। उस ने यह बताया भी कि
वह हिंदी बड़ी तेजी से सीख रही है। जान कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। फिर उस ने बताया
कि हिंदी में एक फिल्म है ‘मेरा
नाम जोकर’।
जिस में एक हीरोइन है जो सर्कस में काम करती है और इंडियन हीरो से प्यार करती है।
अपने प्यार को परवान चढ़ाने के लिए हिंदी सीखती है। फिल्म का हीरो भी रशियन सीखता
है। और जब दोनों डिक्शनरी ले कर बात करते हैं तो अजब-अजब फ्रेम सामने आते हैं।
लेकिन अंततः वह रशियन हीरोइन इंडियन हीरो को छोड़ कर चली जाती है। उस का दिल तोड़
देती है। कहीं तुम भी तो हमें नहीं छोड़ दोगी। मेरा दिल तो नहीं तोड़ दोगी?
उस
ने जवाब में लिखा कि इस फिल्म को मैं देखने की कोशिश करूंगी। और हां, तुम मेरा दिल भले तोड़ दो, मैं नहीं तोड़ने वाली। उस ने हिंदी में
लिखा था, ‘मैं
अपनी बात की बहुत पक्की हूं।’ फिर
उस ने बताया कि इस फिल्म के हीरो राजकपूर हैं जो रूस में बहुत पापुलर रहे हैं, हो सकता है उस का रशियन वर्जन भी वहां
मिल जाए। उसे जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि हफ़्ते भर के भीतर ही उस ने ‘मेरा नाम जोकर’ की हिंदी और रशियन वर्जन जुगाड़ कर देख
ली। और बड़ी तफसील से चिट्ठी लिखी। फिल्म के एक-एक फ्रेम के बारे में कई-कई दिन
डिसकस करती रही। वह अब हिंदी भी बहुत तेजी से सीख रही थी। एक दिन वह बताने लगी कि
मेरा नाम जोकर के हीरो की मां की तरह ही मेरी मां भी है। वह भी उतनी ही मुझे चाहती
है, जितनी
कि उस हीरो की मां। हां, मेरी
मां मुझ से भी ज्यादा भावुक है और कि वह भी हिंदी सीख रही है।
एक
चिट्ठी में उस ने लिखा कि आज उस ने अपनी मां से उस का जिक्र किया और कि मां ने उसे
ब्लेसिंग दी है। एक और चिट्ठी में उस ने लिखा कि आज उस ने अपनी एक फ़्रेंड से उस
की चर्चा की। और कि फ्रेंड बोली कि तुम बड़ी खुशकिस्मत हो कि तुम को ऐसा प्यार
मिला है। वह उस को अपना ऐंजिल भी बताने लगी। ऐंजिल मतलब देवदूत। और इस मैसेज को उस
ने रिकॉर्ड कर के अटैचमेंट के साथ भेजा। उस का निर्दोष और प्यार में नहाया चेहरा
उसे आज भी नहीं भूलता।
उस
की बातों में समाया टटकापन उस के मन की अलगनी पर आज भी कहीं टंगा हुआ है।
उस
के बात करने का अंदाज, उस
की चिट्ठियों की तफसील जैसे उसे किसी परीलोक में खींच ले जाते।
एक
चिट्ठी में उस ने लिखा कि अब वह उस के बिना रह नहीं सकती। और कि वह उस के पास उड़
कर इंडिया आ जाना चाहती है। चिट्ठी पढ़ कर उसे यकीन नहीं हुआ।
लेकिन
उस की चिट्ठी का भाव लगभग वही था कि ‘पंख
होते तो उड़ आती रे,
तुझे दिल का दाग दिखलाती रे!’ चिट्ठी
पढ़ कर वह आकुल-व्याकुल हो गया और लगभग उसी भाव में उसे जवाब दिया। अगली चिट्ठी
में उस ने उसे अपना भावी पति घोषित कर दिया। तो वह अचकचाया और लिखा कि मैं तो
शादीशुदा हूं। और कि हमारे देश में दूसरी शादी करना कानूनन अपराध है और सामाजिक
भी। और मैं खुद भी अपनी बीवी-बच्चों से इतना प्यार करता हूं कि उन्हें छोड़ नहीं
सकता। उस का जवाब आया तो फिर प्यार क्यों किया?
प्यार भरी बातें क्यों की?
फिर लिखा कि उस ने इंडिया आने की पूरी तैयारी कर ली है। और कि
वह कैसे उसे एयरपोर्ट पर फूल लिए रिसीव करेगा,
इस कल्पना का भी बिलकुल पोएटिक अंदाज में पूरा ब्यौरा उस ने
परोस दिया था। यह सब पढ़ कर वह घबराया। और पलट कर लिखा कि वह क्यों परेशान होती है? और कि यहां गरमी भी बहुत है, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। सो वह
खुद ही रूस उस से मिलने आ जाएगा। उस ने जवाब में लिखा कि उस के रूस आने से उसे
मुश्किल होगी। इस लिए वह न ही आए तो अच्छा।
‘फिर हमारे प्यार का क्या होगा?’ उस ने चैटिंग में पूछा।
‘जो भी होगा, इंडिया में होगा। रूस में नहीं।’ लंबी-लंबी बातें करने वाली ने
संक्षिप्त-सा जवाब दिया।
‘अच्छा चलो, कुछ दिन बाद सोच कर बताते हैं।’
‘कुछ दिन क्या, कुछ पल भी अब मैं नहीं रह सकती तुम्हारे
बिना।’
‘ऐसा भी क्या है?’
‘मैंने पासपोर्ट भी बनवा लिया है और
ऐंबेसी में जा कर वीजा के लिए भी बात कर ली है।’
‘आर यू रियली सीरियस?’
‘बिलकुल।’
‘ओ. के. माई लव!’ कह कर उस ने साइन आउट कर बात ख़त्म कर
दी।
‘लेकिन बात ख़त्म कहां हुई थी?’
उस
के मेल पर मेल आते रहे। और वह कतराता रहा। कभी दाएं,
कभी बाएं। लेकिन कब तक कतराता। आखि़रकार एक दिन चैटिंग पर उस
ने पूछ लिया, ‘अभी
तुम हम को जानती कितना हो? कि
मेरे साथ रहने को तैयार हो!’
‘मैं तुम से प्यार करती हूं बस!’ वह बोली,
‘अब इस के बाद कुछ समझना रह जाता है क्या?’
‘हां,
रह जाता है। कम से कम मेरे लिए तो रह ही जाता है।’
‘जैसे क्या?’
‘जैसे मैं तुम्हारी फीलिंग्स के अलावा
तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानता।’
‘क्या जानना चाहते हो?’
‘जैसे कि तुम्हारी सेक्सुअल लाइफ?’
‘ओ. के.। मैं तुम्हें लेटर लिख कर डिटेल
में बताऊंगी।’
‘क्यों?
अभी क्यों नहीं?’
‘इस लिए कि सेक्स मेरे लिए कोई कैजुअल
सब्जेक्ट नहीं है।’
‘ओ. के.। आई विल वेट फॉर यौर लेटर।’ कह कर उस ने फिर साइन आउट कर दिया।
दूसरे
दिन उसे उस का लंबा लेटर मिला।
उस
ने बताया था कि जैसे लव उस के लिए फीलिंग है,
सेक्स भी उस के लिए एक बड़ी फीलिंग है। बिना प्यार के वह सेक्स
नहीं कर सकती। लेकिन रशियन पुरुष लव नहीं जानते,
फीलिंग्स नहीं जानते,
वह सिर्फ सेक्स जानते हैं। बिना प्यार का सेक्स। वह औरत को, औरत नहीं कमोडिटी मानते हैं। सेक्स का
औजार मानते हैं। कहूं कि सेक्स ट्वायज मानते हैं। शराब पीते हैं, सेक्स करते हैं और औरत को ढकेल देते
हैं। जैसे वह कोई बेकार चीज हो।
ऐसे
ही तमाम उबी और रूखी लेकिन तल्ख़ सचाइयों से उस की चिट्ठी भरी पड़ी थी। पहली बार
उस की चिट्ठी में तल्ख़ी दिखी थी। उस ने लिखा था कि इसी लिए वह रशियन समाज से, रशियन पुरुषों से भागती है। ऐसे पुरुष
जिनके पास फीलिंग्स नहीं है, प्यार
नहीं है, प्यार
का भाव नहीं है, से
वह भागती है। और शायद इसी लिए वह इंडिया आना चाहती है। उस की बांहों में समा जाना
चाहती है। अनंत, अनंत
और अनंतकाल के लिए। युगों-युगों तक के लिए।
लेकिन
तुम्हें रशियन पुरुषों के सेक्स के बारे में इतना डिटेल कैसे मालूम है? उस ने चिट्ठी लिख कर पूछा।
‘मैं डाइवोर्सी हूं। इस लिए सारे डिटेल्स
जानती हूं।’ उस
का जवाब आया। उस ने लिखा था, ‘तुम्हारे
पास भी मैं सेक्स के लिए नहीं, प्यार
के लिए, प्यार
की प्यास बुझाने के लिए आना चाहती हूं। यहां मेरी हालत वैसे ही है, जैसे कोई मछली पानी में हो और पानी जम
कर बर्फ बन जाए। मैं बर्फ में फंसी वह मछली हूं,
जो न जी पाती है,
न मर पाती है। प्लीज मुझे इस बर्फ से उबार सको तो उबारो! मैं
तुम्हारी बांहों में सचमुच समा जाना चाहती हूं। मुझे अपनी बांहों में ले लो। इस चिट्ठी
के साथ उस ने अपनी एक फोटो भी अटैच की थी जिस में वह अपनी गोद में एक बिल्ली लिए
बर्फ के मैदान पर ऐसे खड़ी थी, गोया
उस में धंस जाएगी।
उसे
उस पर सचमुच प्यार आ गया।
हालां
कि वह उस पर तरस खाना चाहता था। उस के मछली की तरह बर्फ में फंसे रहने की उस की
फांस यही कहती थी कि उस पर तरस खाया जाए। बर्फ के मैदान पर खड़ी उस की फोटो भी यही
चुगली खाती थी कि उस पर तरस खाया जाए। लेकिन उस की गोद में समाई बिल्ली ऐसे उसे
निहार रही थी, और
वह उस बिल्ली को, कि
दोनों की मासूमियत पर उस को प्यार आ गया। उसे प्यार आ गया उस की पुरानी बातों को
याद करके। उस की पुरानी चिट्ठियों की उन इबारतों को याद कर के प्यार आ गया जिनमें
वह लगभग पोएटिक हो जाती और पोएटिक होते-होते उसे किसी परीलोक में खींच ले जाती।
उसे सचमुच उस पर बहुत प्यार आ गया।
उस
ने एक दिन चैटिंग में कहा कि, ‘ठीक
है तुम इंडिया आ जाओ। पर यह बताओ कि तुम यहां रहोगी कैसे?’
‘कैसे?
मतलब? तुम्हारे
साथ रहूंगी, तुम्हारी
बांहों में। और कैसे?’
‘ओ. के.।’
‘तुम्हारे सिवाय और मैं कुछ सोचती ही
नहीं।’
‘ओ. के.।’
‘दिन-रात सिर्फ तुम्हें सोचती हूं। कुछ
और नहीं। सिर्फ तुम्हें।’
‘वह तो ठीक है। पर जब तुम इंडिया आओगी, मैं तब की बात कर रहा हूं ख़यालों और
ख़्वाबों की नहीं।’
‘समझी नहीं।’
‘मेरा मतलब गुजारा कैसे होगा?’
‘मैं ने सब सोच लिया है। और उस से भी
पहले यह कि मैं तुम पर बोझ नहीं बनूंगी।’
‘ओह!’
‘हां,
मैं ने सोच लिया है।’
वह रुकी और बोली,
‘मैं अपना बिजनेस करूंगी।
तुम्हारी
इंडिया में।’
‘किस चीज का बिजनेस?’
‘उस के बारे में मैं ने सोचा भी नहीं।’ वह बोली,
‘वहीं आ कर तुम से एडवाइज लूंगी।’
‘फिर भी कुछ तो सोचा होगा।’
‘कुछ नहीं! यह तुम सोचोगे।’
‘तो भी।’
‘अब तुम्हारी इंडिया में किस चीज का
बिजनेस चलेगा मैं क्या जानूं ?’
वह बोली, ‘वैसे
तुम्हें बताऊँ कि मैं कुक बहुत अच्छी हूं। नहीं होगा तो एक रेस्टोरेंट ही खोल
लूंगी। पर तुम इतना जान लो कि मैं तुम पर बोझ नहीं बनूंगी। और कुछ नहीं होगा, तो इतनी हिंदी जान गई हूं कि वहां के
लोगों को रशियन पढ़ा सकूं।’ वह
तैश में आ गई।
‘ओ. के.। ओ. के.।’ वह बोला,
‘कुछ और बात करें?’
‘नहीं,
कोई और बात नहीं।’
कह कर वह खुद साइन आउट कर गई। फिर बहुत दिनों तक उस का कोई मेल
भी नहीं आया। ना ही वह चैट पर आई। इस बीच वह दूसरी लड़कियों-औरतों से फ्लर्ट-चैट
करता रहा। इन्हीं दिनों उसे कुछ नाइजीरियन और अफ्रीकन लड़कियां भी चैट पर मिलीं।
दो-तीन दिन तक वह रोमैंटिक-सेक्सी बातें करतीं। और तन-मन-धन सब न्यौछावर करते-करते
अचानक मदद मांगने पर आमादा हो जातीं। ढेर सारी कसमें देतीं, अर्धनग्न फोटो अटैचमेंट के साथ भेजती
हुई उन लड़कियों की कहानियां लगभग एक जैसी होतीं।
फर्क
सिर्फ चौहद्दी का होता। वह भी कुछ इस तरह की किसी का पति मर गया होता, तो किसी का पिता। किसी न किसी हादसे में
इनकी हत्या हुई होती और वह किसी तरह जान बचा कर इस वक्त रिफ़्यूजी कैंप में रह रही
होतीं। उनके पति या पिता कई मिलियन डालर छोड़ गए होते। उन का कोई बिजनेस पार्टनर
होता, जो
फारेनर होता, और
वही फारेनर पार्टनर उसे बना कर वह इंडिया में उस के नाम सारा पैसा ट्रांसफर कर के
फिर से नई जिंदगी शुरू करना चाहतीं और उस की हमसफर बनना चाहतीं। अजब गोरखधंधा था
यह। वह कइयों के प्रस्ताव मानता गया। अपना पूरा डिटेल बैंक एकाउंट सहित देता गया।
फिर वह सब पैंतरा बदलती हुई डिप्लोमेटिक खर्च के डिमांड पर आ जातीं। और यह खर्च भी
हजारों नहीं लाखों में होता। वह समझ गया कि यह सब औरतें और लड़कियां फर्जी हैं और
किसी गैंग का हिस्सा हैं। इसी बीच अप्रत्याशित रूप से उस की लाटरियां भी इंटरनेट
पर खुलने लगीं। और सभी लाटरियां मिलियन,
बिलियन डालरों में होतीं। उस ने माथा पकड़ लिया। जिस लाटरी के
टिकट को उस ने कभी ख़रीदा नहीं, उनके
बारे में कभी जाना नहीं, वहां
कभी झांका नहीं, और
वह लोग उसे अरबों-खरबों डालर देने पर आमादा थे।
तो
क्या इंटरनेट पर सिर्फ चार सौ बीसी ही होती है?
कहीं
वह रशियन औरत भी उस के साथ चार सौ बीसी तो नहीं कर रही थी? उस ने यह सब सोचा। यह सब सोचते हुए ही
उसे एक चिट्ठी लिखी और पूछा कि तुम हो कहां?
कहां
गुम हो?
उस
का कोई जवाब नहीं आया।
काफी
दिन बीत गए। अचानक एक दिन उस रशियन औरत की एक मेल दिखी। उस ने झट से खोला। मेल
एड्रेस जरूर उस का था लेकिन चिट्ठी उस की नहीं,
उस की मां की ओर से थी। चिट्ठी में उस की लंबी बीमारी का जिक्र
था। उसे ब्लड कैंसर बताते हुए लिखा था कि वह बैठ नहीं सकती लेकिन तुम्हारा नाम
दिन-रात लेती
रहती
है। इंडिया-इंडिया बड़बड़ाती रहती है। वह इंडिया जैसे उड़ जाना चाहती है। वह गहरे
डिप्रेशन में है। हो सके तो तुम आ जाओ और उसे इंडिया ले जाओ।
हालां
कि वह जाने की स्थिति में नहीं है फिर भी वह जाना चाहती है। क्या तुम आ सकोगे? और जो न आ सको तो अपनी कुछ फोटो तो भेज
ही दो। इसी से उसे तसल्ली हो जाएगी! आने-जाने में अगर पैसे वगैरह की दिक्कत आए तो
भी लिखना।
टिकट
मैं यहीं से भेज दूंगी। एयरपोर्ट पर खुद आ जाउँगी। क्यों कि वह तुम्हें देखना
चाहती है, तुम
से मिलना चाहती है। आ सकोगे तुम? चिट्ठी
के साथ उस की कुछ फोटो थीं जिन में वह बिस्तर पर अपनी बिल्ली के साथ लेटी थी। एक
फोटो में उस ने देखा कि उस ने अपने सिरहाने उस की एक बड़ी सी फोटो फ्रेम करवा कर
दीवार में लटका रखी थी।
फोटो
में उस की दशा देख कर वह रो पड़ा।
असमंजस
उस का बढ़ता जा रहा था। वह रोज रूस जाने की तैयारी में लगा रहा था। पासपोर्ट के
लिए उस ने अप्लाई कर दिया था। वह आने-जाने के खर्च के लिए पैसे भी बटोर रहा था। वह
रूस जाना चाहता था पर उस रूसी औरत के खर्च पर नहीं। पासपोर्ट और पैसे बटोरने के
चक्कर में उस को कुछ समय लगेगा यह बताते हुए उस ने उस की मां को चिट्ठी लिख कर बता
दिया कि वह जल्दी ही आ रहा है। उस की मां ने उसे अपने घर का पता भी भेज दिया। अब
तो यह तय था कि वह कोई चार सौ बीस नहीं है। वह सचमुच उस से प्यार करती है। इंटरनेट
पर ही सही। वह उस के प्यार से अभिभूत था। वह उस को जी रहा था, और उस के साथ ही मर भी रहा था। पासपोर्ट
उस का बन गया था। अब वीजा बनवाने का नंबर था।
वीजा
बनवाने के लिए वह दिल्ली गया। रशियन ऐंबेसी से संपर्क किया। टूरिस्ट वीजा के लिए।
वह
दिल्ली हफ्ते भर तक रुका रहा। एक दिन वह अपनी मेल चेक कर रहा था कि फिर उसे उस की
मेल दिखी जो उस की मां ने ही लिखा था। मेल सिर्फ एक लाइन की थी, ‘रीम्मा इज डेड!’ वह साइबर कैफे में ही रो पड़ा।
वह
वापस लखनऊ आया और पत्नी से लिपट कर रो पड़ा। पत्नी ने पूछा, ‘क्या हुआ?’
‘वह नहीं रही!’ वह बुदबुदाया, ‘वह मर गई।’
‘कौन मर गई?’ पत्नी अचकचाई
‘वही जिस के लिए रूस जा रहा था।’
‘क्या?’
अब
उस के घर में नया कोहराम मच गया था। पत्नी उसे ऐसे देख रही थी गोया उसे सूली पर
चढ़ा देगी। पहले और दूसरे प्यार की सूचना और कुछ फुटकर हरकतों पर वह पहले ही से शक
के सलीब पर था। और अब यह फिर!
सारा
प्यार भस्म हो गया था।
बर्फ
में फंसी मछली अब वह खुद बन गया था। ।।.