मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां ग़ालिब |
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उपनाम: | असद, ग़ालिब |
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जन्म: | 27 दिसंबर, 1796 आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु: | 15 फरवरी, 1869 दिल्ली, भारत |
कार्यक्षेत्र: | शायर |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
भाषा: | उर्दू एवं फ़ारसी |
काल: | १८०७-६९ |
विधा: | गद्य और पद्य |
विषय: | प्रेम, विरह |
ग़ालिब (और असद) नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे। आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्जू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है। उन्होने अपने बारे में स्वयं लिखा था कि दुनिया में बहुत से कवि-शायर ज़रूर हैं, लेकिन उनका लहजा सबसे निराला है:
“हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”
अनुक्रम
जीवन परिचय
जन्म और परिवार
ग़ालिब का जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उन्होने अपने पिता और चाचा को बचपन मे ही खो दिया था, ग़ालिब का जीवनयापन मूलत: अपने चाचा के मरणोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था[1] (वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मे सैन्य अधिकारी थे)।[2] ग़ालिब की पृश्ठभूमि एक तुर्क परिवार से धी और इनके दादा मध्य एशिया के समरक़न्द से सन् १७५० के आसपास भारत आए थे। उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आये। उन्होने दिल्ली, लाहौर व जयपुर मे काम किया और अन्ततः आगरा मे बस गये। उनके दो पुत्र व तीन पुत्रियां थी। मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग खान व मिर्ज़ा नसरुल्ला बेग खान उनके दो पुत्र थे।मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग (गालिब के पिता) ने इज़्ज़त-उत-निसा बेगम से निकाह करने किया और अपने ससुर के घर मे रहने लगे। उन्होने पहले लखनऊ के नवाब और बाद मे हैदराबाद के निज़ाम के यहाँ काम किया। १८०३ में अलवर में एक युद्ध में उनकी मृत्यु के समय गालिब मात्र ५ वर्ष के थे।
जब ग़ालिब छोटे थे तो एक नव-मुस्लिम-वर्तित ईरान से दिल्ली आए थे और उनके सान्निध्य में रहकर ग़ालिब ने फ़ारसी सीखी।
शिक्षा
ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे मे स्पष्टतः कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने ११ वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था।[3] उन्होने अधिकतर फारसी और उर्दू मे पारम्परिक भक्ति और सौन्दर्य रस पर रचनाये लिखी जो गजल मे लिखी हुई है। उन्होंने फारसी और उर्दू दोनो में पारंपरिक गीत काव्य की रहस्यमय-रोमांटिक शैली में सबसे व्यापक रूप से लिखा और यह गजल के रूप में जाना जाता है।वैवाहिक जीवन
13 वर्ष की आयु मे उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गये थे जहाँ उनकि तमाम उम्र बीती। अपने पेंशन के सिलसिले मे उन्हें कोलकाता कि लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी, जिसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है।शाही खिताब
१८५० मे शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र २ ने मिर्ज़ा गालिब को "दबीर-उल-मुल्क" और "नज़्म-उद-दौला" के खिताब से नवाज़ा। बाद मे उन्हे "मिर्ज़ा नोशा" क खिताब भी मिला। वे शहंशाह के दरबार मे एक महत्वपुर्ण दरबारी थे। उन्हे बहादुर शाह ज़फर २ के ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार फ़क्र-उद-दिन मिर्ज़ा का शिक्षक भी नियुक्त किया गया। वे एक समय मे मुगल दरबार के शाही इतिहासविद भी थे।इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- मिर्ज़ा ग़ालिब ग़ालिब के ख़त
- ग़ालिब की रचनाएँ कविता कोश में
- दिवान - ए - ग़ालिब
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