Anami Sharan
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from priyadarshi
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1.
न जाने क्यूँ बेघर सा लगता है मझको तो साये से डर लगता है। दिखती नही है खुशियाँ चेहरों पर कहीं हर बन्दा क्यूँ बेखबर सा लगता है। (प्रियदर्शी) 2 नहीं मिलेंगे ईश्वर और ख़ुदा हमें मस्जिद और शिवालयों में, दिख जायेंगे हर वक्त हमें वो नन्हे मुन्ने चेहरों में। (प्रियदर्शी) 3 . जिंदगी की रफ़्तार में रुकना कैसा चलना ही जीवन है तो थकना कैसा। @प्रियदर्शी@ 4 . परिंदों ने आज न जाने क्यूँ मचाया शोर आ गया इंसान कोई क्या फिर जंगल की ओर @प्रियदर्शी@ 5 . मौत भी आयेगी तो पूछेगी मुझसे जरूर वक्त मेरे आने का मुकर्रर तू कर दे जरा। (प्रियदर्शी) 6 . क्यूँ ढूंढता हूँ आदमी मैं रिश्तों की भीड़ में आदमियत तो कबकी यहाँ से दूर हो गयी। (प्रियदर्शी) 7. प्रासंगिक रावण हँस रहा है खिलखिला रहा है लगा रहा है अट्टहास भी पूछता है सबसे आज भी मुझको तो सब जला जाओगे ह्रदय में घर कर गए रावण को क्या कभी तुम मिटा पाओगे? (प्रियदर्शी) 8 . नाजुक वक्त में जब सभी साथ छोड़ जाते हैं एक आंसू ही तो है जो हरपल साथ निभाते हैं (प्रियदर्शी)
9
. सजा दिया गुलदस्तों में समेटकर बर्बादियाँ दिल के गुलशन में मैं कर रहा हूँ फिर प्रीत की खेती । (प्रियदर्शी)
10.
समझ आयेगी जैसे ही तुम्हे भावनायें मेरे प्रीत की ह्रदय में घुल रहे जहर प्रिय पल में अमृत हो जाएंगे। [प्रियदर्शी] 11 . शब्दों की चासनी में थे तेरे शहद रूपी निश्छल इजहार उतर गयी कानों से ह्रदय में प्रिय प्रेम की अंतहीन फुहार [प्रियदर्शी] 12 . अश्रुपूरित नेत्रों से मिसाईल मैन को भावभीनी श्रद्धांजलि एवं शत शत नमन
आँसुओं के सैलाब में जो सबों को डुबो गया
देश को जगाने वाला एक रहनुमा सो गया नन्हे-मुन्ने आँखों में जगाकर कई सपने आसमां का वह सितारा जाने कहाँ खो गया [प्रियदर्शी]
13.पढ़ता रहा चेहरों को किताब की तरह
मुरझाये चेहरों को हंसाया गुलाब की तरह दफना दिया कब्र में उदासियाँ जहां की सुलझते गए हर रिश्ते हिसाब की तरह। [प्रियदर्शी ]
14. घनीभूत पीड़ा को लेकर
टुकड़े टुकड़े कर जज्बात मिली मुझसे जब भी जिंदगी गयी देकर ये ही सौगात। [ प्रियदर्शी]
15. कैसे मनाऊँ ईद यहाँ
भूखी जहां कई माएँ है कैसे मनाऊँ ईद यहाँ साथ छोड़ते सायें है कैसे मनाऊँ ईद यहाँ जुदा हो रहीं राहें है कैसे मनाऊँ ईद यहाँ वेवजह फड़कती भुजाएं है मैं तो मनाऊँ ईद तभी जब हर के दुख का सहारा होगा कौम कोई हो जात कोई हो दिल में सबके भाईचारा होगा। [प्रियदर्शी ]
16. खीँच जाए परिंदों में भी मजहबी दिवार अगर ,
ये शाखे ये पत्ते दरख़्त के रक्तरंजित हो जाएंगे। [प्रियदर्शी]
17. कहते हैं आज हमें तेरे शहर के लोग,
बदल गयीं हैं आदत बहूत सी हमारी। उन्हें क्या पता प्रिय दिल का मेरे कि तेरी याद की आदत अबतक बदली नहीं है। [प्रियदर्शी ]
18. बनकर के याद तेरे दिल में घर कर जाऊँगा
मैं कोई शीशा नहीं कि टूटकर बिखर जाऊँगा [प्रियदर्शी]
19. आँखों में पल रहे सपनों को तोलकर जी लिया
सच न कह सका तो झूठ बोलकर जी लिया रगो में घुल गए जहर जहरीले हो चुके इंसान के जरुरत पड़ी जब जहाँ उसे ही घोलकर पी लिया है फ़िक्र किसको इस जहाँ की अपने स्वार्थ के आगे कुंद हो चुकी संवेदनाओं को टटोलकर जी लिया। [प्रियदर्शी ]
20. वक्त के मिजाज को सब टटोलने लगे है
गूंगे भी इस शहर के अब बोलने लगे है। इंसानियत के तराजू में है हैवानियत के बटखरे , लोग सच से ज्यादा झूठ को ही तौलने लगे है। [प्रियदर्शी ]
21. जिंदगी की बिसात पर आंसूओं को उबलते देखा
था वो रंग किसी का किसी और पर चढ़ते देखा बहक गए ईमान यहां और बिक गए हैं जमीर भी आस्तीन में तेरे भी मैंने कई सांपों को पलते देखा। @प्रियदर्शी@
22. कुछ लोग छले जाते हैं
कुछ लोग छलते हैं छलने और छले जाने का यह सिलसिला जारी है अनवरत कई दिनों से @प्रियदर्शी@
23. समेटकर उदासियाँ उम्र भर की जाऊं मैं कहाँ लेकर
सौगात ये दर्द ए गम की आऊँ मैं कहाँ देकर बसाकर दिल में तुम्हे अपनी मैं भूल जाऊँ गम सारे तुम ही तो आये हो मेरे लिए खुशियों का जहाँ लेकर @प्रियदर्शी @
24. मालूम न होता ज़माने को मेरी चाहत-ए-इश्क का
गर किताब शायरी की मेरी आती नहीं बाजारों में। [प्रियदर्शी ]
25. मेरी दुवाओं में ऐे मालिक इतना तो असर कर दे
मेरे चाहनेवालों का दामन खुशियों से तू भर दे। @प्रियदर्शी@
26. अतीत के पन्नो से
झूठ ही सही इस दिल की खातिर
इक बार परेशां हो जाओ , औरों के लिए मैंने तुमको कई बार परेशां देखा है। [प्रियदर्शी]
27. नहीं करूँ कभी भी कोई शिकायत तुझसे ऐे मालिक
बस इल्तजा यही है कि घर सबका आबाद रखना @प्रियदर्शी @
28. चाहना इक हसीं का ख्वाब है दिल में
उसकी ही चाहत का सैलाब है दिल में जुबां से आजतक कुछ कह नहीं पाया जबकि प्यार के हर बोल का किताब है दिल में [प्रियदर्शी
29. हँसकर क़ुबूल लेता मैं अपने सारे गुनाह
एक बार जो तूने कहा होता मुझसे [प्रियदर्शी]
30. मेरे प्रिय
लिखो तुम ऐसी शायरी कोई जिसके शब्दों के बाण घातक हो इतने कि शिकार न हो सके कहीं हवस की आगोश में बेटियाँ। जल न सके कहीं बहू कोई दहेज़ की आग में। बुझ न सके चूल्हे कही फांकाकसी में घर की। भूख की आगोश में कहीं न हो कभी अस्मत नीलाम। अगर हो जज्बात कही तो कुंद न हो जाएँ हौसले। रचो प्रिय आज ही ऐसी ही तुम रचना कोई। [प्रियदर्शी]
31. ऐे मालिक
तेरी पनाहों में ऐे मालिक दिन-रात,सुबह-शाम रहे
तेरे ही करम से ही सही मेरा भी ऐहतराम रहे। मेरी दुआ है कि न पकड़े कबूतर और कभी चील कोई इस जहां में न कहीं कोई भी गुलाम रहे। आग नफ़रत की जहां में न फैले कही भी अमन का,शान्ति का हर लब पे पैगाम रहे। [प्रियदर्शी]
32. नहीं चाहता सुनना मैं बेकार की अपनी तारीफ़ 'प्रिय'
दिल में जख्म हो रहे अल्फाजों को सुन तो ले कोई।
33. अनजान चेहरों के बीच
अपनत्व के बोध के साथ बढ़ रहें हैं कदम फिर भी शंकित है यह मन अनचाहा एक भय से जैसे पत्थरों की बस्ती में रह रहा है आईना अनिष्ट की आशंकाओं के साथ [प्रिय]
34. अगर नही कुछ
बस में तेरे तो छोड़ सिंहासन अपनी क्योंकि अब नहीं देखे जाते मुझसे दर्द के अंतहीन सिलसिले यहां [प्रिय ]
35. मेरी एक रचना
मैं दिनकर बन जाऊँ
लिखूँ हिमालय पर कविता दिल्ली का गीत सुनाऊँ मैं दिनकर बन जाऊँ। है सबके नस का लहू गर्म नहीं समझते ह्रदय मर्म शब्दों छन्दो से रचकर बसकर अमन का गीत सुनाऊँ मैं दिनकर बन जाऊँ। मर चुकी आत्मा के बोल लिखूँ या सिसकते आँसुंओं की मोल लिखूँ भावनाओं के समंदर में मरहम बन लहराऊं मैं दिनकर बन जाऊं प्रेमियों की राग लिखूँ या दिलों के आक्रोश की आग लिखूं आँखों में पनपते ज्वालाओं पर शीतल समीर ठहराऊँ मैं दिनकर बन जाऊं। [प्रिय]
36. कहते हैं लोग कि घूमते हैं भेड़िये इंसानो की शक्ल में
मैं उन भेड़ियों की शक्लों में इंसान ढूंढ रहा हूँ। चंद सिक्को की लालच में जहां बिक रहे हैं लोग 'प्रिय' उसी शहर में मैं वर्षों से ईमान ढूंढ रहा हूँ।
37. ग़ुरबत की बेबसी में 'प्रिय' उड़ गए चिथड़े वजूद के
भूख के बाजार में आज अस्मत का सौदा हुआ।
38. मेरी नजर में पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं बनू कभी
नेताओं का हार प्रिय। चाह नहीं बन जाऊं कभी प्रेमिकाओं का उपहार प्रिय। चाह नहीं चढ़ जाऊं कभी बन देवताओं का श्रृंगार प्रिय। उपजा डालो प्रिय वहाँ मुझे तुम हो सार्थक जहां मरण मेरा , रौंदे मातृभूमि के सपूत मुझे जब मानू हुआ सफल जीवन मेरा।
39. चाही थी मैंने जब जिंदगी ,मौत खड़ी थी सामने
आज चाहा मौत को तो जिंदगी बन 'प्रिय'तुम खड़ी हो।
40. जब से गये हो तुम ढाई आखर कह के
रंग गए हैं रोम रोम 'प्रिय'तेरी आशनाई में
41. चीरकर सीना अँधेरे का
तुम्हे उजालों में चलना है। झंझावात भरे जीवन के भूचालो में ढलना है। हैं कटीली जगत में डगर तेरे संघर्ष की, धीरे धीरे ही सही 'प्रिय' मंजिल की ओर बढ़ना है।
42. सवा अढ़ाई कहते कहते ,हर कोई पौने हो गए
तन को ढकते थे जो कपडे 'प्रिय'अब बिछौने हो गए.
43. हर बार हमसे मिलके
देकर गए हैं कई जख्म हमें वो
राहों में संग संग चलके।।हर बार…… सुनी पड़ी थी जीवन हमारी आये बहार बनके।।हर बार ....... बरबस छलकते आँखों से आंसू निकले हैं नगमा बनके।।हर बार …… टूटेंगी कैसे उम्मीदें किसी की सीखे तो कोई उनसे।। हर बार ....... वादा किया था कई जन्मों का 'प्रिय' खेल गया खेल खलके।।हर बार
44. दोस्ती के नाम पर चले कई सिलसिले हैं
थे कभी दुश्मन जो वो आज गले मिले हैं। था कभी कोई कोबरा और था कोई नाग मारकर जमीर 'प्रिय' फिर से गले मिले हैं।
45. लोगो की मानसिकता कुछ ऐसे बदल गयी
भावना अपने-पराये की आँखों में पल गयी। लुटायी थी खुशियाँ जिस पर जमाने भर की देखता हूँ 'प्रिय' आज वो निगाहें बदल गयी।
46. माहौल वो नरम देखा था
सबमे अपना गम देखा था दिल की गहराइयों को छूती कैसा अपनापन देखा था कहाँ गए 'प्रिय'अब वैसे दिन जब हर मौसम सावन देखा था
47. मरघट से उठ उठकर अब तो लाशें बोलती हैं
घुट घुटकर दम तोड़ गयी जो वो साँसें बोलती हैं बोओगे कब तलक यहाँ नफरतों के बीज तुम बंद करो ये तमाशे ,तमाशे बोलती है। [प्रिय]
48. हर्ष की परछाईयों में गम का घेरा निकला
जिसे मैं फूंक के आया वही बसेरा निकला। निगेहबान था कल तक जो इस चमन का वही इस दौर का सबसे बड़ा लूटेरा निकला।
49. न समझ सकोगे अभी प्रिय
मेरी ग़ज़लों की हकीकत। बाद मरने के बिखर जायेंगे ये फिजां में खुशबू बनकर।
50. नोच लो उन आँखों को उस चेहरे से तुम प्रिये
दिखती हैं जहा हर पल दरिंदगी और वहशीपना। |
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