हिमांशु श्रीवास्तव (जन्म: ११ मार्च १९३४: हराजी, सारण जिला, बिहार; मृत्यू: २६ मई १९९६) एक साहित्यकार, उपन्यासकार थे, जिनकी लगभग ५० उपन्यास और कहानी संग्रह प्रकाशित हुई हैं।[1][2][3][4]
अनुक्रम
परिचय
हिमांशु श्रीवास्तव हिंदी के उन सौभाग्यशाली लेखकों में से एक हैं, जिन्होंने साहित्यिक राजनीति के दल से अपने को सर्वथा बचाकर रखा और रचनाधर्मिता के क्षेत्र में अनेकशः कीर्तिमान स्थापित किए। उदाहरण के लिए यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि इनके एक उपन्यास ‘लोहे के पंख’ के कथन, वर्णन विशद्ता और अनुभव-संसार को हिंदी का कोई अन्य उपन्यासकार अब तक छू नहीं सका; यों प्राणायाम बहुतों ने किए। हिमांशु श्रीवास्तव बिहार के सारण जिलांतर्गत हराजी ग्राम में सन् १९३४ में जनमे और सन् ५५-५६ तक साहित्यिक छल-कपट नहीं, बल्कि अपनी प्रतिभा के कारण सभी धाराओं के समीक्षकों और लेखकों के लिए अविस्मरणीय कथाकार बन गए।अब तक बीस से अधिक उपन्यास, डेढ़ सौ कहानियाँ और तीन नाटक प्रकाशित हो चुके हैं। प्रथम श्रेणी के रेडियो नाटककार के रूप में स्वीकृत-स्थापित। मूर्धन्य समालोचक और साहित्यकार डॉ. रामकुमार वर्मा के शब्दों में—‘‘हिमांशु श्रीवास्तव के उपन्यासों ने हिंदी उपन्यास को गंगा जैसी उदात्तता प्रदान की है।’’[5]प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास
लोहे के पंखनदी फिर बह चली
भित्तिचित्र की मयूरी
मन के वन में
दो आँखों की झील
कुहासे में जलती धूपबत्ती
रिहर्सल
परागतृष्णा
शोकसभा
प्रियाद्रोही
पुरुष और महापुरुष
पूरा अधूरा पुरुष
पैदल और कुहासा
नई सुबह की धूप
इशारा
न खुदा न सनम
पियावसंत की खोज
कहानी संग्रह
जेलयात्राहंस चुगे सीप से ज्यों मोती
कथा सुंदरी
मुखबिर होने का इरादा
संस्मरण
यादों के शीशे मेंसन्दर्भ
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