सेवा के संबंध में
परम गुरु हुज़ूर डा. लाल साहब का महत्वपूर्ण बचन
बसंत से एक रोज़ पहले
(पिछले दिन का शेष)
इधर दो रोज़ से कल और आज मुझे यहाँ दयालबाग़ में मुहल्लों में जाकर के यह देखने का मौक़ा मिला कि हमारे यहाँ कालोनी के जो residents हैं, रहने वाले हैं उनमें सेवा करने का उत्साह है। और बहुत उत्साह है, बड़ी उमंग है और जो उन्होंने अपने मुहल्लों में मकानों की सफ़ाई, उस पर रंग करना, दरवाज़े पर पेन्ट, पालिश करना, सड़कों को साफ़ करना और इस तरह के बहुत से काम करके अपने मुहल्ले को सजाना आदि यह सब जो किया है, उससे मुझे ऐसा अनुमान होता है कि हर सतसंगी दयालबाग़ की सेवा कर सकता है। शायद कुछ लोगों को ऐसा करने में, सेवा करने में दिक्कत हो लेकिन ज़्यादातर सतसंगी और ख़ासतौर से लड़के-लड़कियाँ यहाँ पर ख़ूब काम करते हैं।
मुझे बड़ी ख़ुशी हुई कि अगर कभी कोई मौक़ा ऐसा पड़ा कि ऐसा प्रबन्ध हम लोगों को अपने आप करना पड़ा तो हमारा क़दम और आगे बढ़ेगा और तेज़ी से काम कर सकेंगे। शायद हमको दूसरे लोगों पर depend (निर्भर) करने की ज़रूरत नहीं रहे, फिर भी इस बात की ज़रूरत है कि आप कम से कम अगले साल- कल से और ज़ोरों के साथ जो भी जिससे सेवा बन सके और जहाँ तक बन सके, वह और ज़्यादा करें।
अभी इस बचन में इस बात का ज़िक्र था कि हुज़ूर स्वामीजी महाराज यहाँ पधारें, मैं इसमें इतना और जोड़ना चाहता हूँ कि हम सब प्रार्थना करें कि परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज जिन्होंने दयालबाग़ की स्थापना की वे भी बसंत के मौक़े पर तशरीफ़ लायें और परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज जिन्होंने इस बस्ती को हरा-भरा कर दिया, वे भी तशरीफ़ लावें, और मुझे पूरी उम्मीद है कि अगर हुज़ूर ने हमारी प्रार्थना मंज़ूर कर ली तो शायद वह यह देखकर के ख़ुश होंगे कि यहाँ के सतसंगियों ने सेवा का आदर्श सामने रखकर के और जो कुछ उनके बस में था या जो कुछ वे कर सकते थे, उन्होंने हुज़ूर के स्वागत करने के लिए किया। उन लोगों ने सारे दयालबाग़ की सफ़ाई करके दयालबाग़ को चमका दिया और मुझे यह भी उम्मीद है कि हुज़ूर मेहताजी महाराज तशरीफ़ लावेंगे तो जिन लोगों ने मेहनत की है और इस सेवा में भाग लिया है, उन सबको ज़रूर इनाम मिलेगा। आख़िर हुज़ूर साहबजी महाराज ने जो फ़रमाया था कि सतसंगियों को सतसंग कम्यूनिटी की सेवा करने के लिए select कर (चुन) लिया गया है, बहुत पुरानी बात है पूरी होकर रहेगी। अगर आप इसमें सहयोग देंगे तो काम हल्का हो जायेगा और जल्दी हो जायेगा। तो मैं आप सबसे यही दरख़्वास्त करूँगा कि सेवा का आदर्श सामने रखिये। जो जिससे बन पड़े, उतनी सेवा कीजिए। सतसंगी भाइयों की सेवा कीजिए, संगत की सेवा कीजिए, संस्थाओं की सेवा कीजिए और सेवा करते वक्त़ यह मत सोचिए कि इसके एवज़ में हमको तो ये मिल जाना चाहिये, वो मिल जाना चाहिए। उसमें सेवा में गड़बड़ी हो जाती है। सेवा जो करे, वह यह सोच करके करे कि सेवा का मौक़ा ज़िन्दगी में कभी कभी मिलता है। अगर आप सेवा का मौक़ा एक मर्तबे खो देंगे तो पता नहीं कि दोबारा इस तरह का मौक़ा आपको मिल सके या न मिल सके। अगर मैंने कोई बात जो आपको पसंद नहीं आयी हो, कह दी हो तो उसका ख़्याल नहीं करियेगा। जो कोई अच्छी बात मैंने कही हो, उसी पर ध्यान दीजिएगा। राधास्वामी
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