छोटी बहर की नई ग़़ज़ल आप सभी को नज्र
वो तो पहले कभी ऐसा नहीं था
हमारा इश्क भी झूठा नहीं था ।
मुकर वो जायेंगे अपनी जु़बा से
कभी हमनें भी ये सोचा नहीं था ।
मिले थे जख़्म उल्फ़त में जो मुझको
अभी वो जख़़्म भी सूखा नहीं था ।
कहे दुनियां बुरा उसको भले ही
मगर नज़रो का वो गन्दा नहीं था ।
वो हारा तो था अपनो से यहॉ पर
मगर हिम्मत से वो हारा नहीं था ।
हुई नाकामियां हांसिल भले ही
मगर अन्दर से वो टूटा नहीं था ।
अभी बदले हुए दिन है आज उसके
मगर गुरबत को वो भूला नहीं था ।
तड्पता दर्द से कितना हो लेकिन
मगर सब से वो कहता नहीं था ।
बिछड् भी जायेंगे एक दूसरे से
कभी ख़्वाब में सोचा नहीं था ।
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