देख इन आंखों में एक अश्क न छोडा हमने
किस कदर पास किया है तेरे ग़म का हमने
ज़िन्दगी आज हक़ीक़त है कल अफ़साना थी
भूल जाओ के कभी प्यार किया था हमने
ये समझकर ये नेमत भी किसे मिलती है
लम्ह- ए- ग़म को भी हंस हंस के गुज़ारा है हमने
आज तक जिसकी सज़ा काट रहे हो 'वसीम '
ज़िन्दगी ले के बडा जुर्म किया था हमने
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