गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

ममतामयी माँ / विजय केसरी



ममतामई मां रामावती देवी के पार्थिव शरीर को  अग्नि के सुपुर्द कर हम सबों ने अपने - अपने पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्य का निर्वाहन किया था।  उनका पार्थिव शरीर चंद घंटों में ही धू - धू कर अग्नि को समर्पित हो गया था। रामावती बचपन से ही बड़ी दयालु और ममतामई थी  । रामावती मां के इस ममतामई और मधुर व्यवहार के चलते उन्हें सभी प्यार करते थे । उनकी शव यात्रा में गांव के हर तबके के लोग और दूर दराज के लगभग सभी रिश्तेदार सम्मिलित हुए थे ।‌ कई लोग श्मशान घाट में ही रामावती के व्यवहार की प्रशंसा कर रहे थे। रामावती का मृत्यु इकासी वर्ष की उम्र में हुई थी ।‌ अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गई थी। वह ससुराल सुहागन आई थी । वह चार बेटों के कंधे पर चढ़कर सुहागन ही विदा हुई । इस बात की भी चर्चा लोग कर रहे थे।

 रामावती  देवी दुनिया से विदा हो चुकी थी। लेकिन उसकी चर्चा आज भी लोग करते नहीं थकते हैं।  रामावती देवी लोगों की स्मृतियों में  सदा जीवित रहेंगी। जब भी  उसकी चर्चा होती है,..  रामावती देवी पुनः जीवित हो उठती हैं । रामावती देवी स शरीर नहीं रह कर भी उसकी ममता भरी बातें  लोगों को प्रेरित करती रहेगी।

  रामावती देवी की जैसी सूरत थी, उसी अनुरूप उसकी सीरत थी। वह विपरीत परिस्थितियों में भी कभी संयम नहीं खोती थी ।  उन्हें  जब भी कोई भला - बुरा कह देता, तब भी वह मुस्कुराकर कर चुप रह जाती थी। यह मेरा परम सौभाग्य है कि ऐसी ममतामई मां का दामाद बनने का मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ। मैं, बीते तैंतालीस वर्षों से उन्हें देखता आ रहा हूं । मिलता रहा हूं।  बातचीत करता रहा हूं । उन्हें कभी भी गुस्से में नहीं देखा। वह सबों से बड़े ही अच्छे तरीके से मिला करती थी । वह घर आए मेहमानों के स्वागत में जी जान लगा दिया करती थी। उनके लिए कोई पराया नहीं था बल्कि सब अपने ही थे। वह रामावती से ममतामई मां बन गई थी। सच्चे अर्थों में वह सिर्फ अपने ही परिवार की मां नहीं थी बल्कि पूरे गांव, समाज की मां बन गई थी।

मुझे जैसे ही यह खबर मिली कि सासू मां रामावती देवी अब इस दुनिया में नहीं रहीं। यह सुनकर बड़ा दुख हुआ।  उनका ममतामई चेहरा और ममता भरी  बातें मेरी स्मृतियों में एक साथ घूमने लगीं। मेरी आंखों से आंसू खुद-ब-खुद  छलक पड़े थे। मैं निःशब्द हो गया था।  मेरे मन मस्तिष्क में सिर्फ उनका चेहरा ही बार-बार घूम रहा था।  मैं इस सोच में डूब गया था  कि इसकी सूचना अपनी पत्नी को कैसे दूं। ...

फिर भी मैंने  मन को बांधकर, हिम्मत कर, मां की मृत्यु की सूचना अपनी  धर्मपत्नी को दिया । यह खबर सुनकर उनकी आंखों से भी आंसू  बह पड़े थे । वह बार - बार यही कह रही थीं, 'अब मैं किसे  मां कहूंगी ।' यह कह कर वह रोए जा रही थी।

तब मैंने उनसे कहा,- 'अब जो होनी को मंजूर था,वह तो हो गया। अब हिम्मत से हम सबों को काम लेना होगा। आज ही उनका अंतिम संस्कार होना है।  इसलिए जल्द ही उनका अंतिम दर्शन करने के लिए चलना भी होगा।'

यह सुनकर मेरी पत्नी ने कहा,-' ठीक है। चलती हूं।'

 हम सब जल्द ही गाड़ी से गोंदली पोखर पहुंच गए। रामावती देवी के घर के बाहर भारी भीड़ लगी हुई थी। उनका पार्थिव शरीर रंग-बिरंगे नूतन कपड़ों से सजा हुआ था । अर्थी को भी बहुत ही अच्छे ढंग से सजाया गया था। ममतामई मां रामावती देवी का श्रृंगार देखते बन रहा था। मानो रामावती देवी गहरी निंद्रा में सोई हुई हो । गहरी निंद्रा में सोए रहने के बावजूद मुख पर मुस्कान उसी तरह बनी हुई थी। उसकी मांग का सिंदूर की लालिमा अलग ही छटा बिखेर रही थी। उनके हाथों में सजी चूड़ियां रंग खनकने के लिए तैयार थीं। उनके दोनों हाथों और पैरों को गुलाबी रंग से ऐसा रंग दिया था, जैसे मानो  वह  कुछ ही पलों में उठकर चल पड़ेंगी। वहां उपस्थित सभी स्त्री, पुरुष, बच्चे उनके पार्थिव शरीर को स्पर्श कर ममतामई मां रामावती से आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। औरतें, रामावती देवी की मांग में सिंदूर भर कर  सदा सुहागन बनी रहने का आशीर्वाद प्राप्त कर रही थीं। रामावती के जाने का दुःख सबों के चेहरे पर जरूर उभरा हुआ था । लेकिन चेहरे पर उदासी के कोई भाव नहीं दिख रहे थे । बाजा वाले बाजा बजाने के लिए आ चुके थे।  बस !  उन्हें शोभायात्रा के निकलने का इंतजार था। 

 मेरी पत्नी अपनी मां के पार्थिव शरीर को पकड़कर विलाप कर रही थी। वह बार-बार यही कह रही थी, 'अब मैं किसे अपनी मां कह कर बुलाऊंगी"! उनके इस करुणामई विलाप पर सबकी आंखें भर आईं थीं। वहां खड़ी एक  स्त्री ने मेरी पत्नी को पकड़कर कहा, 'यह संसार का दस्तूर है,  यहां जो आया है, उसे एक न एक दिन जाना ही पड़ेगा। रामावती मां हम सब की मां थी। उम्र हो गई थी। चलते फिरते चली गई। ऐसी मौत कहां किसी को नसीब होती है । भगवान उन्हें स्वर्ग में  स्थान प्रदान करेंगे '

 तभी दूसरी औरत ने यह कहा, 'रामावती मां पूरा जीवन जी ली थी । उसने नाती - पोता और परनाती तक देख ली थीं। वह बहुत भली थी। उसने पूरे परिवार को बांधे रखा था। साथ ही रामावती मां कभी किसी  को पराया नहीं समझी। क्या घर? क्या बाहर? सबों को बांधे रखी थी।  लेकिन एक न एक दिन तो उसे जाना ही था । आज वह चल बसी । वह किसी की दासी भी नहीं बनी । चुपके से चल निकली। ऐसी मौत कहां है किसी को नसीब होती है।'

मेरी पत्नी इन बातों को सुनकर चुप जरूर हुई लेकिन अंदर ही अंदर रो रही थीं। उनके आंखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे। वह कब तक मां के  पार्थिव शरीर को पकड़े रहतीं। अंततः भारी मन से उसने खुद को मां के पार्थिव शरीर से अलग किया। 

रामावती मां के चारों पुत्र, चार कोनो से पार्थिव शरीर को कंधा देकर निकल पड़े थे। बाजा वाले बाजा बजा रहे थे । राम नाम सत्य है। राम नाम सत्य है। इस नारे के साथ शव यात्रा शमशान भूमि की ओर आगे बढ़ रही थी। 

 रामावती मां की शव यात्रा देखते बन रही थी। कोरोना के प्रतिबंधों के बावजूद लोग मुंह पर मास्क लगाकर रामावती मां  की अर्थी को कंधा दे रहे थे। शव यात्रा में शामिल लोग अर्थी को कंधा देने के लिए उतावले हो रहे थे। लोग अर्थी को कंधा देकर खुद को भाग्यशाली समझ रहे थे।  इस शव यात्रा में सैकड़ों की संख्या में लोग जुटे थे। रामावती मां की शव यात्रा में शामिल लोगों को देखकर प्रतीत हो रहा था कि यह किसी अति विशिष्ट जन की शव यात्रा हो।

आसपास के जितने भी रिश्तेदार थे। लगभग सभी इस शव यात्रा में शामिल थे। उनकी शव यात्रा में नाती - पोता सहित पर नतनी  भी शामिल थी। लोग कह रहे थे,  'रामावती मां कितनी भाग्यशाली है कि उसकी शव यात्रा में परनतनी भी शामिल हो गई'। रामावती मां की एक पोती उनके पार्थिक शरीर का अंतिम दर्शन के लिए धनबाद से निकल चुकी थी। रामावती मां की अर्थी को अंतिम बार गाड़ी से उतारकर जमीन पर कर्मकांड के लिए रखा गया। तभी उसकी पोती ज्योति पहुंची गई थी।उसने ममतामई रामावती दादी के पार्थिव शरीर का अंतिम बार दर्शन किया । उसकी आंखें भर गई थी। दादी की गोद में पली बड़ी हुई थी।

इतनी कड़कड़ाती ठंड में भी उनके पार्थिव शरीर का अंतिम दर्शन करने के लिए काफी लोग श्मशानघाट पंहुच  रहे थे। कई लोगों को विलंब से सूचना मिलने के बावजूद उनके पार्थिव शरीर का अंतिम दर्शन करने के लिए पहुंचे  थे। लेकिन तब तक रामावती मां के पार्थिक शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया गया था । इस स्थिति में लोगों ने जलती हुई अग्नि में अपनी ओर से लकड़ियां अर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित किया था। 

इकासी वर्ष पूर्व रामावती मां का इस धरा पर आना हुआ था । उनका रांची के एक संपन्न  व्यवसाई परिवार में हुआ था। रामावती, बचपन से ही दयालु, हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की थीं। इसी कारण परिवार के सभी सदस्य उन्हें खूब प्यार करते थे। रामावती मां मिडिल तक ही पढ़ाई कर पाई थी। तभी  रांची के  गोंदली पोखर निवासी जगदीश साहू से इनकी शादी कर दी गई । रांची शहर में पली बढ़ी रामावती मां, शादी के बाद जब ससुराल आई,  ग्रामीण परिवेश में उन्हें थोड़ा अजीब जरूर लगा था। लेकिन रामावती मां  धीरे धीरे कर उस परिवेश में ऐसा रच बस गई, जैसे वह इसी परिवेश की हो। 

  वह ससुराल में पहले ही दिन से अपने मृदु व्यवहार से परिवार के सदस्यों का दिल जीत ली थीं। वह अपने सास - ससुर का बड़ा ही ख्याल रखती । सास - ससुर की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़तीं थी। उनसे जितना बन पड़ता,  दोनों की खिदमत करती । जब तक सास ससुर जीवित रहें। दोनों अपने पुत्र बधु रामावती मां का बहुत ही नाम लिया करते थे।  उन दोनों ने कई बार  इस बात की चर्चा भी मुझसे की थी।

रामावती मां बचपन से ही धार्मिक स्वभाव की थी। उनका यह स्वभाव जीवन पर्यंत बना रहा। ईश्वर पर उनकी गहरी आस्था थी । वह हिंदू रीति-रिवाज और पर्व को बहुत ही मन से मनाती थी। वह पर्व पर उपवास किया करती थी।  ईश्वर पर गहरी आस्था रहने के चलते उन्होंने तीर्थ यात्रा भी की। घर पर अगर कोई मांगने वाले आ जाए तो उसे वह खाली हाथ नहीं लौटाती थी। मांगने वाले को स सम्मान कुछ ना कुछ देकर विदा करती थी। उनका यह स्वभाव जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहा था ।  

 रामावती मां का दान पर बड़ा से विश्वास था । उन्होंने एक बार दान के संबंध में  कहा था, 'दान देने से धन नहीं घटता है । दान देने से मन निर्मल होता है। दान देने से घर में सद्बुद्धि और शांति की स्थापना होती है। ईश्वर ने जो मुझे दिया है, उसे ही ईश्वर के पुत्र को अर्पित कर रहा हूं । जो भी लोग यहां यहां दान करते हैं, उन पर सदा ईश्वर की कृपा बरसती रहती है। दान से मन के विकार मिटते हैं । दान जीवन का सर्वोत्तम धर्म है। इसलिए सब लोगों को दान करना चाहिए'।  

रामावती मां  ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी । इसके बावजूद रामचरितमानस और महाभारत में वर्णित कथा को बड़े ही चाव के साथ सुनाया करती थी। टीवी में चल रहे धार्मिक धारावाहिक को बड़े ही चाव से देखा करती थी। धार्मिक विषयों पर उन्हें बातचीत करना बहुत ही अच्छा लगता था।

रामावती मां में एक खासियत यह थी कि जीवन पर्यंत वह लोगों को आशीर्वाद देती रही थी। जो भी रिश्तेदार अथवा मोहल्ले के लोग उनसे मिलने आते, उनका पैर छूते, वह उन्हें आशीर्वाद देने में कोई कमी नहीं करती। उनके आशीर्वाद के ये शब्द,.. 'बेटा ? तुम खुब तरक्की करो । खूब कमाओ। खुब फलो फूलो। तुम्हारे घर में कोई कमी नहीं हो । सदा स्वस्थ रहो'। 

  रामावती मां के उपरोक्त बातें उनसे मिलने जुलने वाले शायद कभी भी भुला नहीं पाएंगे । वह जिस अंदाज में  अपने मिलने जुलने वाले को आशीर्वाद दिया करती , उनके चेहरे के भाव भी आशीर्वाद से ओतप्रोत होता था। उनका यह स्वभाव सबसे अलग और निराला था। कई लोग सिर्फ उनका आशीर्वाद लेने के लिए  उनके पास पहुंचते थे । कई रिश्तेदारों का मानना है,  'रामावती मां ने जो आशीर्वाद दिया, वह उसके जीवन में फलित हो गया ।' यह उनके व्यक्तित्व की विशालता थी। वह साधारण जरूर थी। वह साधारण कार्य जरूर करती थी । लेकिन उनका यही साधारण कार्य असाधारण बनता चला गया।  उनकी यही सहजता, सरलता उन्हें देवीय गुणों से ओतप्रोत कर दिया था। जो उनके मुख से निकले आशीर्वाद लोगों को फलित हो रहे हैं।

रामावती मां के चार पुत्र और दो पुत्री हैं। उसने अपने चार पुत्रों और दोनों पुत्रियों को उचित शिक्षा प्रदान किया। उन्होंने अपने सभी बच्चों को नैतिकता की शिक्षा प्रदान किया। उनके  सभी लड़के व्यवसाय में अच्छे  सेटल हैं। उन्होंने चारों बच्चों की शादी बहुत ही अच्छे घरों में की। चारों पुत्र बधुएं आज्ञाकारी हैं। उनका घर पोता - पोती,  नाती - नतनी से भरा है।  उनकी दोनों बेटियां अच्छे घरों में विहाई गई हैं। 

  रामावती मां,  रिश्ते में मेरी सासु मां जरूर लगती हैं।  मेरे दिल में उनका स्थान मां से कम नहीं है।  जब भी मैं उसे मिला। उनका पैर छूआ। उनसे आशीर्वाद लिया। हर बार मैंने एक नई ऊर्जा महसूस किया।  उनका आशीर्वाद मुझको बहुत ही फलित हुआ। जब मेरी शादी हुई थी, तब मेरी आर्थिक स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी। वह इस बात को जानती थी। एक बार उन्होंने कहा,  'बेटा! चिंता मत करो । मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं, तुम लोग खूब कमाओगे और खूब आगे बढ़ोगे।'

उनका आशीर्वाद सच हुआ । आज मैं आर्थिक रूप से बहुत ही बेहतर स्थिति में हूं। हमारे दोनों बच्चे भी अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। रामावती मां एक आदर्श पत्नी। एक आदर्श मां। एक आदर्श पुत्री। एक आदर्श चाची । एक आदर्श दादी - नानी थी। उनका प्रेम सबों के लिए समान रूप से था। 


विजय केसरी,

(कथाकार / स्तंभकार)

 पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301

 मोबाइल नंबर : 92347 99550

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...