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हमारा जीवन कड़ी धूप का सफर है। इसमें कहीं-कहीं गहरी छाया वाले पेड़ मिलते हैं,जहांँ हम कुछ पल के लिए विश्राम करते हैं। ऐसा भी होता है कि प्यास लगती है मगर पानी नहीं मिलता,भूख लगती है मगर रोटी नसीब नहीं होती। कभी-कभी ऐसा सुखद संयोग होता है कि इस कड़े सफर में कुछ साथी मिल जाते हैं जिनसे बात करते हुए यह आसान जान पड़ता है पर यह भी सच है कि ऐसा कोई साथी नहीं मिलता जो पूरे सफर में साथ दे।
कभी विचारों में तालमेल नहीं हो पाता तो कभी कुछ और अड़चन हमारे इस कड़ी धूप के सफर को और भी कठिन बना देती है। उनमें से एक अड़चन है हमारा अहंकार। यह अहंकार अकसर ऊंँची जाति में पैदा होने का होता है या अधिक धनवान होने का होता है या किसी बड़े ओहदे का होता है।
संतों ने सभी प्रकार का अहंकार बुरा बताया है और इसके अनेक नुकसान बताए हैं,फिर भी हम इसके साथ जीते रहते हैं,अकेले चलते हुए मुश्किलें झेलते हैं,कष्ट सहते हैं किंतु किसी को अपना हमसफर नहीं बनाते।
यह मनुष्य की कितनी बड़ी भूल है। वह जानता है कि इस संसार में सभी का जन्म और मरण एक जैसा है, खाने-पीने के ढंग भी समान है,सभी रोटी खाते हैं,पानी पीते हैं और इसी वातावरण में सांँस लेते हैं। फिर यह कैसा भेद है,यह कैसा पर्दा है जो जीवन भर हमारी आँखों पर पड़ा रहता है। हम इसके कारण जीवन में बहुत से सुखों से वंचित रह जाते हैं पर सँभलना हमें स्वीकार नहीं, यह जानते हुए भी कि धन और हमारा शरीर नश्वर हैं, एक दिन मिट्टी में मिल जाएं गे फिर भी हम किसी न किसी अहंकार में जीते हैं।
कभी-कभी हम उपवास करते हैं, तीर्थयात्रा करते हैं और सत्संग में भी जाते हैं।संतों के प्रवचन सुनते हैं। उस समय अच्छा महसूस करते हैं मगर वहाँ से लौटकर फिर उसी झूठ,अहंकार और छल-प्रपंच के संसार में मग्न हो जाते हैं। यह कैसी विडंबना है कि व्यक्ति को पता है कि उसके पास जो अहंकार की पूँजी है उससे कुछ अच्छा फल मिलने वाला नहीं है,उससे कोई अच्छा व्यापार होने वाला नहीं है। वह अंततः है हमारे विनाश का ही कारण बनेगी फिर भी हम उसी पूंँजी पर कुंडली मारकर बैठे रहते हैं,दुखी होते हैं पर संँभलना हमें स्वीकार नहीं।
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-- किशोर कुमार कौशल
मोबाइल:9899831002
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