श्याम बेनेगल ने अपने मशहूर सीरियल “भारत एक खोज” में जिस अकेली हिंदी कविता का स्थान दिया है वह है रीतिकाल के कवि भूषण की। कहा जाता है कि भूषण को जब मराठा वीर शिवाजी के राजतिलक की सूचना मिली तो उन्होंने उनकी प्रशस्ति में कविताई लिखी और चल पड़े कानपुर से पूना की तरफ। अधारी कांधे पर टांगे यह कवि शिवाजी के राजमहल के पास एक कुएं पर रुका। डोर की सहायता से लोटा भर पानी निकाला पिया और फिर कुएं की जगत पर भांग पीसने लगे। उसी समय एक घुड़सवार वहां से गुजरा। उत्तर के हिंदुस्तान से आए इस अजनबी को देख कर घुड़सवार वहां ठिठका और अभिवादन कर उसके इतनी दूर दक्खन आने का कारण पूछा। भूषण ने कहा कि मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। सुना है कि शिवाजी का राजतिलक होने वाला है इसलिए उनके दरबार में सुनाने के लिए कवित्त लिखा है। घुड़सवार ने उनसे कविताई सुनाने को कहा। भूषण ने सुनाई तो घुड़सवार ने उसे फिर सुनाने को कहा। इस तरह जब भूषण ने 36 दफे वह कवित्त सुना डाला और घुड़सवार ने फिर सुनाने को कहा तो भूषण ने कहा आपको ही सुना कर मैं थक जाऊंगा तो कल शिवाजी के दरबार में क्या सुनाऊंगा? घुड़सवार अपने असली रूप में आ गया और बताया कि मैं ही शिवाजी हूं और ब्राह्मण देवता तुमने 36 बार यह कवित्त सुनाया है इसलिए तुम्हें मैं 36 गांवों की जागीर बख्शता हूं और 36 सहस्त्र स्वर्ण मुद्राएं भी। अब सच्चाई तो पता नहीं लेकिन वह कवित्त मैं यहां दे रहा हूं। कवित्त है-
“इंद्र जिमि जंब पर, बाड़व सुअंब पर, रावण सदंभ पर रघुकुल राज है।
पौन बारिवाह पर, संभु रतिनाह पर ज्यों सहसबाहु पर राम द्विजराज है।।
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर, भूषण वितुंड पर जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर त्यों म्लेच्छ वंश पर सिंह शिवाराज है।।
यह कविता उस समय की राजभाषा बृज में है इसलिए इसकी लाइनें माडर्न हिंदी विद्वानों को अशुद्ध लग सकती हैं।
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