कहते हैं जिसे अच्छा साहित्य पढ़ने का शौक लग जाता है उसके जीवन में से झूठ ख़त्म होने लगता है और वह ख़ुद भी सच कहने की कोशिश करने लगता है | ऐसा साहित्य प्रेमी पाठक स्वयं भी कुछ रचने लगता है | हालांकि ऐसे पाठक की रचना में प्राय: अनगढ़ता होती है लेकिन यदि उसे प्रोत्साह प्राप्त हो तो उसकी रचनात्मकता में काफ़ी संभावनायें भी बन सकती हैं |
हनुमान सहाय ऐसे ही साहित्य प्रेमी हैं जो स्वयं भी रचनात्मक प्रयत्न करते रहते हैं | प्रस्तुत हैं हनुमान सहाय की कुछ रचनायें | इन्हें कवि के रूप में नहीं बल्कि कविताओं से प्रभावित एक सामान्य पाठक के रचनात्मक प्रयास के रूप में पढ़ कर टिप्पणी करें |
#आज_हनुमान_सहाय_जी_का_जन्मदिन है
💓💓 बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
(एक)
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भेड़िया,बहका रहा है,मेमनों को आज फिर।
तुम मुझे राजा चुनो,सिर पे रक्खो ताज फिर।।
ना समझ है मेमने अंजाम से नावाकिफ हैं वो।
प्राण संकट में पड़ेंगे, गिरने वाली गाज फिर।।
एक महाभारत यहाँ पर दाव पर नारी लगी।
द्रोण भीष्म मौन सारे,कौन बचाये लाज फिर।।
नफरतों की दुंदुभि बजने लगी क्यों चारो ओर।
क्यों हुए खामोश बोलो,मोहब्बतों के साज फिर।।
चारागर नाकाम अपना, उससे कोई क्या उम्मीद।
लाइलाज अब मर्ज सारे,कोढ़ में है खाज फिर।।
(दो)
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गर्दिशों का दौर है।
और विकास का शोर है।।
है लम्बी काली रातें
तुम कहते हो भोर है।।
सपने देखे थे सुख के।
दुखता पोर पोर है।।
कृषक सदा लुटता पिटता।
लूटे जमाखोर हैं।।
खामौशी से जुल्म सह रही।
ये जनता कमजोर है।।
(तीन)
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सौ में से जब सत्तर लोग भूख से बेहाल हैं।
कौन कहता है कि मेरा देश बहुत खुशहाल है।।
एक तरफ है तोंद मोटी, चर्बी है छाई हुई।
दूजी तरफ है पेट चिपका, और पिचके गाल हैं।।
आमजन इस देश में चाहता हमेशा ही अमन।
हो यहाँ दंगा ओ बलवा, ये सियासी चाल है।।
सोच ले अंजाम क्या होगा, जो ये कट जाएगी।
जिस पे तू बैठा हुआ है, ये वो ही तो डाल है।।
मछलियाँ जाएँ कहाँ, कुछ समझ आता नहीं।
झील ही सारी यहाँ पर मछवारे का जाल है।।
(चार)
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जुल्मी के जयकारे कब तक।
ये झुठे वादे नारे कब तक।।
रात चांदनी तो ओझल है।
दिन में देखें तारे कब तक।।
ले दे के बस जान बची है।
इसको तुझ पर वारें कब तक।।
सच की भी तो कद्र करो अब।
बेईमान से हारें कब तक।।
जागो यारो चेत भी जाओ।
यूँ ही रहें बेचारे कब तक।।
(पाँच)
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मरहम मांगो हकीम से वो घाव देता है।
सीधी-सी बात को बहुत घुमाव देता है।।
चाहते हम तो अमन ,फिर फसाद क्यों।
क्यों मजहबी उन्माद का तनाव देता है।।
चापलूसी तो उसे खूब रास आती है।।
बात सच कहो, मूंछ पर ताव देता है।।
फूलों से उसको इतनी सख्त नफ़रत है।
जब भी देखो कांटों को ही भाव देता है।।
बातें करता बहुत-सी दिल जीतने वाली।
लेकिन जब भी देखो वो बस छलाव देता है।।
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