गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

खुद को मत भुला दो/



घर के काम जल्दी जल्दी निपटा वो तैयार हो गयी, खुद को आईने में देखा उफ्फ क्या लग रही थी। फिर खुद से बोली "रुचि जल्दी कर नहीं तो फोन पे फोन आने शुरू हो जाएंगे।

फिर हॉल में बैठे सास ससुर से बोली माँ बाबूजी, एक काम से बाहर जा रही हूँ जल्दी ही आ जाऊँगी।

आज महीनों बाद वो घर से बाहर निकली थी, आह कितना अच्छा लग रहा है। इधर रोहन के फोन पे बाबूजी का फोन आया, रोहन ने उठाया -" बहु सज धज के पता नहीं कहा निकली है, उड़ती रहती है लगाम लगाओ।"- बाबूजी ने बात खत्म कर फोन रख दिया।

रोहन अपने सामने बैठी रुचि को देख मुस्करा के बोला हमेशा की तरह तुम्हारे ससुर जी का फोन था तुम्हारी तारीफ कर रहे थे। रुचि समझते हुए बोली- "मैंने तो पहले कहा था आपसे की मेरा घर से बाहर निकलना सही नहीं लगेगा उन्हे, लेकिन आपको अपनी मनमर्जी करनी है उपर से मुझे ये भी बताने से मना किया की मै आपसे मिलने आ रही हूँ, रुचि थोड़ा नाराजगी दिखाते हुए बोली।


मैंने बताने से इसीलिए मना किया ताकि उनको मौका मिले बोलने का। खुद की बेटी के लिए ये बोलते वो?

मैंने कहा था तुम चाहे कुछ कर लो वो लोग तुम्हे कभी  प्यार नहीं  देंगे। कुछ भी करो खोट खोज ही लेंगे, मैं ये नहीं कहता उनको अनदेखा करो लेकिन खुद को मत भूलो। तुम खुद को भूल के उनलोगों की सेवा मे लगी रहती हो। एक ग्लास पानी तक वो लोग खुद से नहीं लेते ये तुम गलत कर रही हो। उसके बाद भी क्या तुम्हे सम्मान मिल रहा है एक बहु का?

कितने दिनों से कह रहा था बाहर निकलो अच्छा लगेगा लेकिन तुम सुनती कहा हो। ठीक है पतिदेव जैसा आप कहे वही करूँगी- रुचि मुस्कराते हुए बोली।



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