बुधवार, 22 मार्च 2023

😮युद्ध* / आलोक यात्री

 युद्ध* / आलोक  यात्री 


आज घर में

क़िताबें 

घोषित कर दी गई हैं 

कबाड़

घर में घेर रखी है

जिस्मानी अस्बाब ने

इनसे कहीं ज्यादा जगह

जिसे आदमी बना सकती हैं 

क़िताबें


क़िताबें

बनाती हैं कबाड़ को आदमी

और आदमी...

बता देता है अचानक

एक दिन

क़िताबों को कबाड़

क़िताबों के खिलाफ

घोषित युद्ध में

शामिल हो जाते हैं

घर के ही

कुछ और लोग

दबा दी जाती है

क़िताब के हक़ में उठी

हर आवाज़


हक़ीक़त से

वाक़िफ़ नहीं हैं

ये लोग

कबाड़ में कभी नहीं बदलतीं

क़िताबें

कबाड़ में बिकीं क़िताबें

फिर सफ़र तय करती हैं

उधड़ जाने के बाद

पन्ना दर पन्ना


अंतिम चेतावनी की

यह आखिरी रात है

कल सुबह खाली करना है

यह कमरा

रहता है इस कमरे में

एक बुजुर्ग शख़्श 

तन्हा

जिससे हर रोज़

बतियाती हैं

ये क़िताबें


निकाल कर फेंकना है कबाड़

इस कमरे का

कल सुबह तक

क्योंकि 

जवान हो चुकी पीढ़ी को चाहिए

अपने हिस्से की

स्पेस

और हवादार कमरा

जिसकी तैयारी में

शाम को ही

सरका दिया गया है

कुछ पुराना असबाब

मेज़

कुर्सी

वॉकर

और पलंग

एक कोने में।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...