जादू
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तुम्हारी माँ के हाथों में जादू है,
पिता जी कहा करते थे,
और मैं भाग कर,
माँ के हाथ पकड़ लेता था,
पर मेरी नन्हीं आंखों को,
माँ के खुरदुरे हाथों में,
सिर्फ़ उभरी हुई,
सख़्त गाँठें ही नज़र आती थीं,
धीरे धीरे,
मेरी उम्र जवान होती गयी,
और नज़र भी,
अब मुझे दिखने लगा था,
कैसे एक छोटे से भगौने से,
पूरा परिवार तृप्ति पा जाता था,
कैसे पुराने कपड़ों से,
नए कपड़े बन जाते थे,
और पुरानी ऊन से नयी स्वेटरें,
जब घर की सारी जेबें,
खाली हो जाती थीं,
तब कैसे चाय पत्ती के डिब्बे से,
हमेशा कुछ नोट निकल आते थे,
एक दिन मैंने माँ के हाथों में,
अपनी पहली तनख्वाह रखते हुए कहा,
माँ, अपने हाथों का जादू,
अब मुझे दे दो,
माँ हँस कर कहने लगी,
पगले, यह जादू घरों की नीँव होता है,
घर की मुहब्बत से ही उपजता है,
सिर्फ़ आँचल में ही बंध सकता है,
अगर मेरी होने वाली बहू संभाल पायी,
तो उसको जरूर दे जाऊँगी,
यह जादू।
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