*महिलाओं के बिन एक दिन, एक स्वप्न*
उस सुबह जब सो कर उठा,
अखबार देखा,
दुनिया की सारी महिलाएं स्ट्राइक पर थीं।
काटो तो खून नहीं,
रात को हुई लड़ाई का नतीज़ा था क्या?
नहीं, ये अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस नहीं, अंतर राष्ट्रीय महिला असहयोग दिवस था।
खैर किसी तरह मैं, बिना चाय के बिस्तर से उठा,
रात की खुमारी उठने कहां देती थी?
बहुत पुकारा.....
आवाज़ आयी...रसोई में चूल्हे के पास ही, सब रखा है, चाय पत्ती, दूध, चीनी और पानी भी,
खुद ही बनाओ आज, और मुझे भी पिलाओ।
अचानक बुज़ुर्गों की याद आ गयी कि चाय सेहत के लिए ठीक नहीं...निकोटिन नहीं लेना चाहिए।
बिना चाय पिये ही,किसी तरह बाथरूम गए, साबुन अपनी आखरी सांसें ले रहा था, किसी तरह फारिग होकर हाथ धोये।
ठंडे ठंडे पानी से नहाये, लेकिन तौलिया ग़ायब।
अब कहें तो किस से कहें ?
पुराने टंगे कपड़ों से बदन पौंछा किसी तरह से।
अलमारी में कच्चा बनियान न मिला, मजबूर होकर वही पुराना गीला कच्छा बनियान पहन बाहर निकले।
पतलून और कमीज नादारद।
धोबी को फोन किया तो उसकी भी यही हालत थी, बोला, "साहब बाथरूम में साबुन लगाए बैठा हूँ, नल में पानी ही नहीं आ रहा, ये तो अच्छा हुआ कि फोन पास रख लिया, और आपके फोन को उठा लिया।" सर बहुत देर हो जाएगी, आज की छुट्टी चाहिए।
बात खत्म.....
धत्त तेरे की.......
खुद ही पुरानी पेंट पर इस्त्री कर पहननी होगी......
सो की भी और पहनी भी।
फिर युद्ध शुरू हुआ, नाश्ता बनाने का.....
रोज़ तो मोटे गद्देदार आलू के पराठे मिलते थे, दही, अचार और चाय के साथ।
आज डाइटिंग का अद्भुत ख्याल ज़ोर मारने लगा और गांधीजी का हफ्ते में एक दिन उपवास का ख्याल भी ठीक ही लगा।
किसी तरह 12 बजे तक तैयार हुए, हांफनी निकल गयी।
मेरे बॉस का फोन आया कि आज वो छुट्टी पर हैं, तुम खुद ही संभाल लेना।
थोड़ी देर बाद जूनियर्स के फोन आने लगे, सर आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं, किसी ने कहा...मेरी माँ बीमार है तो कोई बोला, मेरे घर के बगल में भूकम्प्प आ गया है, सो आज मैं नहीं आ सकता।
कमज़ोरी की वजह से नींद की झुरझुरी सी आ गई।
आंख खुली तो, शाम के 5 बजे थे।भूख से हाल बेहाल था।
सोचा बाहर जाकर खालूँगा, कोई बात नही।
मैं एक रेस्टोरेंट में गया कि भूख मिटे...
रेस्टॉरेंट बन्द मिला, बाहर लिखा था......
" जिस दिन महिला असहयोग अंदिलन खत्म होगा, उस दिन रेस्टोरेंट खुलेगा"।
तभी, एक आवाज़ ने नींद खोली.........
"चाय, गरम पानी और शहद ले कर आई हूँ, बगल में रख दिया है, जल्दी से उठकर पी लो, तुम्हारे कपड़े निकाल दिए हैं, जल्दी से तैयार होकर, नाश्ते की टेबल पर आओ, नहीं तो आफिस के लिए देर हो जाएगी।".....आंख खुली तो सपना टूटा....
एक दिन सपने में पूरी दुनिया, पूरी अर्थव्यवस्था रुक गयी थी।
सपना टूटा, मैं जल्दी से तैयार हुआ, और आफिस को चला.......
पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था बहाल हुई।
बिना तुम्हारे हम अधूरे हैं, मां, बहन, बेटी, दोस्त और पत्नी।....हम ऋणी हैं तुम्हारे।
नत मस्तक तुम्हारे।
सभी महिलाओं को आदर सहित नमन, मातृशक्ति को नमन। एक दिन भी महिलाओं के बिना संभव नहीं, इस सृष्टि में।
आपके बेटे, पति और पिता भी आपके बिना अधूरे हैं, निरीह हैं, आपकी ममतामयी गोद हम तीनों को चाहिए।
इसलिए " NO FEMALE FOETICIDE, PLEASE......भ्रूण हत्या बन्द करो"
अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस पर सब महिलाओं को सादर समर्पित।
संजय शर्मा।
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