बुधवार, 29 मार्च 2023

रवि अरोड़ा की नजर से.....

 डरावने किस्सों की आहट



 जालंमूल्यांकन tv की एक सड़क थी। रात के अंधेरे में मेरा एक मित्र और मैं पैदल ही कहीं जा रहे थे। दूर दूर तक आदमजात का कोई नामो निशान नहीं था । तभी पीछे से एक मोटर साइकिल  की आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ जैसे जैसे निकट आ रही थी, हमारे दिलों की धड़कनें लगातर तेज हो रही थी। लग रहा था कि जैसे आज जीवन का अंतिम ही दिन है। आशंका हो रही थी कि ये मोटर साइकिल वाला हमारे निकट आएगा और अपनी एके 47 से हमें छलनी कर देगा। मगर सुखद आश्चर्य, ऐसा नहीं हुआ । वह मोटर साइकिल सवार आतंकवादी नहीं वरन कोई आम शहरी था और अंधेरा होने के बावजूद हमारी तरह किसी मजबूरी वश अपने घर से बाहर था। अपने इस खौफ की वजह आपको बता दूं । यह बात साल 1983 की है और उस समय पंजाब में घल्लू घारा सप्ताह मनाया जा रहा था । जाहिर है कि उन दिनों पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट अपने चरम पर था रोजाना निर्दोषों का कत्लेआम गाजर मूली की तरह किया जा रहा था। खौफ का ऐसा माहौल था जैसा बंटवारे के समय भी शायद नहीं रहा होगा । इस वाकए के ठीक एक दिन पहले ही मैं अमृतसर के हरमंदिर साहब में था और वहां सेवादारों के अतिरिक्त केवल तीन बाहरी श्रद्धालु थे । उनमें भी मैं इकलौता ऐसा था जिसके सिर पर केश नहीं थे अतः अनेक घूरती आंखें लगातार मेरा पीछा कर रही थीं। अब आप सोचेंगे कि आज ये किस्से क्यों ! तो बस इसका इतना सा ही मकसद है कि आजकल उस दौर की आहटें फिर सुनाई दे रही हैं। 


पुरानी बातों से खुद को जोड़ने में यदि आप असफल हो रहे हों और आहट संबंधी मेरी बात से भी सहमत न हों तो ताजा किस्सा सुनाया हूं।  इस दिवाली पर मैं अमृतसर में था और रात के आठ बजे टैक्सी में सवार होकर शहर का नज़ारा देखने निकला था । मेरे अपने शहर के मुकाबले वहां आधी से भी कम रौशनी और न के बराबर पटाखों की आवाज सुनकर मैंने टैक्सी चालक से इसका कारण पूछा। उसका जवाब हैरान कर देने वाला था । बकौल उसके पिछले कुछ सालों से कट्टरपंथी सिख हिंदू त्यौहारों का विरोध करने लगे हैं और उसी के चलते हर साल पहले के मुकाबले दिवाली पर रौशनी और आतिशबाजी कम होती जा रही है। चलिए अब हाल फिलहाल की बात करता हूं। पंजाब में आजकल जो हो रहा है उसकी जानकारी बेशक दुनिया को अब जाकर अजनाला कांड से हुई हो मगर सच्चाई इससे इतर है। पंजाब से जुड़े होने के कारण मैं अच्छी तरह जानता हूं कि खालिस्तान आंदोलन को किसी न किसी रूप में दशकों से जिंदा रखा जा रहा है। शुरुआती दौर में कनाडा और ब्रिटेन में बैठे संपन्न और खुराफाती सिख इसे लेकर शोर शराबा कर रहे थे और अब उन्होंने पंजाब में भी अपने एजेंट तैयार कर लिए हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने तो एक दिन के लिए भी भारत विरोधी इस षड्यंत्र से अपने हाथ नहीं खींचे थे ।  गुरु ग्रंथ साहब की ओट में अलगाव वादियों का तलवारों के साथ थाने पर हमला तथा पुलिस कर्मियों को बुरी तरह घायल कर दिए जाने और फिर भी पुलिस का निष्क्रिय बने रहना साबित कर रहा है कि प्रदेश में एक बार फिर सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। राज्य की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार कतई नहीं समझ रही कि आग से इसी तरह खेल कर कांग्रेस अपना और देश का कबाड़ा पहले कर चुकी है। अब आप भी थोड़ा बहुत भयभीत होना शुरू कर दीजिए, क्योंकि डरावने नए किस्सों का माहौल बनाया जा रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...