क से कल्पना वि से विचार ता से तालमेल बिठाकर
निर्मित सृजित नवगठित होती है कविता
भाव के समंदर में डूब कर
शब्दों के सीप मोती बीन कर
कोरे कागज पर भावनाओं
कि निश्चल बहती है सरिता
अक्षर अक्षर के योग से
वर्ण मात्रा के सहयोग से
सुबह शाम में ढल कर
दिवस रैन में जलकर
अनुपम मनोरम मधुरम
काव्य महाकाव्य अद्भुत
आदित्य कृति का संयोजन
तब कहीं अलंकृत झंकृत
पुष्पित पल्लवित कुसमित
जन जन के अधरों पर कंठस्थ मानस पटल पर
चित्राअंकित अंकित होती है कविता
क से कल्पना वि से विचार ता से तालमेल बिठा कर
निर्मित सृजित नवगठित होती है कविता
डा बीना सिंह "रागी "
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