गुरुवार, 20 मई 2021

बिना बताये बिना अलविदा कहे / रवि अरोड़ा

 कुछ पता नहीं /  रवि अरोड़ा 



चीलें सी घूम रही हैं आसमान में

कुछ जानी पहचानी

कुछ अनजान

कब किस पर कौन झपट्टा मार दे

कुछ नही पता

दुःखदाई था

मगर फिर भी

तमाशा सा लगता था यह सबकुछ

फिर एक दिन तुम्हे ले गई चील

देखता ही रह गया मैं

अवाक

कहां ले गई पता नहीं

ढूंढ रहा हूं

इधर उधर ऊपर नीचे

कोई सुराग नहीं 

कोई खबर नही

++++++++++

जीवन में आंधी सी आई थी उसके साथ

इकत्तीस साल पहले

 झकझोर सा दिया था मेरा पूरा अस्तित्व

मगर न जाने क्यों अब यूं ही फना हो गई

 चुपके से

अलविदा भी नही कहा

इजाजत तो खैर वो कभी लेती ही नही थी

बस डांटती ही रहती थी है हर पल

 उसे बच्चों सा पालना पड़ता था मुझे 

गिन कर खाता हूं रोटी

सो बनाती थी बड़ी बड़ी रोटी

दाल की कटोरी में नीचे छुपा देती थी घी

मगर गिन कर देती थी मिठाई

फिर धमका कर नपवाती भी थी शुगर

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पक्की चुप्पो थी वो

छुपाती थी अपनी ख्वाहिशें

दिमाग भन्ना जाता था अंदाजा लगाते लगाते

पता नही क्या नाटक था उसका

घर खर्च से बचे पैसे

चुपके से मेरे ही पर्स में डाल देती थी

ताउम्र फक्कड़ ही मानती रही वो मुझे

अपनी किटी के पैसों से भी लाती थी मेरा ही कुछ

पता नही कैसे

मुझे पैसे उधार देकर

भूलने का नाटक कर लेती थी वो

रूमाल तक खरीदना नही आता मुझे 

तभी तो मेरे नए कपड़े लाकर छुपा देती थी 

कहीं चुपके से

किसी शादी ब्याह पर ही दिखाती थी अकड़ कर

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हमेशा कहती थी

तुमसे पहले जाऊंगी मैं

हंसता था मेरा कमजोर शरीर

उसके मजबूत वजूद के सामने

पता था मुझे जिद्दी है वो

मगर इतनी जिद्दी भी तो नही थी

कि सचमुझ पहले चली जाए

बिना बताए 

बिना अलविदा कहे

पता नही एक चील सी ही ले गई उसे

कहां गई पता नहीं

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