आज का पंचतंत्र
1.
आप ने जोग पहले सीखा या भाषण करना?
भाषण ही मेरा जोग है।
इस कला में इतने पारंगत कैसे हुए?
राजनीति में आने के बाद।
भाषण ही करते हैं या कुछ काम भी?
मैं करने वाला कौन होता हूँ। कर्ता कोई और है। मैं तो निमित्त मात्र हूँ। वह जो चाहता है, मैं वही करने लगता हूं।
इससे पहले क्या करते थे?
मंदिर में घंटा बजाता था।
अगर जनता ने फिर मौका न दिया तो?
तो फिर घंटा बजाऊंगा।
2.
आप तो जोगी हैं। त्रिकालदर्शी। कुछ बताइये न। आगे क्या होने वाला है?
अरे, तुम्हारी समझ में अभी भी नहीं आया?
क्या बाबा?
हम सब त्रेता की ओर जा रहे हैं।
वहां पहुँचकर क्या करेंगे?
देखा जायेगा। वैसे वहां से पाषाणयुग ज्यादा दूर नहीं।
3.
बाबा! संन्यास क्या है?
जिंदगी का वह मोड़, जहां से किसी भी दिशा में चल पड़ना आसान हो जाता है।
आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?
देखो मैं कहां से कहां आ पहुँचा हूँ।
कहां पहुँचे?
कल तक जो मेरे पुरखों की चरण धूलि लेते नहीं अघाते थे, आज मुझे उनके आगे सिर नवाना पड़ रहा है।
यह कोई मजबूरी तो है नहीं। आप चाहें तो इनकार कर दें।
नहीं बच्चा! एक संन्यासी ही समझ सकता है कि जितना उठना चाहते हो, उससे ज्यादा गिरने को तैयार रहो।
4.
बाबा! लोग मर रहे हैं। सरकार क्या कर रही?
अब जिनको मरना है, वे तो मरेंगे ही। इसमें सरकार क्या कर सकती है?
बेड, दवाएं और सिलिंडर तो दे सकती है?
वह काम हमारे स्वयंसेवकों ने अपने हाथ में ले रखा है। मुझे खुशी है कि उन्हें बहती गंगा में हाथ धोना बखूबी आता है।
5.
आप की दाढ़ी कमाल की है!
हां, बहुत समय दिया है इस पर।
यह आइडिया कैसे आया कि दाढ़ी बढ़ायी जाये?
कोई खास बात नहीं। सोचा प्रवचन के साथ दाढ़ी का अच्छा कम्बिनेशन बनता है।
तो इससे बात बनी?
अभी तो सर मुड़ाया है। देखते हैं आगे कितने ओले पड़ते हैं।
सुभाष राय
5/5/2021
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