"मातृ दिवस' पर गुरुदेव भारत यायावर की 'मां' शीर्षक कविता पढ़ कर अपनी दोनों माताएं याद आ गईं। अब दोनों माताएं स शरीर इस दुनिया में नहीं हैं। फिर भी हम सभी भाई-बहन उनके होने का एहसास हमेशा महसूस करते हैं। जब भी हम सब भाई बहन किसी मुसीबत में होते हैं , तो हमारी दोनों माताएं पीठ पीछे खड़ी होती है।
गुरुदेव की कविता की पंक्तियां मन को छूती है। उनकी कविता पढ़ने के बाद कुछ पंक्तियां दोनों माताओं के श्री चरणों में अर्पित है।
मेरी प्यारी दोनों माताएंv
यह ईश्वर की कृपा है,
मुझे एक नहीं,
दो - दो माताओं का,
प्यार मिला।
सर आप ट्यूशन पढ़ाने,
हमारे घर आते थे,
दोनों माताओं से मिलते थे,
मेरी दोनों माताओं का स्नेह प्राप्त करते थे।
एक मां ने मुझे जन्म दिया,
दूसरी मां ने लालन-पालन किया,
दोनों माताओं की कृपा सदा,
मुझ पर बनी रही।
सिर्फ मुझ पर ही नहीं,
बल्कि सभी भाई - बहनों पर,
दोनों माताओं की कृपा,
सदा समान बनी रही।
समय के साथ दिन बीतते गए,
हम बच्चे बड़े होते गए,
दोनों माताओं की उम्र बढ़ती गई,
मां - मां बनती गई ।
दोनों माताओं के आंचल में,
हम बच्चे बसते गए,
जरा सी नजरों से दूर होते,
माताएं ढूंढने निकल पड़तीं।
घर पर नहीं मिलने पर,
बाहर मंदिर की ओर चल पड़ती,
मंदिर के बगीचा में हम बच्चों को देख,
नजदीक आकर कलेजे से लगा लेती।
कहती, बेटे! तुम कहां चले जाते हो,
कितना घबरा जाती हूं,
इस तरह मां को तंग नहीं करते,
तुम बच्चों में दोनों माताएं बसती हैं।
हम बच्चों को जरा सा बुखार लगने पर,
दोनों माताएं तुरंत सब काम छोड़ कर,
डॉक्टर के पास ले जाती,
स्वस्थ होने तक बिल्कुल पास रहतीं।
माताएं तनिक भी चीजों की,
कोई कमी नहीं होने देती,
खुद एक सब्जी कम खाती,
बच्चों की थाली में सब्जी कम ना होने देती।
हम बच्चों के पग - पग पर साथ रहती,
इस बात पर ज्यादा ध्यान देती,
बच्चे हर रोग दुख से दूर रहें,
सदा निरोग और स्वस्थ रहें।
हम बच्चों को बुरी नजरों से बचाती,
सबके सामने नहीं लाती,
हम बच्चे दीर्घायु बने,
जितिया का उपवास सहती।
हम बच्चों की मंगल कामना के लिए,
ना जाने कितने पर्व त्यौहार करती,
और ना जाने कितने देवी - देवता,
मजार में दीप जलाती।
यह सब करते करते,
दोनों माताओं की उम्र बढ़ती गई,
माताएं बूढ़ी होती गईं,
लेकिन उन दोनों के आशीष कम नहीं होते।
एक दिन, एक - एक करके,
दोनों माताएं हम बच्चों से विदा होती गईं,
आज दोनों माताएं हम बच्चों के संग नहीं है,
लेकिन हर बच्चों के दिल में बसती हैं।
अभी भी सपने में हम बच्चों के पास आती है,
समझाती और बुझाती हैं,
तुम लोग ऐसे रहो,
वैसे रहो ।
तुम लोगों ने अब तक,
फलना पूजा नहीं किए हो,
जल्दी पूजा करो,
रूष्ट देवता को मनाओ।
हम सबों से दूर रहकर भी,
हमेशा हे पास रहती,
माताओं के मरने के बाद भी,
उन दोनों की छत्रछाया बनी रहती।
जब भी उदास होता हूं,
एकाएक दोनों माताओं के चेहरे,
मन - मस्तिष्क में आ जाते हैं,
उदासी क्षण में दूर हो जाती है।
माताएं रोज घर आतीं हैं,
हम बच्चों को हंसता खेलता देख,
स्वर्ग लोक का सब सुख भूल जाती,
बच्चों में ही माताएं सब सुख पती हैं।
बच्चों के घबराने पर माताएं कहती हैं,
बेटे ! तुम क्यों घबराते हो,
तुम बच्चों पर हम माताओं की कृपा है,
तुम सबों का बाल बांका भी कभी ना होगा।
हम माताएं तुम्हारे साथ हैं,
तुम सबों का भला ही होगा ,
तुम लोगों ने किसी का बुरा नहीं किया है,
तुम्हारा भी बुरा नहीं होगा।
माताएं आज भी जब ईश्वर से दुआ करती हैं,
बच्चे ही उनकी दुआओं में होती हैं,
माताएं जब जीवित थीं,
आज भी उनकी दुआओं में बच्चे ही होते हैं।
माताओं की मंगल कामना बच्चों से शुरू होती हैं,
बच्चों में ही पूरी होती हैं,
आज जब माताएं नहीं है,
उनकी मंगल कामना मिलती रहती हैं।
मां - मां होती हैं,
मां का स्थान कोई रिश्ता ले नहीं सकता,
मां के आशीष के बिना,
कोई भी बेटा कामयाब नहीं हो सकता।
मां करुणा के सागर होती हैं,
मां दया के सागर होती है,
मां ममता की सागर होती है,
मां बस मां होती है।
आज दोनों माताएं साथ नहीं है,
फिर भी माताएं दिल में बसती हैं,
हर मुसीबत की घड़ी में,
पीछे दोनों माताएं खड़ी होती है।
विजय केसरी ,
(कथाकार / स्तंभकार) ,
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301,
मोबाइल नंबर - 92347 99550,
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