कोरोना: पाँच ग़ज़लें / डॉ. वेद मित्र शुक्ल
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1.
माना मुश्किल घड़ी आज,
फिर भी हिम्मत बड़ी आज।
घर में रहकर भजन करें,
छोड़ें हम हेकड़ी आज।
लक्ष्मणरेखा खिंची हुई,
करना मत गड़बड़ी आज।
खतरे की जंजीर अगर,
तोड़ें इक-इक कड़ी आज।
कट जायेगा कठिन समय,
काहे की हड़बड़ी आज।
“खट्टे हैं अंगूर” कहे-
कोरोना लोमड़ी आज।
2.
समय बख्शा है कुदरत ने आओ घर को बनाएं घर
अगर मुश्किल तो भी ठानें चाहे हो जो बनाएं घर।
सुनामी हो या कोरोना ये आखिर बीत जाते हैं,
बिगाड़े मत धीरज खोकर, आओ, आओ बनाएं घर।
महामारी या कोई जंग मनुष्य जीता, जीतेगा,
जहाँ भी हैं, चाहे बंकर या झोपड़ हो बनाएं घर।
प्यार, जज़्बातीपन, सपने औ एकजुटता इनसे हम-
चलो भीतर अंतर्मन में आओ यारो! बनाएं घर।
खिंची है लक्ष्मण रेखा आज फिर से, गलती मत करना,
शेष जो भी है अब चिंता छोड़ो हम तो बनाएं घर।
3.
कौन पढ़े अखबार आज जग झूठा लागे,
बेमतलब के राज-काज जग झूठा लागे।
इनकी-उनकी इधर-उधर की कौन सुने अब,
भीटर यों है बजा साज जग झूठा लागे।
देह दे रही धोखा, बेबस साँसें उखड़ी,
किस पर यारा! करें नाज जग झूठा लागे।
इतना भी क्यों दुनियादारी में खोए हम,
कोरोना बन गिरी गाज जग झूठा लागे।
मानुष भूला अपनी मिट्टी की खुशबू यों
लुटने को है आज लाज जग झूठा लागे।
4.
हक साँसों का नहीं छोड़ना जीतेंगे,
कोरोना से युद्ध है ठना जीतेंगे।
है दूरी, पर मन से मन तो मिले हुए,
यारा! हिम्मत नहीं हारना जीतेंगे।
खबरें अच्छी नहीं अभी, पर होने को,
भीतर यों विश्वास पालना जीतेंगे।
अंधेरा आँखों के आगे छाये जब,
आशाओं के दिये बालना जीतेंगे।
‘दो गज दूरी–मॉक्स् जरूरी’ जीने को,
देखो, भइया! नहीं भूलना जीतेंगे।
5.
कोरोना पर देखो भारी है सोशल डिस्टेंसिंग आज,
हारेगी अब यह बीमारी है सोशल डिस्टेंसिंग आज।
अपना भारत, प्यारा भारत, इसकी रक्षा हमको करनी,
कर रख्खी पूरी तैयारी है सोशल डिस्टेंसिंग आज।
गाँव-नगर या महानगर हो, सबने ठाना टक्कर देंगे,
पछताएगी अब बेचारी है सोशल डिस्टेंसिंग आज।
सारे जग में कहर ढा रही, जन-जन ने इसको पहचाना,
सच पूछो असली हुशियारी है सोशल डिस्टेंसिंग आज।
पुलिस, चिकित्सक, पत्रकार सम कोरोनावीरों को आओ,
मिलजुलके हम हों आभारी है सोशल डिस्टेंसिंग आज।
डॉ. वेद मित्र शुक्ल
राजधानी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
राजा गार्डन, नई दिल्ली-110015
मोबा: 9953458727, 9599798727
अपने समय को कहती इन पंक्तियों को आपने स्नेह दिया, हार्दिक आभार!
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