बुधवार, 19 मई 2021

आलोक यात्री

 📎 परेशानी हालात से नहीं, / ख़्यालात से खड़ी होती है


करीब पचास दिन से मैं भी मौज़ूदा हालात से दो-चार हूं

इस दौरान वक़्त के कई थपेड़े भी खाए

आता जाता समय गाहे-बगाहे चपत सी मार कर भी गुज़रा

अब भी वक़्त किसी न किसी तरह से चपत जड़ ही देता है

शिकायत किससे करें

गिला किससे...

बस... शहरयार का कहा याद आ रहा है...

"ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है हद-ए-निगाह तक जहां गुबार ही गुबार है..." 

मेरा मानना है कि

परेशानी हालात से नहीं, ख़्यालात से खड़ी होती है

हमारे इर्द-गिर्द हालात बेशक अच्छे नहीं हैं 

लेकिन इन हालात को लेकर विभिन्न माध्यमों द्वारा जो ख़्यालात परोसे जा रहे हैं वह सिर्फ खौफ का पैराहन तैयार कर हमें पहनाते रहते हैं

और हम कमीज़ के ऊपर कमीज़ की तरह डर के ऊपर डर ओढ़ते रहते हैं

हर कोई अपने-अपने अंतर्द्वंद्व से आतंकित सा नज़र आता है

अपनी पीड़ा सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने के प्रयास में खौफ के मंज़र में कुछ और इज़ाफा कर जाता है

कई बार तो ऐसा लगता है कि उस परम शक्ति ने हमारी सलीब मुकर्रर कर रखी है 

और हम अपनी सलीब पर खड़े-खड़े काल के अंतर में बेबसी से टुकुर-टुकुर ताक रहे हैं

जेहन हाथ पांव सब विद्रोह पर आमादा हैं

सोशल मीडिया पर जो कुछ चल रहा है काश उससे खौफ की जगह कुछ संजीवनी ही हासिल हो जाए

मित्रों से भी आग्रह है कि 

इस संकटकाल में जितनी वैचारिक संजीवनी बांट सकें बांटें 

इस अभयदान की मुझे ही नहीं पूरे समाज को बहुत आवश्यकता है

धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...