मंगलवार, 24 जनवरी 2023

चेहरा देखा तुम्हारा- / विजय प्रकाश

 अजनबी इक चेहरे में

चेहरा देखा तुम्हारा- 

खुल गये अध्याय कितने

बंद पुस्तक के दुबारा।


पूर्व की खिड़की खुली,

छँटने लगा खुद ही अँधेरा,I

रश्मि-रथ पर चढ़ा आता

दिख रहा अद्भुत सबेरा;

रौशनी की बाढ़-सी

आने लगी चहुंओर से ज्यों

इक नदी इतनी बढ़ी कि

खो गया यह-वह किनारा।


खुल गये संदर्भ कितने

देह के, मन के मिलन के, 

खुल गये गोपन सभी

संसार के सुंदर सृजन के;

इस जगह इस मोड़ पर

अब प्रश्न बेमानी हुए कि 

कौन आया दौड़ता-सा

और किसने था पुकारा।


गंध का संसार केवल

रह गया चहुंओर अपने,

एक मिलकर हो रहे हैं

सच हमारे और सपने;

बिन्दु में ब्रह्माण्ड के

दर्शन सहज होने लगे हैं,

क्षीर-सागर में स्वयं

मिलने लगी है एक धारा।

                       * * *

- डॉ. विजय प्रकाश

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