रविवार, 8 जनवरी 2023

कामता प्रसाद सिंह काम / आज़ादी के दीवाने और उनके चार नारे

  

वंदे मातरम आज हमारे लिए किसी सुमधुर गीत से अधिक कुछ न हो पर एक समय था जब इससे हमारे राष्ट्रीय जीवन की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई थी। आज हमारे लिए इंकलाब जिन्दाबाद किसी जुलूस का उन्माद होकर भले ही रह गया हो, पर एक समय ऐसा भी था जब यह क्रांति का संवाहक हुआ करता था। जय हिन्द अब हमारे लिए महज एक बोल हो, पर कभी यह हमारी चेतना और स्फूर्ति का मंत्र था। और आज दिल्ली चलो की पुकार का चाहे कोई मतलह हो, न हो, पर एक वक्त यह हमारे धर्म और कर्म का मार्ग निर्धारित करता था।

स्वतंत्रता सेनानी और लेखक कामता प्रसाद सिंह काम जी का आलेख आजादी के चार नारे उस दौर को हमारे सम्मुख ला खड़ा करता है, जिसे हम भूलने लगे हैं। यह आलेख उन्होंने उन्नीस सौ बयालिस में या संभवतः उससे भी पहले लिखा था। इसमें उस समय के जोश और जज्बे को बखूबी देखा जा सकता है। ये नारे बुलन्द करते-करते कामता बाबू खुद भी जेल गए। 


इस आलेख की पहली कड़ी रंजन कुमार सिंह के स्वर में https://youtu.be/euGGrkn0RtY


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