प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
जब एक ऋषि के श्राप पर भारी पड़ा एक सती का श्राप, तो विधाता को भी बदलना पड़ा विधि का विधान।
किसी नगर के बाहर मांडव ऋषि अपने शूल पर बैठकर तपस्या कर रहे थे, तभी वहां से सती कौशिकी और उनके पति कौशिक जो कि शरीर से लाचार थे उस रास्ते से गुजर रहे थे तभी अचानक कौशिकी और उनके पति कौशिक अंधेरा होने के कारण सूल से टकरा जाते हैं। उनके टकराने से शूल पर तपस्या कर रहे मांडवी ऋषि की तपस्या भंग हो जाती है। तपस्या भंग होते ही ऋषि पूछते है वो कौन है जिसने उनकी तपस्या भंग किया है। कौशिक कहती यह अपराध हमसे हुआ है महात्मा हम क्षमा करे। हमसे भूल हो गई।
मांडव ऋषि अधिक क्रोधित हो जाते हैं, और क्रोध में आकर कौशिकी को श्राप दे देते हैं कि सूर्योदय होते ही वहां विधवा हो जाएगी और उसका पति काल के मुख में समा जाएगा अर्थात कौशिक की मृत्यु हो जाएगी।
यह श्राप सुनकर कौशिकी मांडवी ऋषि से बहुत विनती करती है कि उनसे भूल हो गई उनको क्षमा करें, परंतु मांडव ऋषि वह श्राप वापस नहीं लेते, और मन में यह सोचते हुए कि श्राप देते ही उनका संपूर्ण पुण्य और तपोबल नष्ट हो गया है अतः अब वह श्राप वापस नहीं ले सकते और वापस ध्यान मग्न हो जाते हैं।
कौशिकी और कौशिक जैसे तैसे उनकी कुटिया मे आते हैं, उधर सूर्योदय होने में कुछ ही घंटे बाकी थे ।कोशिकी उसी समय राजा के पास जाती है परंतु राजा आराम कर रहे हैं यह बोलकर राजा के पहरेदार कौशिकी को सुबह आने का बोलते हैं।
फिर कौशिकी राजगुरु के पास जाती है और उनको सारी बात बताकर उनसे आग्रह करती वह उनको ऐसा वरदान दे जिससे मांडव ऋषि का दिया हुआ श्राप निष्फल हो सके परंतु राजगुरु उन्हें यह कह कर मना कर देते हैं कि इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जो मांडवी ऋषि के श्राप को निष्फल कर सके और उनके श्राप को निष्फल करना मेरे बस में नहीं है । उनका श्राप अटल है और जो बोला है वो होकर रहेगा। वह इतना कहकर वापस अपने कक्ष में चले जाते है।
उधर धर्मराज यह देख कर गहरी सोच में पड़ जाते हैं कि विधि के अनुसार अभी ना तो मांडवी ऋषि की मृत्यु का समय है और ना कौशिक की मृत्यु का।
तभी धर्मराज के पास नारद जी आते हैं और पूछते हैं किस समस्या में उलझे हो धर्मराज ?
धर्मराज:-- ऋषि श्रेष्ठ मांडव ऋषि ने कौशिकी को तो श्राप दे दिया परंतु कौशिकी के पति की मृत्यु अभी दूर है मैं सोच रहा था,.......तभी नारद जी बीच में ही बोलते हैं।
देवर्षि नारद:-- सोचिए मत धर्मराज वैसे भी श्राप अभिशाप से बच कर रहना चाहिए, श्राप के अनुसार आज सूर्य उदय होते ही आपको कौशिक के प्राण हरण कर लेना चाहिए।
धर्मराज:-- परंतु यह तो विधाता के विधान में हस्तक्षेप होगा देवर्षि।
देवर्षि नारद:--और यदि आपने श्राप का अनादर किया तो एक ऋषि के श्राप के विफल हो जाने का तात्पर्य है उनके वचन का मिथ्या हो जाना, और धर्मराज यदि एक ऋषि का वचन मिथ्या हो गया तो तब कौन करेगा, यज्ञ कौन करेगा, और यज्ञ ना होने का अर्थ है भगवान की पूजा नहीं होगी भक्ति नहीं होगी क्या आप यह चाहते हैं।
धर्मराज:-- नहीं मैं यह कभी नहीं चाहता।
देवर्षि नारद:-- तो बस आप मांडवी ऋषि के श्राप का आदर करें और सूर्योदय होते ही कौशिकी के पति के प्राणों का हरण कर ले। और इतना कहकर नारद जी वह से चले जाते है।
उधर कोशिकी रोते रोते माता के मंदिर में जाती है और माता की प्रतिमा के आगे रोते हुए कहती है। में हार गई हूं मा, सबके आगे हाथ जोड़ जोड़ के थक गई हूं। मुझ निर्दोष को इतना बड़ा श्राप मिला। अब तक मुझे अपने पतिव्रता होने पर अभिमान था परन्तु अब वो ये जान गई है कि वो सिर्फ एक साधारण नारी है एक अबला नारी।
तभी माता की प्रतिमा से आवाज आती है। और कौशिकी से माँ कहती है, जो अपनी रक्षा खुद नही करते उनकी रक्षा कोई नही करता, तुम इतनी कमजोर हो जाओगी इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं कि थी। तुम सती हो अबला नही, तुम नारी शक्ति हो ब्रह्मा जी द्वारा दिये गए इस जीवन का तुमने इतना सदुपयोग किया है कि तुम अब एक शक्ति बन गई हो । जो तुम चाहो वो हो सकता है।
सूर्य उदय ना हो तो........माता रानी कहती है ... तो सूर्य उदय कभी नहीं होगा। इतना सुनते है कोशिकी खुश हो जाती है और वापस दौड़ कर अपने पति कोशिक के पास आ जाती है।
तभी उसे वहां यमदूत दिखाई देते है जो कोषिक के प्राण लेने आए थे और सूर्य उदय होने का इंतजार कर रहे थे। कौशकी यमदूतों को रुकने को कहती है यमदूत कहते है हम तुम्हारे पति के प्राण लेने आए है सूर्य उदय होने वाला है। कोशिकी कहती है सूर्य उदय अब नहीं होगा। इतना बोलकर कोशिकी नीचे रखे कमंडल से जल लेकर आठो दिशाओं, सभी भगवान और प्रकृति को मानकर कहती है। यदि वो सती है, उसमे थोड़ा भी सतित्वा है तो सूर्य उदय कभी नहीं होगा।
इतना कहते ही सभी दूर घोर अंधेरा छा जाता है, आसमान में बिजलियां चमकने लगती है, चारो तरफ हाहाकार मच जाता है, धरती कम्पन करने लगती है, इंद्र का आसान डोलने लगता है, पाताल लोक से लेकर यमलोक सब हिलने लगते है। सारे दैत्य दानव, ऋषि मुनि, देवी देवता सब को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है।
उधर धर्मराज इस चिंता में डूब जाते है कि आज सूर्य देवता उजाला करना कैसे भूल गए। यदि आज सूर्य उदय नहीं हुआ तो जिनके प्राण हरना था उनके प्राण वो कैसे हरण कर पाएंगे।
सारे देवी देवता ऋषि मुनि एकत्र होकर ब्रह्मा विष्णु महेश भगवान को पुकारने लगते है और कहते हम हमारी रक्षा करे भगवान।
तभी तीनों देवता वह आते है धर्मराज कहते है प्रभु सूर्य उदय ना होने के कारण उनका सरा लेखा जोखा उथल पुथल हो गया। जिनके प्राण हरण करने थे वो प्राण नहीं त्याग रहे। समय का ज्ञान ना रहने से तीनों लोको का काम रुक गया है, जिन आत्माओं को जन्म लेना था वो जनम नहीं ले पा रही है ।इस संकट से बचाइए प्रभु। और आपकी जो भी लीला है उसे जल्द पूरा कीजिए। शंकर भगवान कहते है विष्णु जी से , क्यूं आपने मांडव ऋषि को शूल पर लटकने दिया, क्यूं उस शूल से कौशकी और कोंशिक को टकराने दिया। और फिर कोशिकी के हाथो सूर्य उदय होने से रोक दिया। यह सब उन्हे भी समझ नहीं आ रहा। कृपया इस संकट से सभी को निकालने कि कृपा करे।
ब्रह्मा जी कहते है वह कोशिकी के पास गए थे परन्तु वह कोशिकी की मांग को पूरी नहीं कर सकते। वह मांडव ऋषि के श्राप का अनादर नहीं कर सकते।
सभी देवता कहते है विष्णु जी से। आप ही कुछ कीजिए। विष्णु जी कहते है। एक सती के श्राप को निष्फल करना उनके भी बस में नहीं है।
इसका मतलब इस संसार में कभी उजाला नहीं होगा, यह संसार समाप्त हो जाएगा सारे देवता एक साथ बोलते है।
विष्णु भगवान कहते है इस संसार में एक सती के श्राप से कोई भी नहीं बच सकता और ना कोई बच पाएगा हम त्रिदेव भी नहीं बच सकते। परन्तु इस समस्या का एक हल है।
सारे भगवान पूछते है वो क्या है प्रभु क्या उपाय है इस समस्या का।
विष्णु जी कहते है, एक सती के श्राप को एक सती ही खत्म कर सकती है।
देवी देवता कहते है ऐसी सती कहा होगी जो इस संसार को बचाने के लिए देवी कोशिकी से बात करे उन्हे समझाए। जो हमारी मदद करे। तभी नारद जी कहते है वो ऐसी सती को जानते है, धरती पर महर्षि अत्री कि पत्नी देवी अनुसुइया है। वो कोशिकी जैसी ही सात्विक, पतिव्रता और सती है।
विष्णु जी कहते सभी देवी देवताओं से कहते है आप लोग देवी अनसुईया के पास जाए और उनसे विनती करे। और उन्हे समझाए कि धरती पर आए इस संकट से उन्हे निकालने की कृपा करे।
सारे भगवान देवी अनुसुइया के पास जाते है उन्हे प्रणाम कर सारी बात बताते है और उनसे आग्रह करते है कि उनके जैसी एक और सती है जिन्होंने सूर्य देवता को निकलने से रोक दिया। इसलिए आप उनके पास जाकर विनती करे और उन्हे अपना श्राप वापस लेने के लिए मनाए। जिससे इस संसार को बचाया जा सके । अन्यथा यह संसार नष्ट हो जाएगा।
सती अनुसूया कौशिकी के पास जाती है और उन्हे प्रणाम कर अपना परिचय देते हुए उनसे आग्रह करती है कि वो सूर्य देव को दिया हुआ श्राप वापस ले ले।
परन्तु कोशिकी उन्हे बताती है कि यदि सूर्य उदय हुआ तो वह विधवा हो जाएगी और वो विधवा नहीं मरना चाहती।
अनुसुइया कहती है यदि तुम्हारे पति की मृत्यु हो भी गई तो मे उनके प्राण ले जाने नहीं दूंगी यमदूत से उन्हे ले आऊंगा, पल भर में उन्हे जीवित कर दूंगी । परन्तु तुम सूर्य को निकलने दो।
सती कोशिकी, देवी अनसुईया की बात मानकर अपना दिया हुआ श्राप वापस लेने को तैयार हो जाती है।
और नीचे रखें कमंडल मे से जल लेकर अपना श्राप वापस ले लेती है। और कुछ ही क्षणों में सूर्य उदय हो जाता है।
सूर्य उदय होते ही यमदूत कौशिक के प्राण हरण करने लगते है परन्तु देवी अनसुईया उन्हे मना करती है और कोशिक और कोशिकी के आस पास अपनी शक्ति से सुरक्षा चक्र बना देती है जिससे यमदूत प्राण हरण नहीं कर सके।
यमराज कहते है अनसुईया से कृपा करके आप उन्हे कौशिक के प्राण हरण करने दीजिए और विधाता के विधान मे हस्तक्षेप ना करे।
अनसुईया कहती है यमराज से आप अपना लेखा जोखा देखकर बताइए की क्या आज के दिन इनके प्राण हरण करने का लिखा है या नहीं।
यमराज कहते है। उनके पास आज के दिन इनके प्राण लेने का नहीं है परन्तु मांडव ऋषि के श्राप के कारण उन्हे आना पड़ा। और यदि वो उनके प्राण नहीं के जा पाए तो मांडव ऋषि के श्राप का अनादर होगा । यमराज देवी अनसुईया से मार्ग दर्शन करने को कहते है।
यदि वो उनके सतीत्व और बल से उन्हे मांडव ऋषि के श्राप से बन्धन मुक्त कर दे तो। यमराज कहते है यदि ऐसा हो सकता है तो वह कोशिकी के प्राण नहीं लेंगे।
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