गुरुवार, 14 मई 2020

सरकारी कहानी / अपर्णा




_सरकारीकहानी_
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               प्रस्तुत है एक कहानी जिसके सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका मेल संयोग मात्र नहीं है...
                   एक स्कूल है सरकारी......अध्यापक है, अध्यापिकाएं है,बाबू है,चपरासी है,छात्र है,और एक हेड मास्टर साहब है।
             अब होता ये है कि ये हेडमास्टर साहब बहुत काबिल आदमी हैं , सर्व गुण संपन्न,और अपार बल शाली (हालांकि ऐसा वो खुद ही कहते फिरते है) पूरे गांव में धौंस है उनकी कि वहीं है जो इस खस्ताहाल सरकारी स्कूल की हेडमास्टरी कर रहे हैं ,और वहीं है जो इस स्कूल बेड़ा पार लगाएंगे, कोई भी उनकी तनख्वाह, भत्ते और अन्य सुविधाओं के विषय में कुछ बात नहीं करता, इतने बड़े व्यक्ति को ऐसे तुच्छ प्रश्नों में उलझाना लोग ठीक नहीं मानते।
                       तो रोज़ ये होता है कि सुबह स्कूल खुलते ही हेडमास्टर साहेब छात्रों को उच्च नैतिक आदर्श, राष्ट्र प्रेम, सार्वभौमिक छवि, शिक्षा के महत्व,और रोज़गार के विषय पर पूरा लबालब करके, तालियां बाजवा के अपने काम पर लगते हैं, छात्र भी गदगद, स्टाफ भी गदगद, और स्वयं हेडमास्टर साहेब भी... फिर कक्षा लगने का समय आता है, अब जबकि हेडमास्टर साहेब इतने वर्सेटाइल है और पूरा स्कूल खुद ही संभालते है, हर विषय खुद ही पढ़ाते हैं, सफ़ाई खुद करते हैं, लेखा जोखा खुद रखते हैं, तब प्रश्न उठता है कि बाक़ी के अध्यापक,अध्यापिकाएं,बाबू और चपरासी क्या करते हैं, और उनको सरकार फुकट तनखा क्यूं दे रही है???? इतने आल राउंडर, योग्य हेड मास्टर साहेब के होते हुए...... तो उनका काम है जैसे ही हेड मास्टर साहेब कोई विषय पढ़ाकर निकले वो तुरंत उनकी भूरी भूरी प्रशंसा में जुट जाएं, पूरे गांव में ढिंढोरा पीटें, छात्रों से ताली बजवाएं, गांव वालों से दिए जलवाएं.....
                    हेडमास्टर साहेब स्कूल की बेहतरी के लिए नित नई योजनाएं लाते रहते हैं, और दिमाग में आते ही तुरन्त उसको बोल भी देते हैं, उस पर मंथन बाद में होता रहता है, बच्चे सपनों में जीते हैं ,चाय के ठेलो पर काम करते हैं,क्यूंकि बड़े बनने के लिए बड़े सपने देखना लेकिन असलियत में चाय बेचना ज़रूरी है।
                       सरकारी मदद की पूरी राशि छात्रों की बेहतरी पर पहले ही खर्च हो गई है,और यहां के छात्र वैसे भी सब के सब गुदड़ी के लाल है दिखाई कुछ नहीं देता इनके पास मगर है सब कुछ,और जो है उसका पूरा हिसाब किताब है रजिस्टर में भी है,और जब हिसाब है तो है ...उसकी असलियत देखने की इच्छा रखने या कोई सबूत चाहने पर तुरंत स्कूल का पूरा स्टाफ अपने दूसरे महत्वपूर्ण काम में लग जाता है वो है प्रश्न कर्ता की एक स्वर में भर्त्सना करना...और वैसे भी ऐसे भद्दे प्रश्न राष्ट्र का अपमान  होते है,राष्ट्र के प्रति द्रोह की भावना होते है,देशभक्ति पर अमिट प्रश्नचिन्ह होते है। इसलिए कोई भी इस संज्ञेय अपराध के चक्कर में पड़ता ही नहीं है गलती से पड़ भी जाए तो कबूलता नहीं है।
अब हुआ ये कि जैसे साहेब को हेडमास्टरी मिली उन्होंने कहा जितनी भी पुरानी किताबें है रद्दी है, बेकार है, आज से नहीं चलेंगी ये झूटा ज्ञान दे रही है और इससे छात्र चोर और हिंसक बन रहे हैं, गांव वालों ने तुरंत सब किताबे फाड़ी, जलाई और साहेब की बताई हुई नई खरीद ली , देखा तो उसमें में भी वही सिलेबस था, गरीबों ने बहुत मेहनत के पैसे से खरीदी थी, मगर खैर जो हुआ , हो गया, सब हेडमास्टर साहेब की इज्ज़त करते हैं छात्र नई किताबों से पढ़ने लगे, और पहले से ज़्यादा, उम्मीद से बढ़कर होनहार हो गए, मगर कुछ खास छात्र जो साहेब के गांव के थे, अब अपनी मिट्टी के लिए इतना तो कर्तव्य बनता है।
     
           फिर साहेब ने स्कूल की फीस दुगुनी कर दी और हर साल की फीस हर महीने लेने लगे , उन्होंने समझाया कि इससे स्कूल का विकास होगा, अच्छे दिन आएंगे, लोगों ने भरी आंखो से हर महीने दुगुनी फीस देना शुरू कर दिया।
           एक दिन साहेब ने सबको बुलाकर कहा कि इस स्कूल का विकास तभी होगा, छात्र तभी अपनी योग्यता का फल पाएंगे जब ये सुनिश्चित हो जाएगा कि कौन इस गांव का असली छात्र है और कौन नकली घुसपैठिया छात्र है जो स्कूल के माहौल को खराब कर रहा है, सारा गांव, छात्र सकते में आ गया कि कैसे बताएं असली नकली का फर्क ,पढ़ाई लिखाई कुछ दिनों के लिए स्थगित हो गई, और पहचान पत्र बनाए जाने लगे,पहले इस गांव से मर्ज़ी से गए लोगो को वापिस बुलाकर पहचान पत्र दिया गया, और यहां रह रहे लोगों को लोगों को अपनी पहचान की व्यवस्था खुद करने को कहा गया, बात विकास, देश भक्ति और राष्ट्र के सम्मान की थी तो लोगो को जो कहा वो करना ही था।
             इस बार ऐसा हुआ है कि पहले से खस्ता हाल स्कूल की इमारत ढह गई है और हेड मास्टर साहेब ने हर गांव वाले से अपने घर की ईंट स्वेच्छा से मांगी , लोगो ने हेड मास्टर साहब के प्यार में बढ़ चढ़ कर दान दिया है अपने घर की छत, दीवारें तोड़ तोड़ कर दी, जिन्होंने नहीं दिया उनसे आनुपातिक रूप में ही ले लिया गया बारिश, धूप, ठंड के सितम को झेलते हुए ये लोग भरोसे की इमारत के तामीर होने के इंतजार में हैं, स्कूल यथावत चल रहा है, बैकग्राउंड में हेडमास्टर साहेब का स्तुति गान बज रहा है, पूरा स्टाफ मस्त होकर झूम रहा है और छात्र और गांव वाले धूप,घाम,वर्षा की निर्मम चोट खाते हुए उम्मीद पर दुनिया कायम है का रट्टा मार रहे हैं.....

🍃🍂 *अपर्णा*🍂🍃

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