सोमवार, 11 मई 2020

राकेश रेणुका की काव्यात्मक अभिव्यक्ति




लाक डाऊन में हमारे कवि : राकेशरेणु
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          बिहार के सीतामढी में सत्रह अगस्‍त उन्‍नीसौ त‍िरसठ को जन्मे कवि राकेशरेणु भारतीय सूचना सेवा से सम्बद्व है । सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित साहित्य  संस्कृति पत्रिका आजकल के वरिष्ठ  संपादक है । इस नाते दिल्ली में नौकरी करते है और केन्द्रीय बिहार नोएडा में रहते है किन्तु  राकेशरेणु इतने साल दिल्ली नोएडा में रहने के बावजूद भी दिल्लीयन या नोएडेयन नही हो पाये है । सीतामढी उनमें रचता बसता है । सरल, सहज स्वभाव के राकेशरेणु चकाचौध से दूर रह सादा जीवन जीने वाले और काव्य साधना करने वाले कवि है।
           ख्यात लेखक प्रभात रंजन,जो सीतामढी के ही है, बताते है कि  शायद इस बात को राकेश जी भी न जानते हों कि सीतामढ़ी में रहते हुए अपने शहर के जिस बड़े लेखक-कवि की तरह मै बनना चाहता था वे राकेशरेणु ही थे । राकेशरेणु की कविताएं , लेख देश भर के तमाम पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है । अभी तक उनके दो कविता संग्रह रोजनामजा और इसी से बचा जीवन प्रकाशित हो चुके है । राकेशरेणु के संपादन में समकालीन हिन्दी  कहानियॉ, समकालीन मैथिली साहित्ये, यादों के झरोखे पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है । उन्होनें आजकल के अलावा योजना,कुरुक्षेत्र,रोजगार समाचार,बाल भारती आदि पत्र पत्रिकाओं का संपादन भी किया है ।  कवि रेणु कविता और संपादन तक ही सीमित नही है, उन्होंने  लेख, समीक्षाएं ,रिपोर्ताज भी लिखे है ।
            कवि राकेशरेणु की रचना धर्मिता के बारे में प्रसिद्ध और वरिष्ठ कवि भारत यायावर  कहते है कि “राकेशरेणु एक जरूरी कवि हैं. धरती, हवा और जल की तरह उनकी कविताएँ जीवन के आधार और आवश्यकता की उन तमाम शिराओं को अवलंब देती है जिनकी चेतना से समकालीन जीवन का वैभव वंचित है. उनकी कविताएँ सहजता के छंद में संवेदनाओं और विचारों की सजीव और प्रासंगिक अभिव्यक्ति का प्रमाण हैं. ‘इसी से बचा जीवन’ में कवि की अनुभवपगी आँखे नये अन्वेषण की प्रेरणा देती हैं. इस परिपक्व कवि की भाषा-संरचना में अंतर्निहित शब्दकौशल की व्यंजना चमत्कृत करती है.”
            कोरोना आपदा के दिनों में कवि राकेशरेणु नयी कविताओ के सृजन में तथा आजकल के भावी अंकों की योजना में व्यस्त है । इस आपदा से निपटने के लिए वह कहते है कि एहतियात ही विकल्प  है और इस संकट के समय हम किस की कितनी मदद कर सकते है,यह तय करेगा कि हम कितने मनुष्य है ।
            यहां प्रस्तुत है कवि राकेशरेणु की तीन ताजा कविताएं

(1) अनुनय
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उदास किसान के गान की तरह

शिशु की मुस्कान की तरह

खेतों में बरसात की तरह

नदियों में प्रवाह की तरह लौटो।

लौट आओ

जैसे लौटती है सुबह

अँधेरी रात के बाद

जैसे सूरज लौट आता है

सर्द और कठुआए मौसम में

जैसे जनवरी के बाद फरवरी लौटता है

पूस-माघ के बाद फागुन, वैसे ही

वसंत बन कर लौटो तुम !

लौट आओ

पेड़ों पर बौर की तरह

थनों में दूध की तरह

जैसे लौटता है साइबेरियाई पक्षी सात समुंदर पार से

प्रेम करने के लिए इसी धरा पर ।

प्रेमी की प्रार्थना की तरह

हहराती लहरों की तरह लौटो !

लौट आओ

कि लौटना बुरा नहीं है

यदि लौटा जाए जीवन की तरफ

हेय नहीं लौटना

यदि लौटा जाए गति और प्रवाह की तरफ

न ही अपमानजनक है लौटना

यदि संजोये हो वह सृजन के अंकुर

लौटने से ही संभव हुई

ऋतुएँ, फसलें, जीवन, दिन-रात

लौटो लौटने में सिमटी हैं संभावनाएँ अनंत !
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(2) प्रतीक्षा
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यह ध्यान की सबसे जरूरी स्थिति है

पर उतनी ही उपेक्षित

निज के तिरोहन

और समर्पण के उत्कर्ष की स्थिति

कुछ भी इतना महत्त्वपूर्ण नहीं

जितनी प्रतीक्षा

प्रियतम के संवाद की, संस्पर्श की

मुस्कान की प्रतीक्षा।
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(3) चुपचाप
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बूंदें गिर रही हैं बादल से

एकरस, धीरे-धीरे, चुपचाप।

पत्ते झरते हैं भीगी टहनियों से

पीले-गीले-अनचाहे, चुपचाप।

रात झर रही है पृथ्वी पर

रुआँसी, बादलों, पियराये पत्तों सी, चुपचाप।

अव्यक्त दुख से भरी

अश्रुपूरित नेत्रों से

विदा लेती है प्रेयसी, चुपचाप।

पीड़ित हृदय, भारी कदमों से

लौटता है पथिक, चुपचाप।

उम्मीद और सपनों भरा जीवन

इस तरह घटित होता है, चुपचाप।
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