गुरुवार, 21 मई 2020

मुन्नवर राणा की गजल




बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना
आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना

सिर्फ़ बच्चों की मोहब्बत ने क़दम रोक लिए
वर्ना आसान था मेरे लिए बे-घर होना

हम को मा'लूम है शोहरत की बुलंदी हम ने
क़ब्र की मिट्टी का देखा है बराबर होना

इस को क़िस्मत की ख़राबी ही कहा जाएगा
आप का शहर में आना मिरा बाहर होना

सोचता हूँ तो कहानी की तरह लगता है
रास्ते से मिरा तकना तिरा छत पर होना

मुझ को क़िस्मत ही पहुँचने नहीं देती वर्ना
एक ए'ज़ाज़ है उस दर का गदागर होना

सिर्फ़ तारीख़ बताने के लिए ज़िंदा हूँ
अब मिरा घर में भी होना है कैलेंडर होना

                                 #  मुनव्वर राना.

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