रविवार, 31 मई 2020

समीक्षा -किताब गली / चंडीदत्त शुक्ला





किताब गली

हरिंदर सिक्का का उपन्यास ‘कॉलिंग सहमत’ प्रेम और जुनून का अलहदा दस्तावेज है, जिसमें सच्चाई की खुशबू है और कल्पना की उड़ान भी है। जिन पाठकों को फिल्म ‘राजी’ अच्छी लगी हो, वे उपन्यास जरूर पढ़ सकते हैं...




सिनेमा जैसी रोचक कथा



कॉलिंग सहमत

उपन्यासकार – हरिंदर सिक्का

प्रकाशक – पेंगुइन बुक्स, दिल्ली

मूल्य – 199 रुपए



मेघना गुलज़ार निर्देशित ‘राजी’ ने दर्शकों का भरपूर प्यार हासिल किया। चुस्त स्क्रीनप्ले और सधे निर्देशन की खूब तारीफ हुई और फिल्म सफल रही। हरिंदर सिक्का की किताब ‘कॉलिंग सहमत’ पर ही ये फिल्म आधारित है। मूल किताब पढ़ना कई मायनों में दिलचस्प है। सबसे पहले तो यही कि जिन लोगों ने फिल्म देखी है, वे किताब के उन हिस्सों का आनंद भी ले सकेंगे, जिनका सिनेमा में जिक्र तक नहीं है। लेखक ने ‘कॉलिंग सहमत’ में शब्दों के जरिए जिस तरह दृश्यों के कोलाज बनाए हैं, वे अपने आप में अनूठा चलचित्र गढ़ते हैं।

उपन्यास की कहानी फिल्म की कथा से भिन्न नहीं है, इसलिए उसका जिक्र करना पाठकों और दर्शकों, दोनों के लिए खुलासे और रसभंग जैसा होगा। मोटे तौर पर एक मासूम लड़की की दास्तां है। नाज़ुक तबियत के बावजूद ये नाजनीन देश की हिफाजत के लिए जान की बाजी लगाने और दुश्मन देश में जाकर जासूसी करने के खतरनाक कारनामे के लिए भी तैयार हो जाती है।

मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई हरिंदर सिक्का की किताब का अनुवाद उमा पाठक ने किया है। इस काम में वे ईमानदार रही हैं। हालांकि उमा मूल से बिल्कुल छेड़छाड़ नहीं करतीं, इसलिए कहीं-कहीं हिंदी वाक्य संरचना अटपटी हो जाती है। किताब में प्रूफ की कतिपय गलतियां हैं, जो अखरती हैं।

इन दिक्कतों के बावजूद, ‘कॉलिंग सहमत’ एक बार पढ़ने लायक जरूर है। इसके तीन प्रमुख कारण हैं। सेना से गहरे जुड़ाव के चलते सिक्का के पास विश्वसनीय सूचनाएं हैं। दूसरे, कश्मीर के तनाव भरे माहौल में उपजे प्रेम से शुरू उपन्यास स्नेह, समर्पण, विश्वास, जुनून और बलिदान के नए पाठ पढ़ाता है। तीसरी खास बात- जब किसी कृति पर चर्चित फिल्म बन चुकी हो, तब उसे पढ़ना इस मायने में भी रोचक होता है कि आप इस बात का अध्ययन कर पाते हैं – स्क्रीनप्ले और कथा में कितना फर्क है? कथानक में कई मोड़ हैं, जो पाठक को लगातार रोमांचित करते हैं। सच ये है कि ‘कॉलिंग सहमत’ की कथा में बहुत कुछ बाकी रह गया है, जिस पर एक और फिल्म बनाई जा सकती है।

- चण्डीदत्त शुक्ल

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